Bhagavad Gita: गीता के अध्याय दो में श्री अर्जुन को बताया गया है कि इस दुनिया में कोई संकट नहीं है, बल्कि प्रकृति का नियम है. बचपन से युवावस्था और फिर वृद्धावस्था तक शरीर निरंतर बदलता रहता है, लेकिन आत्मा में साहित्य की साक्षी बनी हुई है. 

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क्या कहते हैं श्री कृष्ण

श्री कृष्ण कहते हैं कि कोई भी मनुष्य पुराने वस्त्र धारण करके नए वस्त्र धारण करता है, वही मृत्यु प्रकार आत्मा एक शरीर को ठीक करके दूसरे शरीर में प्रवेश करती है.

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यही गीता बताती है कि जो कुछ भी बदल रहा है वह शरीर है, शारीरिक रूप से घायल है, घायल है लेकिन जिस आत्मा में जीवन की असली पहचान है, वह न कभी जन्म लेती है और न ही कभी नष्ट होती है. यह सत्य हमें जीवन के उद्गार-चित्र को नये दृष्टिकोण से देखने की शक्ति देता है.

हर परिस्थिति में मन को स्थिर स्थिति

गीता में श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि यह कांतिवादी प्रकृति जीव रहता है. इसी कारण कभी सुख होता है, कभी दुःख होता है; कभी-कभी राज्य-अनुकूलित होता है, कभी-कभी परिवर्तनशील होता है. लेकिन दुःख की स्थिति तब सामान्य होती है जब मनुष्य स्वयं को इन्साबा से ले जाता है. श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि मन को स्थिर बनाना ही वास्तविक साधना है.

वह कहते हैं कि जिस व्यक्ति का मन सुख से मिलकर मिलता है वह उछलता नहीं है और दुख आने पर टूटता नहीं है, वास्तव में जीवन को समझ पाता है. प्रकृति का हर परिवर्तन क्षणिक है. उसे सुझाव दें, उससे संपर्क न करें. यह व्यापक दृष्टि भय को कम करती है और स्थैतिक निरपेक्ष को शांत करती है.

 परिवर्तन से आरंभ की कला

परिवर्तन से डरने की जगह श्रीकृष्ण हमें ऊपर की ओर के नियम सिखाते हैं. सबसे पहले उसके अंदर स्थित उस आत्मा को जो कभी ख़त्म नहीं होती थी. जब शरीर को पहचानना सीमित रहता है, तब हर परिवर्तन भय पैदा होता है; परन्तु जब आत्मा की पहचान होती है तब जीवन का हर उद्गम सहज दर्शन होता है.

उपाय अपनाना दूसरा परिणाम चिंता निवारण पेशेवर में सबसे अच्छा है. तीसरा, मन को और ऐसी बात कि वह सुख-दुख, बात-हानी प्रशंसा-निंदा में एक समान रहे. यही योग का सार है. श्रीकृष्ण का संदेश है कि परिवर्तन को बनाना संभव नहीं है, लेकिन उनके बीच स्थिरता ही जीवन की सबसे बड़ी जीत है.

असस्वीकरण:  यहां चार्टर्ड सूचना केवल विद्यार्थियों और विद्यार्थियों पर आधारित है. यहां यह जरूरी है कि  ABPLive.com  किसी भी तरह की सहमति, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या सिद्धांत को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.