Electronic Nose Device: कैंसर एक ऐसी खतरनाक बीमारी है, जिसका पता ज्यादातर लोगों को लास्ट स्टेज पर जाकर लगता है. कई बार तो स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि इलाज भी बेअसर हो जाता है. बाकी बीमारियों की तरह वैसे तो कैंसर के भी लक्षण शरीर में उभर के आते हैं, लेकिन हम अक्सर छोट-मोटी समस्या समझकर इन्हें इग्नोर कर देते हैं या ये कहें कि हम लक्षणों को समझ ही नहीं पाते. कैंसर के बाकी प्रकारों के तरह फेफड़े के कैंसर की पहचान कर पाना भी मुश्किल होता है, लेकिन अगर हम कहें कि बस एक फूंक मारकर यह पता चल सकता है कि आपको फेफड़े का कैंसर है या नहीं, तो आपका रिएक्शन क्या होगा? बेशक आप चौंक गए होंगे, लेकिन यह बात पूरी तरह से सच है.    


दरअसल, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (AIIMS) के डॉक्टर और रिसर्चर्स ने इस बात का खुलासा किया है. 'इलेक्ट्रॉनिक नोज़' या 'ई-नोज़' नाम के एक डिवाइस का इस्तेमाल करते हुए रिसर्चर्स वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स (Volatile Organic Compounds) द्वारा फेफड़ों के कैंसर के लक्षणों की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं. 'वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स' रासायनिक तत्वों के मिश्रण से पैदा होने वाले कार्बनिक पदार्थ होते हैं. 


सांसें बताएंगी बीमारी है या नहीं!


एम्स में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन ब्रीथ रिसर्च के हैड डॉ. अनंत मोहन बताते हैं कि जब भी हम सांस बाहर छोड़ते हैं, हम कई कंपाउंड्स जैसे- एल्केन्स और बेंजीन को भी छोड़ते हैं. हालांकि उनकी संरचना बीमारी से बीमारी में और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति अलग-अलग होती है. इनमें से कुछ वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स (VOC) उन लोगों में अप-रेगुलेटेड हो सकते हैं, जिन्हें फेफड़े का कैंसर है. जबकि उनमें से कुछ डाउन-रेगुलेटेड भी हो सकते हैं. अलग-अलग बीमारियां इन वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स के अलग-अलग पैटर्न को प्रॉड्यूस करेंगी.


लंग कैंसर का पता लगाएगा डिवाइस


हालांकि जब हम इस पैटर्न को पहचान लेंगे, तो ई-नोज़ के जरिए चल रही सांसें या छोड़ी गई सांसों की मदद से बीमारी का पता लगा सकते हैं. ई-नोज़ में VOC को मापने के लिए कई सेंसर लगे होते हैं. डॉ मोहन कहते हैं कि रिसर्चर्स हेल्दी लोगों और फेफड़ों के कैंसर से पीड़ितों के वीओसी इकट्ठे कर रहे हैं और उन लोगों की तुलना भी कर रहे हैं, जो बीमारी का सिग्नल दे सकते हैं. फेफड़े के कैंसर का पता लगाने के लिए एक व्यक्ति को बस ई-नोज़ डिवाइस में फूंक मारनी है यानी सांसें छोड़नी हैं. डॉ मोहन ने कहा कि ये डिवाइस भारत जैसे विकासशील देशों में लंग कैंसर का जल्दी पता लगाने में लोगों की काफी हेल्प कर सकता है, क्योंकि यहां कई लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं देर से पहुंचती हैं.


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