Gupt Navratri 2023: गुप्त नवरात्रि के 9 दिन बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं. मान्यता है कि इस दौरान मां दुर्गा के निमित्त पूजा और पाठ करने से आर्थिक और शारीरिक संबंधी समस्याएं खत्म हो जाती है. अगर नौकरी में बाधाएं आ रही हैं, तरक्की के रास्ते बंद हो गए, धन संकट बना है तो गुप्त नवरात्रि में कीलक स्तोत्र का पाठ करें.

श्री दुर्गा सप्तशती में अर्गला स्तोत्र के बाद कीलक स्तोत्र के पाठ करने का विधान है. कीलक का अर्थ है तंत्र देवता और किसी के भी प्रभाव को नष्ट करने वाला मंत्र.

कैसे करें कीलक स्तोत्र का जाप ?

शास्त्रों में बताया गया है कि कीलक स्तोत्र रोजाना तीन बार करने से ये सिद्ध हो जाता है. कीलक मंत्र पहली बार मन ही मन करें, फिर मध्यम स्वर में और फिर उच्च स्वर में इसका पाठ करें. कीलक मंत्र को करने से पहले भगवान शंकर के किसी भी एक मंत्र का 108 बार जाप कर लें.

कीलक स्तोत्र

विनियोग- ॐ अस्य कीलकमंत्रस्य शिव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीमहासरस्वती देवता श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।।

ॐ नमश्चण्डिकायै

मार्कण्डेय उवाच-

ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।

श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे।।1।।

 

सर्वमेतद्विजानीयान्मंत्राणामभिकीलकम्।

सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जप्यतत्परः।।2।।

 

सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि।

एतेन स्तुवतां देवीं स्तोत्रमात्रेण सिद्धयति।।3।।

 

न मंत्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।

विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम्।।4।।

 

समग्राण्यपि सिद्धयन्ति लोकशङ्कामिमां हरः।

कृत्वा निमंत्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम्।।5।।

 

स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः।

समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्निमंत्रणाम्।।6।।

 

सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेव न संशयः।

कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः।।7।।

 

ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति।

इत्थं रूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्।।8।।

 

यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्।

स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः।।9।।

 

न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते।

नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात्।।10।।

 

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति।

ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः।।11।।

 

सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने।

तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जप्यमिदम् शुभम्।।12।।

 

शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।

भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत्।।13।।

 

ऐश्वर्यं तत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः।

शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः।।14।।

 

।।इति श्रीभगवत्याः कीलकस्तोत्रं समाप्तम्।।

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