Kleptomania Treatment And Cure: आमतौर पर बीमारियां सिर्फ दो तरह की होती हैं, मेंटल और फिजिकल. शरीर को होने वाले रोगों के बारे में तो हम अक्सर बात करते हैं लेकिन मन की बीमारी या दिमागी समस्याओं के बारे में कम ही बात की जाती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि ब्रेन में होने वाली समस्याएं अपने आपमें बड़ी रहस्यमयी होती हैं. मेंटल डिसऑर्डर और मेनिया  की एक अलग ही दुनिया है. सैकड़ों तरह के मेनिया और डिसऑर्डर्स होते हैं. इन्हीं में से एक है  क्लिप्टोमेनिया (Kleptomania),जिस इंसान को भी ये मेनिया अपनी गिरफ्त में ले लेता है, उसे चोरी करने की लत लग जाती है.


चोरी क्यों करते हैं लोग?



  • क्लिप्टोमेनिया (Kleptomania)जिन लोगों को हो जाता है, वे मौका मिलते ही चोरी करते हैं. यानी ये प्रफेशनल चोर नहीं होते हैं लेकिन जैसे ही इन्हें कोई मौका मिलता है तो ये चोरी करने से चूकते भी नहीं है और ये सिर्फ उन्हीं चीजों को चुराते हैं, जो इन्हें बहुत पसंद आ गई हो. चोरी करके पैसे कमाने का इनका कोई इरादा नहीं होता.

  •  क्लिप्टोमेनिया ऐसी मानसिक समस्या है, जिसमें व्यक्ति को ये तो पता होता है कि वो चोरी कर रहा है और उसे ये भी समझ होती है कि चोरी करना गलत है. लेकिन जैसे ही उसे चोरी करने के लिए सुटेबल चांस मिलता है, वो अपने अंदर उठने वाले चोरी करने के इमोशन्स को कंट्रोल नहीं कर पाता और जो भी ठीक लगता है उसे चुरा लेता है.


बाद में गिल्ट भी होता है



  • चोरी करने के बाद ज्यादातर केसेज में क्लिप्टोमेनिया के मरीजों को चोरी करने का गिल्ट भी होता है. इस गिल्ट का फील आने में कितना समय लगता है ये अलग-अलग केसेज में अलग होता है और ये भी जरूरी नहीं कि एक पेशेंट को हर बार एक ही टाइम पीरियड में गिल्ट हो जाए. 

  • लेकिन जब इन्हें अपनी गलती का अहसास होता है तो ये चोरी किया हुआ सामान या तो डोनेट कर देते हैं या फिर किसी को यूं ही दे देते हैं. ताकि वो चीज इनके सामने होने पर इन्हें बार-बार अपनी गलती का अहसास ना कराए. हालांकि जब दूसरी बार इन्हें चोरी करने का मौका मिलता है तो ये फिर से कुछ ना कुछ चुरा लेते हैं... और यही क्रम चलता रहता है.


इनकी चोरी भी स्पेसिफिक होती है



  • क्लिप्टोमेनिया के शिकार लोग कुछ खास और छोटी-छोटी चीजें चुराना पसंद करते हैं. आमतौर पर ऐसी चीजें, जिन्हें ये आसानी से अपने पर्स या कपड़ों में छुपा सकें. खास बात यह है कि ये ना तो किसी के घर जाकर कभी चोरी करते हैं और ना ही किसी का पर्स या पैसे चुराते हैं. 

  • आमतौर पर खरीदारी करते समय ये कोई भी छोटी-सी चीज चुरा लेंगे. जैसे, इस मेनिया से पीड़ित कोई व्यक्ति यदि कॉस्मेटिक की शॉपिंग के लिए जाए तो लिपस्टिक या नेलपेंट जैसा कुछ भी चुरा लेगें जो अच्छा लगेगा. हालांकि इनकी चोरी करने की मंशा नहीं होती है लेकिन जैसे ही इन्हें चोरी करने का चांस मिलता है, ये चोरी कर लेते हैं. क्योंकि ऐसा करके इन्हें खुशी मिलती है.


चोरी करने की तीव्र इच्छा जागती है



  • इस मेनिया में व्यक्ति शॉप पर कोई एक सामान खरीदने जाता है तो दूसरा सामान पसंद आने पर उसे चुरा लेता है. फिर भले ही वो सामान सस्ता या महंगा हो. और चाहे वो व्यक्ति उस सामान को खरीदने की क्षमता रखता हो. इसे आप गैरइरादतन चोरी भी कह सकते हैं. क्योंकि ये लोग पहले से प्लान करके कभी नहीं जाते कि हमे फलां चीज चुरानी है.

  • बल्कि अचानक से इनके अंदर चोरी करने की तीव्र इच्छा जागती है और ये उस पल में अपनी उस इच्छा पर कंट्रोल नहीं कर पाते और चोरी कर लेते हैं. हालांकि उस वक्त भी इन्हें समझ आ रहा होता है कि जो ये कर रहे हैं, वो ठीक नहीं है. लेकिन फिर भी ये खुद को रोक नहीं पाते. चोरी करने के बाद इन्हें तुरंत तो बहुत सुकून मिलता है, ये खुद को बहुत हैपी फील करते हैं. हालांकि बाद में इन्हें अपनी गलती का अहसास हो जाता है और फिर ये उस गिल्ट से बाहर आने के लिए भी छटपटाते हैं.


किसी को भी हो सकती है ये समस्या



  • ऐसा नहीं है कि क्लिप्टोमेनिया की समस्या आमतौर पर उन्हीं लोगों को होती है, जो आर्थिक रूप से संपन्न नहीं होते. बल्कि ये समस्या किसी को भी हो सकती है, किसी करोड़पति और अरबपति को भी. यदि आप इस समस्या को देखकर फील करना चाहते हैं और जानना चाहते हैं कि आखिर ऐसा क्या होता है, जो किसी संपन्न घर के इंसान को चोरी करने पर मजबूर कर देता है तो आप इसके लिए मनोज वाजपेयी की फिल्म 'Ray'देख सकते हैं. इस फिल्म में चार छोटी-छोटी कहानियां दिखाई गई हैं और लास्ट वाली कहानी क्लिप्टोमेनिया पर आधारित है. इस मेनिया से ग्रसित व्यक्ति का किरदार मनोज वाजपेयी ने निभाया है. 


संभव है इसका इलाज



  • क्लिप्टोमेनिया पर बात करते हुए मैक्स हॉस्पिटल पटपड़गंज, दिल्ली के सीनियर सायकाइट्रिस्ट डॉक्टर राजेश कुमार कहते हैं कि 'क्लिप्टोमेनिया का इलाज पूरी तरह संभव है और दूसरी किसी भी मेंटल डिजीज की तरह ये भी एक बीमारी ही है, जो ठीक हो सकती है. इसके लिए प्राइमरी तौर पर काउंसलिंग की जाती है और जरूरत होने पर मेडिसिन्स भी दी जाती हैं.'


आपको हैरान करेगी ये बात



  • इस तरह के पेशेंट्स परिवार और सोसायटी में वेल अजेस्टेड होते हैं. इनसे कभी किसी को कोई समस्या नहीं होती है. इसलिए आमतौर पर इनके बारे में पता भी नहीं चल पाता है. हालांकि यह मेनिया इनकी खुद की इमोशनल हेल्थ पर बुरा असर डाल रहा होता है. क्योंकि पकड़े जाने का डर, इंसल्ट होने का डर बना रहता है. ऐसे में अगर इस बीमारी का कोई पेशेंट खुद से सायकाइट्रिस्ट या काउंसलर के पास जाए और अपनी समस्या बताए तो उनकी पहचान को पूरी तरह गुप्त रखते हुए उनका इलाज किया जाता है.

  • क्लिप्टोमेनिया के पेशेंट्स के बारे में बात करते हुए उद्गम मेंटल हेल्थ केयर हॉस्पिटल की सीनियर सायकॉलजिस्ट इरा गुप्ता कहती हैं 'बच्चे और बड़े दोनों ही ऐजग्रुप में इसके पेशेंट्स हो सकते हैं. लेकिन बच्चे के बारे में पैरेंट्स को पता चल जाता है तो वो उसके इलाज पर ध्यान देते हैं. लेकिन अडल्ट्स के लिए इस बात को स्वीकारना कि वो चोरी कर लेते हैं और फिर काउंसलिंग के लिए आना, थोड़ा मुश्किल होता है. हालांकि जो भी पेशेंट्स इस समस्या से छुटकारा पाना चाहते हैं, इलाज के बाद उनके लिए चीजें नॉर्मल हो जाती हैं. '


Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों को केवल सुझाव के रूप में लें, एबीपी न्यूज़ इनकी पुष्टि नहीं करता है. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें. 


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