पार्किंसन डिजीज एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है. अब इसकी पहचान और इलाज में बड़ा बदलाव आने वाला है. हाल ही में Nature Aging में छपी रिसर्च में दावा किया गया है कि एक नई RNA-बेस्ड ब्लड टेस्ट से बीमारी का पता हाथ-पैर कांपने या चलने में दिक्कत जैसे सिम्पटम्स शुरू होने से पहले ही लगाया जा सकता है. यानी अब मरीजों को शुरुआती स्टेज पर ही डायग्नोस करना आसान होगा.

ब्लड टेस्ट कैसे काम करता है?

यह टेस्ट tRNA (Transfer RNA) के छोटे-छोटे फ्रैगमेंट्स पर आधारित है. पहले tRNA को सिर्फ प्रोटीन बनाने की प्रक्रिया से जोड़ा जाता था, लेकिन अब रिसर्च में पता चला कि इसके फ्रैगमेंट्स बीमारी की जानकारी भी दे सकते हैं.

रिसर्चर्स को मिले दो खास बायोमार्कर

  • न्यूक्लियर tRNA फ्रैगमेंट, जो पार्किंसन मरीजों में ज्यादा होता है.
  • माइटोकॉन्ड्रियल tRNA फ्रैगमेंट, जो मरीजों में कम होता है.

इन दोनों के अनुपात से पता लगाया गया कि व्यक्ति नॉर्मल है, शुरुआती स्टेज पर है या एडवांस स्टेज पर. बड़ी स्टडी में इस टेस्ट की सटीकता 86 प्रतिशत निकली.

क्यों खास है यह खोज?

अभी तक पार्किंसन का पता तभी चलता है जब म सिम्पटम्स सामने आते हैं. लेकिन यह ब्लड टेस्ट:

  • यह बाकी इलाजों से काफी सस्ता है 
  • इससे बीमारी के बारे में तेजी से पता चल जाएगा
  • इसके अलावा सिर्फ ब्लड सैंपल से (मिनिमली-इनवेसिव) टेस्ट प्रोसेस हो जाता है.

यह टेस्ट उन लोगों के लिए कारगर हो सकता है जिनमें पार्किंसन का रिस्क ज्यादा है, जैसे, जनेटिक बीमारी, REM Sleep Disorder या सूंघने की क्षमता (Smell) का जल्दी खत्म होना.

FDA अप्रूवल और फ्यूचर

अभी इस टेस्ट पर और ट्रायल होंगे. लेकिन हाल ही में FDA ने Alzheimer’s disease के लिए ब्लड टेस्ट को मंजूरी दी है, जिससे उम्मीद है कि पार्किंसन टेस्ट को भी जल्दी अप्रूवल मिल सकता है. भविष्य में यह टेस्ट सिर्फ डायग्नोस करने के लिए ही नहीं बल्कि डिजीज प्रोग्रेशन ट्रैक करने और ट्रीटमेंट का असर देखने के लिए भी काम आ सकता है. अगर सब ठीक रहा तो यह टेस्ट रूटीन हेल्थ चेकअप का हिस्सा बन सकता है. रिसर्चर्स मानते हैं कि आने वाले समय में इस टेस्ट को और बड़े स्तर पर जांचा जाएगा. साथ ही इसमें और बायोमार्कर्स जोड़कर इसे और सटीक बनाया जाएगा. भविष्य में जेनेटिक टेस्टिंग और ब्रेन इमेजिंग के साथ मिलकर यह एक ताकतवर डायग्नोस्टिक टूल बन सकता है.

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