राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय (Chanpat Rai) जी ने जब कहा कि रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा रामानंदी सम्प्रदाय के नियमों के अनुसार की जाएगी. क्योंकि अब तक इस मंदिर की पूजा अर्चना वही लोग कर रहे थे. तब हमने रामानन्दी सम्प्रदाय के और हनुमान गढ़ी से जुड़े स्वामी अंजनीनन्दन दास से सम्पर्क कर इस विषय पर विस्तृत चर्चा की. प्रस्तुत है उसी चर्चा का सार-

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जब प्राण प्रतिष्ठा कराई जाती तो पहले तो उसका कलश पूजन होता है. उसका प्रायश्चित विधान होता है कि, वह पवित्र हो. हर प्रायश्चित के बाद उसे दशविध स्नान कराया जाता है, फिर उस कलश में जल लेकर के कलश पूजन होगा जिसमें वरुण देव उक्त स्थान पर आएंगे. स्थान का भी पूजन होता है, वेदी बनायी जाती वहां. इसके पश्चात सभी ग्रहों और देवताओं का पूजन होता है. क्षेत्रपाल की और नवग्रहों का भी आवाहन किया जाता है. एक कुंड होता है जिसमें मूर्ति का स्नान पूजन वैदिक विधि से आचार्य द्वारा किया जाता है.

फिर मूर्ति में प्राण डालने के लिए पहले अधिवास (श्रेष्ठ जगह पर रखना) कराया जाता है. उसमे जल–वास, पुष्प–वास, अन्न–वास, वस्त्र–वास कराया जाता है. इसके बाद स्नान कराया जाता है. फिर श्रृंगार किया जाता है. मण्डप का पूजन इत्यादि भी करना पड़ता है. उस स्थान का पूजन करने के बाद अंत में होता है नेत्र उन्मीलन. भगवान के आंखों में पट्टी होती है. उसे खोला जाता है, फिर मन्त्रों द्वारा उसमे प्राण डाले जाते हैं. प्राणप्रतिष्ठा का निम्नलिखित मन्त्र है.

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ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रम्हा विष्णु महेश्वरा: ऋषयः। ऋग्यजु: सामानि छंदांसि। (परंपरा अनुसार मंत्र)

ऋगवेद में भी प्राण प्रतिष्ठा का एक मंत्र आता हैं:–असुनीते पुनरस्मासु चक्षुः पुनः प्राणमिह नो धेहि भोगम्. ज्योक् पश्येम सूर्यमुच्चरन्तमनुमते मृळया नः स्वस्ति। (ऋगवेद 10.59.6)

इस तरह स्थापन के बाद पूजन होता है. इसके पश्चात दर्शन कराया जाता है स्थापित मूर्तियों का. जिसकी प्राण प्रतिष्ठा होती है उसके दर्शन होते हैं, यही विधान है उसे प्रणाधान में स्थापित करते हैं. प्राण तो सर्वत्र हैं. प्राण उसे बोलते हैं प्राणकोष में स्थापित करना. परमात्मा सर्वत्र हैं उसे क्या स्थापित करना पर अब वो श्रीविग्रह या उपाधि में प्रकट हो रहें हैं, फिर वे सबकी इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति करेंगे. विशेष बात यह है कि यहां राम की मूर्ति हैं. उनके नाम के आगे भगवान लगता है वे तो सर्वव्यापी हैं. भगवान तो कण कण में हैं. लेकिन चूंकि उनको भगवान राम के रूप में स्थापित किया जा रहा है, तो सनातन धर्म की मान्यता के तहत आचार्यों के मंत्रोच्चारण पर कृत्यकृत्य होना हैं.

उसको उत्सव के रूप में मनाए यह तो सदवृतियों का विस्तार है, पर चंचल होने से मन उन वृतियों को ग्रहण नही कर पाता. इसलिए उत्सवमय अनुकूलता से भगवान भी भक्तों के हो जाते हैं. यहां भक्ति की विशेषता होती है. जहां भक्ति और भाव की विशेषता होती है वहां कर्मकाण्ड आ जाता है. भगवान को सजाते–सजाते हम खुद सज जाते हैं. हमारी मन और बुद्धि भी सज जाती है. हमारा हृदय और चित्त, भाव, भी सज जाता है अर्थात आनंद से भर जाता है. भगवान तो आनंदस्वरूप हैं तो उनसे एक बून्द का आनंद मिल जाए तो तीनों लोक तृप्त हो जाएं. जहां तक अयोध्या की बात है वहां काशी विद्वत परिषद के ही आचार्य हैं. यही परिषद तय करती है कि कौन क्या करेगा. हालांकि राम की परंपरा से ही रामानंदी है और उनसे ही रामानन्दाचार्य हैं. राम ही परमात्मा. इस परम्परा में राम ही परब्रह्म हैं ऐसा मत हैं रामानन्द सम्प्रदाय का इसलिए राम मंदिर भी उन्ही की परंपरा से पूजा होगी. आशा करता हूं आप सभी अपनी व्यवस्था अनुसार रामलला का दर्शन करने आवश्य जायेंगे प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात.

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