नई दिल्ली: दुनिया को योग की सरल भाषा सिखाते राम कृष्ण यादव को योग ने ही योग गुरु बाबा रामदेव बना दिया. 50 साल के बाबा रामदेव का जन्म हरियाणा के महेंद्रगढ़ में हुआ था.

बचपन में ही शहीद भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल की तस्वीरें देखकर रामदेव क्रांतिकारी बनने की सोचा करते थे. किसे पता था कि रामदेव एक दिन देश में योग की क्रांति लाएंगे ?

यूं तो बाबा रामदेव से पहले महर्षि महेश योगी और अयंगर जैसे योग गुरुओं ने दुनिया भर में योग का डंका बजाया है लेकिन योग को देह, स्वास्थ्य और सौंदर्य से जोड़ कर बाबा रामदेव ने योग की जो नई पैकेजिंग की है उसने उन्हें देश-विदेश में घर-घर तक पहुंचा दिया है. आज बाबा रामदेव योग के ब्रैंड एंबेसडर बन गए हैं.

बाबा रामदेव ने खेत और खलिहान से लेकर हिमालय के बियाबान तक योग का एक लंबा सफर तय किया है लेकिन उनका योग, हिमालय की गुफाओं और कंदराओं में छिपा नहीं रहा.

इसके बिल्कुल उलट टेलीविजन के रुपहले परदे पर उतर कर रामदेव का योग आम आदमी के बेडरुम तक भी जा पहुंचा है. बाबा रामदेव का प्रणायाम, अनुलोम विलोम और कपाल भाति आसन आज घर घर में लोग जानते हैं.

करीब 20 साल पहले बाबा रामदेव ने गुजरात में शिविर लगा कर योग सिखाने की शुरुआत की थी. साल 1995 में ही जब बाबा रामदेव संन्यासी बने थे तब उनके योग गुरु शंकरदेव महाराज ने हरिद्वार में उन्हें और उनके दो दोस्तों बालकृष्ण और कर्मवीर के साथ मिल कर दिव्य योग ट्रस्ट की स्थापना की थी.

दिव्य योग ट्रस्ट उन दिनों हरियाणा और राजस्थान के शहरों में हर साल करीब पचास योग कैंप लगाता था उन दिनों बाबा रामदेव को अक्सर हरिद्वार की सड़कों पर स्कूटर चलाते देखा जाता था.

साल 2002 में गुरु शंकरदेव की खराब सेहत के चलते बाबा रामदेव दिव्य योग ट्रस्ट का चेहरा बने जबकि उनके दोस्त बालकृष्ण ने ट्रस्ट के फाइनेंस का जिम्मा संभाला और कर्मवीर को ट्रस्ट का प्रशासक बनाया गया था. इसके बाद से ही गुरुकुल के जमाने के ये तीनों दोस्त पतंजलि योगपीठ के आर्थिक साम्राज्य को आगे बढ़ा रहे हैं.

देश ही नहीं विदेश में भी पतंजलि योगपीठ का परचम लहरा रहा है. ब्रिटेन, अमेरिका, नेपाल, कनाडा और मॉरिशस में पतंजलि योगपीठ की दो दो शाखाएं हैं.