आज की ऑनलाइन डेटिंग की दुनिया पहले से कहीं ज्यादा तेज, मुश्किल और ऑप्शन्स से भरी हुई है. एक तरफ लोग ऐप्स पर कई प्रोफाइल्स स्क्रॉल करते रहते हैं, तो दूसरी तरफ लगातार मैसेजिंग, लंबी दूरी के रिश्तों की चुनौतियां और इमोशनल थकान भी बढ़ रही है. इसी सब के बीच एक दिलचस्प नया ट्रेंड तेजी से वायरल हो रहा है. जिसका नाम जिप-कोडिंग है. 

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सुनने में यह शब्द थोड़ा अलग लगता है, लेकिन असल में इसका आइडिया बहुत सीधा है. लोग अब ऐसे पार्टनर की तलाश कर रहे हैं जो उन्हीं के इलाके, मोहल्ले या पोस्टल कोड में रहता हो यानी डेटिंग अब सिर्फ कौन अच्छा लगता है पर नहीं, बल्कि कौन पास में रहता है पर भी निर्भर होने लगी है. जिन लोगों को लंबी दूरी की डेटिंग से थकान हो चुकी है या जिन्हें बार-बार दूर जाकर मिलने में परेशानी होती है, उनके लिए यह ट्रेंड काफी अट्रैक्टिव लग रहा है. तो चलिए जानते हैं कि डेटिंग दुनिया का नया वायरल ट्रेंड जिप कोडिंग क्यों चर्चा में है. 

क्या है जिप कोडिंग डेटिंग?

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जिप कोडिंग का मतलब  सिर्फ अपने ही मोहल्ले, इलाके या पोस्टल कोड के अंदर पार्टनर ढूंढना है यानी न कोई लंबी दूरी, न लंबी ड्राइव, न मिलने के लिए भारी-भरकम प्लानिंग. यह तरीका उन लोगों को अट्रैक्ट कर रहा है जो कह रहे हैं कि पास रहने वाला पार्टनर लाइफ आसान बना देता है. 

जिप कोडिंग क्यों चर्चा में?

डेटिंग दुनिया का नया वायरल ट्रेंड जिप कोडिंग का चर्चा में होने के कई कारण हैं. जैसे पास में रहने से मिलने-जुलने में आसानी, कम खर्च, कम समय, डेट प्लान करने में मुश्किल नहीं, रिश्ते को नियमित रूप से निभाना आसान और रोजमर्रा की लाइफ में एक-दूसरे को बेहतर समझना है. आज की तेज जिंदगी में बहुत से लोग ऐसा रिलेशन चाहते हैं जो कम तनाव वाला हो और ज्यादा सिंपल है. 

इंडियन एक्सप्रेस.कॉम से बात करते हुए मनोवैज्ञानिक रशी गुरनानी बताती हैं कि पास-पास रहने का फायदा है. इससे रोज-रोज मिलना सहजता लाता है, छोटे-छोटे पल भी जुड़ाव बढ़ाते हैं, एक ही इलाके से होने पर एक्सपीरियंस मिलते-जुलते होते हैं, परिचित जगहों से सुरक्षा की भावना आती है. मनोविज्ञान में इसे mere exposure effect कहते हैं. जितना आप किसी को बार-बार देखते या मिलते हैं, उतनी ही आसानी से आप उनके प्रति सहज और जुड़े हुए महसूस करते हैं.

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