स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों के मुताबिक, प्रेगनेन्ट और ब्रेस्टफीडिंग करानेवाली महिलाओं को फिलहाल कोविड-19 की वैक्सीन नहीं लगने जा रही है. निर्देश के तहत टीकाकरण से नवजात शिशुओं को भी छूट है. इसलिए, नए बच्चे का स्वागत करने वाले किसी भी घर के लिए अविश्वसनीय रूप से ये तनावपूर्ण समय है.


कोविड-19 के खिलाफ कैसे हो मां और बच्चे की सुरक्षा?


पुणे में मदरहूड अस्पताल के डॉक्टर तुषार पारिख कहते हैं, "ब्रेस्टफीडिंग करानेवाली महिलाओं पर मानव परीक्षण नहीं होने से उनको कुछ समय के लिए टीकाकरण की प्रक्रिया से छूट मिली है." उन्होंने आगे बताया, "जहां तक कोविड-19 का सवाल है, तो मुझे लगता है कि हम सतर्क रुख अपना रहे हैं क्योंकि हमें नहीं मालूम कि किस तरह का प्रभाव प्रेगनेन्ट और स्तनपान करानेवाली महिलाओं पर होगा. हम नहीं जानते हैं कि किस तरह का साइड-इफेक्ट खुद मां में होगा और कैसे ये उसके बच्चे को प्रभावित कर सकता है. स्तनपान करानेवाली महिलाओं को प्रसव काल के बाद हार्मोनल तब्दीली से भी गुजरना पड़ता है. इसलिए, बेहतर है कि क्लीनिक ट्रायल तक इंतजार करें."


हाथ की स्वच्छता और मास्क नई मां की है जरूरत


डॉक्टर स्पष्ट करते हैं कि नवजात और मां की सुरक्षा के लिए एक खास रणनीति की जरूरत है. इसके मुताबकि मां और बच्चे के नियमित संपर्क में आनेवालों को टीकाकरण की आवश्यकता है. अगर घर के हर शख्स का टीकाकरण हो जाए, तो ये उतना ही अच्छा है जितना कि बच्चे का टीकाकरण. मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि हाथ की स्वच्छता और मास्क किसी भी नई मां की जरूरत है, इस संकट के दौरान सबसे महत्वपूर्ण ये भी है कि बच्चा मां के दूध के बिना न रहे.


मां के दूध का जबरदस्त पोषण मूल्य है, उसका सभी रोगजनकों के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रभाव रहा है और इम्यूनिटी के लिहाज से बच्चे के लिए सबसे अहम है, यहां तक कि अगर मां कोरोना पॉजिटिव भी है, तो भी उसे स्तनपान कराना जारी रखना चाहिए. बीएलके अस्पताल दिल्ली में डॉक्टर साक्षी बावेजा का कहना है कि छाती के दूध में कोरोना वायरस नहीं होता है. वास्तव में अगर बच्चे का जन्म समय से पहले होता है और उसे नवजात गहन चिकित्सा इकाई में शिफ्ट करने की जरूरत है, तो भी मां को अपना दूध भेजना चाहिए.


आम पोषण मूल्य के अलावा कई रिसर्च में दावा किया गया है कि उसमें कोविड-19 एंटीबॉडीज होती है. मैसाचुएट्स मेडिकल स्कूल ऑफ यूनिवर्सिटी के हालिया रिसर्च के शुरुआती नतीजों से पता चला है कि 15 महिलाओं में से 14 के दूध में कोविड-19 एंटीबॉडीज पाया गया. ये महिलाएं जन्म देने से पहले कोरोना पॉजिटिव थीं. हालांकि, क्या ये एंटीबॉडीज बच्चे तक ट्रांसफर हो सकती है, अभी तक साफ नहीं है.


जसलोक और लीलावती अस्पताल मुंबई में कंसलटेंट रेशमा ढिल्लो ने बताया कि पहले देखा गया था कि प्रेगनेन्ट महिलाएं जो खास बीमारियों के खिलाफ वैक्सीन लगवाती हैं, वो उन बीमारियों के खिलाफ अपने बच्चों तक एंटीबॉडीज को ट्रांसफर कर सकती हैं. इसलिए, इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा ही कोविड-19 एंटीबॉडीज के मामले में हो.


मनोवैज्ञानिक नताशा मेहता ने कहा, "प्रसवोत्तर काल के दौरान चिंता और डिप्रेशन के अनुभव का मां और बच्चे दोनों की शारीरिक और मानसिक सेहत पर वर्षों नकारात्मक प्रभाव हो सकता है. ये मां-बच्चे के संबंध को प्रभावित कर सकता है और मासूम में विकास के विलंब की वजह बन सकता है." मेहता ने बताया कि सबसे जरूरी है कि एक मां इस दौरान खुद को नजरअंदाज न करे. रूटीन का पालन करना अत्यंत आवश्यक है. रोजाना नहाना, स्वस्थ फूड्स और नियमित भोजन खाना, पर्याप्त पानी पीना, रात को अच्छी नींद लेना बहुत जरूरी है.


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