सस्ती दवा एस्पिरिन कोविड-19 से अस्पताल में भर्ती मरीजों की स्थिति को बेहतर नहीं करती है. ये खुलासा ब्रिटेन में होनेवाली एक रिसर्च से हुआ है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं को उम्मीद थी कि ब्लड पतला करनेवाली दवा अस्पताल में भर्ती कोविड-19 के मरीजों की मदद कर सकती है. गौरतलब है कि कोविड-19 के मरीजों में ब्लड क्लॉट्स बनने का खतरा बहुत ज्यादा होता है.


कोविड-19 के इलाज में एस्पिरिन से नहीं हुआ फायदा


शोधकर्ता जानना चाहते थे कि एस्पिरिन कोविड-19 पीड़ितों में ब्लड क्लॉट्स का खतरा कम करने में मददगार साबित हो सकती है या नहीं. पिछले साल नवंबर महीने में कोविड-19 के मरीजों पर एस्पिरिन पर रिसर्च शुरू हुआ था. शोधकर्ताओं ने पाया कि दवा मौत को रोकने में मदद नहीं कर सकी. 'रिकवरी' नामक परीक्षण के तहत कोरोना वायरस के कारण अस्पताल में भर्ती लोगों के लिए विभिन्न संभावित दवाओं को जांचा जा रहा है. परीक्षण में करीब 15 हजार कोरोना वायरस से अस्पताल में भर्ती मरीजों को शामिल किया गया. आधे मरीजों को रोजाना 150 मिलीग्राम एस्पिरिन का खुराक दिया गया जबकि आधे का सामान्य तरीके से इलाज हुआ.


28 दिनों बाद दोनों समूह में मृत्यु दर 17 फीसद रही


शोधकर्ताओं ने रिसर्च में पाया, "इसका कोई सबूत नहीं मिला कि एस्पिरिन से इलाज ने मृत्यु दर को घटा दिया" और "मरनेवाले लोगों की संख्या में स्पष्ट अंतर नहीं देखा गया." अस्पताल में इलाज के 28 दिनों बाद दोनों समूह में मृत्यु दर 17 फीसद रही. हालांकि, एस्पिरिन के इस्तेमाल से मरीजों के जीवित डिस्चार्ज होने की थोड़ी संभावना बढ़ गई, लेकिन ये कोविड-19 से अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए उसके व्यापक इस्तेमाल को न्यायसंगत ठहराने के लिए प्रयाप्त नहीं है. रिसर्च टीम में शामिल प्रोफेसर मार्टिन लिंडरे ने रिसर्च के नतीजों को मायूस करनेवाला बताया है.


उन्होंने कहा, "मजबूत संकेत मिला है कि ब्लड क्लॉटिंग कोविड-19 से गंभीर रोगियों में लंग के कामकाज को खराब करने और मौत की जिम्मेदार हो सकती है. एस्पिरिन अन्य बीमारियों में ब्लड क्लॉट्स के खतरे को कम करने में व्यापक इस्तेमाल होनेवाली और सस्ती दवा है. इसलिए नतीजे मायूस करनेवाले हैं कि उसके इस्तेमाल से उन मरीजों को कोई खास फायदा नहीं हुआ. एस्पिरिन पर होनेवाली रिसर्च के नतीजे किसी पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुए हैं बल्कि प्री-प्रिंट सर्वर medRxiv पर जारी किया गया है.


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