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मोदी के अमेरिका दौरे के बाद डीप स्टेट को मिला जवाब, दक्षिण एशिया में भारत के नेतृत्व को अमेरिका ने लिया मान

अमेरिका समझता है कि दक्षिण एशिया मे भारत का एक महत्वपूर्ण स्थान है तथा पूरे एशिया मे भारत ही जिम्मेदार लोकतंत्र है, हमारे पड़ोसी देशों को देखें तो वहां विफल लोकतंत्र, सत्तावाद नज़र आता है.

एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की गहरी दोस्ती की तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी. पीएम मोदी की दो दिन की अमेरिका यात्रा पूरी हो चुकी है और वो भारत वापस लौट रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पांच साल बाद मुलाकात हुई . व्हाइट हाउस में उनका स्वागत किया गया. प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति के आधिकारिक मेहमानों के लिए बने ऐतिहासिक अतिथि गृह ब्लेयर हाउस में ठहरे थे.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 13 तारीख को प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की. इसके साथ ही वे कई प्रमुख लोगों से भी मिले, जिसमें अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज, टेस्ला के सीईओ और DOGE प्रमुख एलन मस्क और भारतीय मूल के राजनेता विवेक रामास्वामी भी शामिल हैं. मुलाकात बहुत ही पारिवारिक माहौल में संपन्न हुई.

ट्रंप का टैरिफ वॉर और भारत 

यह पूरा दौरा काफी अच्छा रहा. मोदी बहुत कम समय के लिए वहां थे, लेकिन मैराथन मीटिंग्स की. द्विपक्षीय वार्ताएं उन्होंने एक के बाद एक की. तुलसी गाबार्ड हों, एलन मस्क हों या जूडी वेंच हों, सबके साथ मुलाकात में एक सहजता और पारिवारिकता देखने को मिली, जो दर्शाता है कि अमेरिका के वर्तमान नेतृत्व के साथ पारिवारिक टच है. वह मस्क के साथ जिस तरह मिले और मस्क ने भारत में निवेश के इरादे जताए. ट्रंप ने लाइव टेलीविजन पर कहा, 'वी मिस्ड यू' तो यह एक अच्छा-खासा दौरा था.

बांग्लादेश के मुद्दे पर भी ट्रंप ने दो कदम आगे बढ़कर यह कह दिया कि भारत जो तय करेगा, उसके साथ वह रहेंगे. भारत के जो कुछ प्रमुख मुद्दे थे, वह इस दौरे में हल हुए हैं, कुछ पर वार्ता हुई है और कुछ पर प्रगति बाकी है. जहां तक टैरिफ-वॉर का सवाल है तो ट्रंप के इस कदम से पूरी दुनिया सकते में है, लेकिन भारत को वहां भी रियायत मिली है. ट्रंप ने कहा कि वह रेसिप्रोकल टैरिफ करेंगे यानी भारत जितना लगाएगा, उतना ही वह भी लगाएंगे और इसके साथ व्यापार को दोगुना करने की भी बात हुई है. ट्रंप ने कहा कि अमेरिका एक बैलेंस बनाकर चलेगा. 

सामरिक मसलों पर बनी है बात

सामरिक मुद्दों और आतंकवाद पर खात्मे पर भी बात हुई है. अंतरराष्ट्रीय मसलों जैसे हमास-इजरायल युद्ध या रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी बातचीत हुई. इसके अलावा भारत की भू-राजनैतिक स्थिति और चिंताओं पर भी खुलकर बातचीत हुई है, तो भारत एक तरह से विन-विन सिचुएशन में रहा है. क्वाड को भी चार कदम और ले जाने की बात हुई है. भारत की हिंद महासागर में महत्वपूर्ण स्थिति को देखते हुए अमेरिका और ट्रंप ये चाहते हैं कि क्वाड में भारत की भूमिका बड़ी हो. उसी की तर्ज पर कई सारे रक्षा समझौते भी हुए हैं. जैसे, पी-81 जो एक मेरीटाइम सर्विलांस एयरक्राफ्ट है, न्यूक्लियर रिएक्टर पर बात हुई है, तो यह कहा जा सकता है कि बातचीत समग्र रही और ऐसा कहा जा सकता है कि आने वाले चार साल भारत-अमेरिका के बीच संबंध और सघन होंगे, अपनी ऊंचाई को छुएंगे. 

बांग्लादेश को लेकर क्या कहा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच गुरुवार को ओवल ऑफिस में द्विपक्षीय बातचीत हुई. दोनों नेताओं ने इस दौरान व्यापार संबंधों से लेकर अवैध प्रवासियों समेत कई मुद्दों पर चर्चा की. इसी मीटिंग के बीच राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, बांग्लादेश का फैसला प्रधानमंत्री मोदी करेंगे. अमेरिका समझता है कि दक्षिण एशिया मे भारत का एक महत्वपूर्ण स्थान है तथा पूरे एशिया मे भारत ही जिम्मेदार लोकतंत्र वाला देश है, हमारे पड़ोसी देशों को देखें तो वहां विफल लोकतंत्र, सत्तावाद जैसी चीज़े नज़र आती हैं.

ऐसे मे यह बोलना कि बांग्लादेश का विषय हम भारत पर छोड़ते हैं, पाकिस्तान के मुह पर भी करारा तमाचा है, क्योंकि जो बाइडेन के समय तो यह माना जा रहा था कि डीप स्टेट पाकिस्तान के स्लीपर सेल के माध्यम से बांग्लादेश में गदर मचा रहा है और इसी वजह से मुजीबुर्रहमान के पुतले तोड़े गए, हिंदू अल्पसंख्यकों का नरसंहार हुआ और अब तो कई मानवाधिकार संगठनों की यह रिपोर्ट है कि 1500 से अधिक हिंदुओं को मारा गया और अभी भी अत्याचार जारी है.

इस बयान से बांग्लादेश और पाकिस्तान दोनों ही बैकफुट पर रहेंगे और भारत पूरे दक्षिण एशिया में अपने नेतृत्व के माध्यम से यहां चल रहे उथलपुथल पर रोक लगाएगा. भारत को अमेरिका भी लीड लेते हुए देखना चाहता है और यह बयान कहीं न कहीं चीन के लिए भी था. दरअसल, चीन एशिया पैसिफिक के पूरे इलाके पर अपनी चौधराहट चाहता है, लेकिन इस बयान में बहुत कुछ छिपा हुआ है. अमेरिका चाहता है कि भारत इस पूरे इलाके में लीड ले और दक्षिण एशिया की राजनीति को अपने हिसाब से दिशा दे. 

चीन के खिलाफ भारत है अमेरिका की जरूरत

यह सवाल अक्सर पूछा जाता है कि क्या चीन को कांउटर करने करने के लिए भारत को और निकटतम सहयोगी बनाएगा अमेरिका? तो, चीन को काउंटर करने के लिए अमेरिका का स्वार्थ तो है ही. हालांकि, यह भारत के राष्ट्रीय हित में है कि चीन अपनी हदों में रहे. अगर चीन इस क्षेत्र का चौधरी बन गया तो भारत के लिए मुश्किलें जाहिर तौर पर बढ़ेंगी. भारत की अच्छी खासी सीमा चीन से मिलती है, हालांकि वैसे तो हमें तिब्बत बोलना चाहिए, लेकिन तिब्बत पर भी चीन ने कब्जा किया हुआ है.

अभी हाल ही में दलाई लामा को जेड प्लस सुरक्षा दी गई, क्योंकि खुफिया सूचनाएं ऐसी मिलीं कि उनकी हत्या की कोशिश की जा सकती है. दलाई लामा की हत्या से किसको फायदा होगा, यह जानने के लिए रॉकेट साइंस जानने की जरूरत नहीं है. चीन को भारत भी उसकी हदों में रखना चाहता है क्योंकि चीन पर विश्वास करना बेवकूफी ही होगी, क्योंकि पहले ही नेहरू के इसी विश्वास के कारण 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ औऱ भारत को अपनी अच्छी-खासी जमीन गंवानी पड़ी. अगर हमने चीन को काबू मे कर लिया तो पाकिस्तान भी काबू मे आ जाएगा, क्योंकि चीन ही वह देश है, जिसने पाकिस्तान को परमाणु बम दिया. 

अभी कई दिनों से पाकिस्तान के शीर्ष नेता चीन में बैठे हुए हैं. इस तरह का दौरा चौंकाता भी है, जिसमें जाने की तारीख तो है, लेकिन आने की नहीं है. ऐसा लगता है कि पाक कटोरा लेकर चीन में घूम रहा है और जब तक कुछ ढंग की आर्थिक मदद नहीं मिल जाती, वह नहीं लौटेंगे. तो, यह एक अच्छी रणनीति है और इससे अमेरिका और भारत दोनों का ही फायदा है. 

डॉक्टर अमित सिंह ने जेएनयू से इंटरनेशनल रिलेशन में पीएचडी करने के बाद चार साल भारतीय नौसेना के थिंक टैंक के साथ काम किया. फिलहाल, वह JNU में अंतरराष्ट्रीय संबंधों एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विषयों को पढ़ाते हैं और एसोसिएट प्रोफेसर हैं.
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