छठ पूजा का शास्त्रीय प्रमाण और लोकाचार परंपरा


छठ पर्व उत्तर भारत में सबसे अधिक लोकप्रिय त्योहार है, खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश राज्य में. छठ पर्व की शुरुआत शुक्रवार 17 नवंबर से हो रही है और 20 नवंबर 2023 को इसका समापन होगा. आज इस लेख के द्वारा हम शास्त्रीय और लोकाचार स्वरूप दोनों पर दृष्टि डालेंगे, तो चलिए बढ़ते हैं छठ पर्व से जुड़े शास्त्रीय स्वरूप की ओर. भविष्य पुराण, ब्रह्म पर्व अध्याय क्रमांक 39 के अनुसार हम षष्ठी तिथि की अपनी विजय के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करते हैं.


हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास का छठवां दिन रवि षष्ठी के नाम से जाना जाता है. इसी कार्तिक षष्ठी को संपूर्ण दिन भगवान सूर्य की उपासना होती है. कार्तिक की षष्ठी को छठ स्वरुप में भगवान सूर्य नारायण को पूजा जाता है. छठ शब्द वास्तविकता में षष्ठी ही शब्द का विकृत रूप शब्द है, षष्ठी को लोग उत्तर भारत में लोकाचार परंपरा में ’छठी’ बुलाने लगे. इस दिन भगवान कार्तिकेय को अर्घ्य देते समय निम्न मन्त्र का उच्चारण करें: –


एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते । 
अनुकम्प्य मां देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥ 
(भविष्य पुराण ब्रह्मपर्व अध्याय 143.27)


तदनंतर इस प्रकार प्रार्थना करें: –
सप्तर्षिदारजस्कन्द स्वाहापतिसमुद्भव। रुद्रार्यमाग्निज विभोगङ्गागर्भ नमोऽस्तुते । प्रीयतां देवसेनानीः सम्पादयतु हृद्गतम्॥ (भविष्य पुराण ब्राह्मपर्व 39.6)


चलिए अब लोकाचार मान्यताओं पर दृष्टि डालते हैं. एक प्रसिद्ध लोक गीत है छठ पर्व के लिए: –


"कबहुँ ना छूटी छठि मइया,
हमनी से बरत तोहार
तहरे भरोसा हमनी के
छूटी नाही छठ के त्योहार".


लगभग चार दिन चलने वाले इस कठिन व्रत का आरम्भ नहाय–खाय के साथ होता है जब व्रती स्नान पूजा के बाद चावल और दूधी चने की दाल मिश्रित सब्ज़ी को खाती है. अगले दिन होता है खरना. इस दिन व्रती केवल मीठे चावल ही खाती है. तीसरे दिन व्रती का लगभग 36 घण्टे का निर्जला व्रत शुरू होता है. संध्या के समय व्रती और उसके परिजन नदी या तालाब पर जाकर कमर भर पानी में खड़े होकर अस्ताचल सूर्य को अर्ध्य देते हैं. साथ में प्रसाद स्वरूप फल मिठाई इत्यादि भी अर्पित करते हैं. आखरी दिन उदयाचल सूर्य को अर्ध्य देकर इस व्रत का समापन किया जाता है.


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