Safalta Ki Kunji : चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि संतान को जब ज्ञान के साथ संस्कार प्राप्त होते हैं तो ऐसी संतान योग्य कहलाती है. संतान पर सबसे अधिक प्रभाव माता पिता और उनके द्वारा अपनाए जाने वाले आचरण का होता है. बचपन में बच्चे जो कुछ भी सीखते हैं, उसे जीवन भर याद रखते हैं. इसलिए बच्चों की देखभाल और परवरिश में माता पिता को बहुत सतर्कता बरतनी चाहिए. 

विद्वानों की मानें तो यदि संतान को श्रेष्ठ, योग्य और कुशल बनाना है तो सर्वप्रथम माता पिता को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए. क्योंकि माता पिता यदि जागरूक और अपने कर्तव्य को लेकर सजग रहेंगे तो संतान के योग्य होने की संभावना अधिक प्रबल हो जाती हैं. शिक्षा के साथ संस्कार बहुत जरूरी है. संस्कार शिक्षा के महत्व और उपयोग में वृद्धि करते हैं. गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को ज्ञान के महत्व के बारे में बताते हैं. विद्वानों के अनुसार ज्ञान ही वो रोशनी है जिसके माध्यम से हर प्रकार के अंधकार का नाश किया जा सकता है. ज्ञान और संस्कार के बारे में संतान को आरंभ से ही जागरूक करना चाहिए. इसके साथ ही संतान को इन गलत आदतों से सदैव दूर रखने का प्रयास करना चाहिए-

झूठ बोलने की आदत से दूर रखेंबच्चों को झूठ बोलने की आदत से दूर रखने का हर संभव प्रयास करना चाहिए. झूठ बोलने की आदत बच्चों की प्रतिभा और विकास को प्रभावित करता है, वहीं यदि समय रहते इस आदत को दूर न किया जाए तो बच्चे के भविष्य को भी प्रभावित करती है. बच्चे को सदैव सत्य बोलने के लिए प्रेरित करना चाहिए. सत्य के महत्व के बारे में बताना चाहिए. 

आलस को पास न आने देंविद्वानों की मानें तो आलस कई प्रकार के रोग और अवगुणों का कारक है. इसलिए बच्चों को आलस से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए. आलस को एक दोष की तरह देखना चाहिए. आलसी व्यक्ति अवसरों को लाभ में नहीं बदल पाता है. इसलिस आलस शत्रु के समान है.

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