Baglamukhi Mata: हिंदू धर्म में मां बगलामुखी 10 महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या हैं. मां बगलामुखी की पूजा स्तंभन शक्ति और वाक्-सिद्धि की देवी के रूप में की जाती है. बगलामुखी माता की पूजा-आराधना, तंत्र साधना, शत्रु का नाश, वाद-विवाद में जीत और वाणी पर नियंत्रण पाने के लिए की जाती है. 

मां बगलामुखी सदैव अपने भक्तों की पूजा करती है और उन्हें हर परिस्थितियों में विजय दिलाती है. मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में मां बगलामुखी का मंदिर तंत्र साधना के लिए काफी प्रसिद्ध है. मध्यप्रदेश में नौरादेवी शक्तिपीठ और हिमाचल प्रदेश में बंजार मंदिर मां बगलामुखी को समर्पित है. 

मां बगलामुखी के नाम का अर्थ!बगला शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के वल्गा शब्द से हुई है, जिसका मतलब लगाम या नियंत्रण करना होता है. मुखी का अर्थ, मुख वाली या रूपधारी है. इस तरह बगलामुखी का अर्थ वाणी, विचार, शत्रु और नकारात्मक ऊर्जा पर नियंत्रण या रोकने वाली देवी से है. 

बगलामुखी माता का स्वरूप भक्तिमय, प्रेम भावना से युक्त और सौंदर्य से भरा होता है. मां का रंग पीला होता है और इन्हें पीले वस्त्रों और फूलों से सजाने की परंपरा है. उनके एक हाथ में शत्रु की जीभ और दूसरे हाथ में गदा होता है. बगलामुखी माता का ये स्वरूप शत्रु के बोलने की शक्ति का नाश और विजय प्राप्ति का प्रतीक होता है. 

पौराणिक ग्रंथों में मां बगलामुखी का जिक्रबगलामुखी माता का जिक्र देवी भागवत पुराण, तंत्र चूड़ामणि और महाविद्या जैसे शक्तिशाली ग्रंथों में देखने को मिलता है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, जब त्रेतायुग में धरती पर विशाल तुफान आया था और सृष्टि संकट में थी, तब भगवान विष्णु ने हरिद्वार के समीप सोरसती तालाब में घोर तपस्या की थी.

तपस्या के फलस्वरूप मां बगलामुखी प्रकट हुई और उन्होंने तूफान को नियंत्रण में करके धरती की रक्षा की थी. 

मां बगलामुखी को चढ़ने वाला प्रसाद

  • मां बगलामुखी को पीला रंग प्रिय होता है. इसलिए भक्त उन्हें-
  • बेसन के लड्डू
  • केसर युक्त खीर या हलवा
  • चने की दाल और चावल का भोग
  • पीला फल जिसमें केला, आम और पपीता आदि शामिल हैं. 

मां बगलामुखी को गुड़ और भुने हुए चने का भोग भ अर्पण किया जाता है. इसके साथ ही उन्हें दूध, दही, घी, शहद और शक्कर और हल्दी युक्त पंचामृत अर्पित करना चाहिए. 

माता बगलामुखी को भोग चढ़ाने के नियम!

  • माता बगलामुखी को शुद्ध घी और सात्विक सामग्री से बना भोग ग्रहण करना चाहिए. 
  • भोग चढ़ाने से पहले शुद्धता का नियम बरकरार रखना चाहिए.
  • माता को भोग में लहसुन, प्याज, मांस-मदिरा अर्पित करना वर्जित होता है. 
  • माता को भोग अर्पण करने के बाद ही खुद भोग ग्रहण करना चाहिए.

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