Mahabharat : भीष्म पितामह ने युद्ध के पहले और इसके बाद कई बातें धृतराष्ट्र, दुर्योधन, कृष्ण, अर्जुन और युधिष्ठिर से कहा था. युद्ध के पहले जब श्रीकृष्ण शांतिदूत बनकर संधि के लिए हस्तिनापुर आए तो भीष्म ने दुर्योधन को समझाया था कि जहां श्रीकृष्ण है, जहां धर्म है, उसी पक्ष की जीत निश्चित है, इसलिए कृष्‍ण की सहायता से तुम पांडवों से संधि कर लो, यह बड़ा अच्छा अवसर है, हर किसी को हमेशा धर्म का साथ देना चाहिए. हालांकि दुर्योधन नहीं माना तो शरशैय्या पर लेटे भीष्म ने कौरवों की हार की भविष्यवाणी कर दी और कहा कि  शक्ति और लक्ष्मी का अपमान करने वाले की कभी विजय नहीं हो सकती है. जब-जब किसी ने स्त्री का अपमान किया है, निश्चित ही विनाश हुआ. स्त्री का पहला सुख उसका सम्मान है. उसी घर में लक्ष्मी रहती हैं जहां स्त्री प्रसन्न रहती हों. जहां स्त्री का सम्मान न हो, उस घर से लक्ष्मी समेत सभी देवी-देवता भी चले जाते हैं.


शरशय्या पर लेटे भीष्म ने अंतिम समय में कौरव-पांडवों का ये सीख भी दी थी.


- सुख दो तरह के मानवों को ही मिलता है, पहले वो जो सर्वाधिक मूर्ख हैं और दूसरे वो जिन्होंने बुद्धि के प्रकाश में ज्ञान का तत्व देख लिया है. इनके अलावा जो लोग बीच में लटक रहे हैं, वे सदा दुखी रहते हैं.


- वैसी बात करें, जिससे दूसरों को कष्ट न हो, दूसरों को बुरा भला कहना, निन्दा करना, बुरे वचन बोलना, इनका परित्याग करना ही सबसे बेहतर है. दूसरों का अपमान, अहंकार और दम्भ सबसे बड़े शत्रु हैं.


- त्याग बिना कुछ नहीं मिल सकता है, न कोई परम आदर्श सिद्ध हो सकता है. त्याग बिना मनुष्य डर से मुक्ति नहीं पा सकता है. त्याग से ही मानव को हर सुख मिलने की संभावना बनती है.


- जो पुरुष भविष्य पर अधिकार रखता है, दूसरों की कठपुतली नहीं बनता और समयानुकूल तत्काल विचार कर सकता है वह हमेशा सुख हासिल करता है, जबकि आलस्य मानव का नाश कर देता है.


- एक शासक को पुत्र और प्रजा में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं रखना चाहिए. ये शासन में अडिगता और प्रजा को समृद्धि प्रदान करता है.


- भीष्म ने कहा था कि सत्ता सुख भोगने नहीं, अपितु कठिन परिश्रम कर समाज का कल्याण के लिए होता है.


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