गुजरात के अहमदाबाद में 12 जून को हुए प्लेन क्रैश ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 टेकऑफ के कुछ ही मिनट बाद क्रैश हो गई, जिसमें 241 यात्रियों की मौत हो गई. इस भयंकर हादसे में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का भी निधन हो गया. हादसे के शिकार हुए लोगों के शव इतनी बुरी तरह जल गए हैं कि पारंपरिक तरीकों से उनकी पहचान करना नामुमकिन है. ऐसे में पहचान के लिए डीएनए टेस्ट का तरीका ही बचा है. क्या आपको पता है कि डीएनए टेस्ट कैसे होता है? अहमदाबाद प्लेन क्रैश में बुरी तरह जले हुए शवों का कौन-सा हिस्सा इस काम में मदद करेगा? वहीं, कितने दूर तक के रिश्तेदारों की इस जांच में मदद ली जाती है? 

Continues below advertisement

क्या होता है डीएनए टेस्ट?

डीएनए यानी डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड टेस्ट एक साइंटिफिक टेक्नीक है, जो किसी शख्स के जेनेटिक स्ट्रक्चर की जांच करके उसकी पहचान करती है. दुनिया के हर शख्स का डीएनए अलग होता है और यह कोशिकाओं के नाभिक में पाया जाता है. यह तकनीक विशेष रूप से तब कारगर होती है, जब शवों की पहचान करना बेहद मुश्किल हो. अहमदाबाद प्लेन क्रैश में शव गंभीर रूप से जल गए हैं, जिसके चलते डीएनए टेस्ट ही पहचान का मुख्य जरिया है. 

Continues below advertisement

कैसे किया जाता है डीएनए टेस्ट? 

डीएनए टेस्टिंग एक मुश्किल, लेकिन व्यवस्थित प्रक्रिया है.  इसमें कई स्टेज के तहत जांच की जाती है. 

  • सैंपल कलेक्शन: डीएनए टेस्ट के लिए सबसे पहले सैंपल लिए जाते हैं. अहमदाबाद प्लेन क्रैश हादसे के बाद गुजरात सरकार ने बीजे मेडिकल कॉलेज में डीएनए के सैंपल रखने की व्यवस्था की है. मृतकों के शवों से हड्डियों, दांत, या टिशूज के सैंपल लिए जाएंगे. इनका मिलान उनके परिजनों जैसे माता-पिता, बच्चे, या भाई-बहन के ब्लड या लार के सैंपल से किया जाएगा. 
  • शवों से कैसे लिए जाते हैं सैंपल? बुरी तरह जले हुए शवों से डीएनए निकालने के लिए फीमर, ह्यूमरस या रिब जैसी हड्डियों के सैंपल लिए जाते हैं. इसके अलावा दांत या बचे हुए टिशू भी बेहद कारगर होते हैं. दरअसल, हड्डियां और दांत ज्याद अहम होते हैं, क्योंकि हाई टेंपरेचर पर भी इनमें डीएनए संरक्षित रहता है. 
  • परिजनों से सैंपल: इसके बाद परिजनों से ब्लड, लार, या गाल की कोशिकाएं (बुक्कल स्वैब) ली जाती हैं. ये नमूने मृतक के डीएनए से मिलान के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. 

नमूनों की सफाई और तैयारी

हादसे में जले हुए शवों से डीएनए निकालना बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि उच्च तापमान और रसायन डीएनए को नष्ट कर सकते हैं. ऐसे में सैंपल को पहले साफ किया जाता है, जिससे बाहरी प्रदूषक जैसे मलबा या सूक्ष्मजीव हटाए जा सकें. इसके लिए सैंपल को नल के पानी और 100% इथेनॉल से धोया जाता है. हड्डियों और दांतों को पाउडर में पीसने के लिए स्टेराइल यंत्र इस्तेमाल किए जाते हैं. 

हड्डियों से कैसे निकाला जाता है डीएनए?

डीएनए निकालने के लिए ऑर्गेनिक एक्सट्रैक्शन प्रक्रिया इस्तेमाल की जाती है. इसके तहत सैंपल को रासायनिक घोल में डालकर डीएनए अलग किया जाता है. अहमदाबाद हादसे में शव 1.25 लाख लीटर ईंधन की आग से प्रभावित हुए हैं. ऐसे में डीएनए की क्वालिटी पर असर पड़ सकता है. हालांकि, नई तकनीक जले हुए अवशेषों से डीएनए निकालने में कामयाब होती हैं.

जांच के लिए कितना डीएनए जरूरी? 

निकाले गए डीएनए की मात्रा और क्वालिटी की जांच रियल-टाइम पीसीआर (पॉलिमरेज चेन रिएक्शन) के माध्यम से की जाती है. ऐसे में सबसे पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि डीएनए जांच के लिए पर्याप्त है या नहीं.

कैसे होती है डीएनए प्रोफाइलिंग?

डीएनए प्रोफाइलिंग में शॉर्ट टैंडम रिपीट्स (STR) की जांच की जाती है. ये डीएनए के ऐसे हिस्से हैं, जो हर व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं. इसके बाद डीएनए प्रोफाइल तैयार की जाती है. अहमदाबाद हादसे में करीब 1000 डीएनए टेस्ट किए जा रहे हैं, जिसमें मृतकों और उनके परिजनों के सैंपलों का मिलान शामिल है.

कितने दूर तक के रिश्तेदारों के लिए जाते हैं सैंपल?

मृतक के डीएनए प्रोफाइल को परिजनों के सैंपल से मिलाया जाता है. इसके लिए माता-पिता या बच्चों के डीएनए से मिलान ज्यादा सटीक माना जाता है, क्योंकि उनके बीच जेनेटिक समानता ज्यादा होती है. अगर अहमदाबाद प्लेन क्रैश जैसे हादसे के तहत जांच हो रही है तो डीएनए टेस्ट की इस प्रक्रिया में कई दिन लग सकते हैं.

ये भी पढ़ें: शारीरिक संबंध बनाने के बाद तुरंत टॉयलेट जाने से क्या नहीं होती है प्रेग्नेंसी? जानें क्या है सच

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.