India USA Relation: पिछले दो दशक में भारत-अमेरिका संबंधों में व्यापार और रक्षा सहयोग सबसे महत्वपूर्ण पक्ष हुआ करते थे. लेकिन अब वक्त की नज़ाकत को देखते हुए दोनों देशों ने आपसी सहयोग के नए आयामों पर काम करना शुरू कर दिया है. 


पिछले कुछ दिनों में द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के लिहाज से दोनों ही देशों ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं. इनमें सबसे ख़ास क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (ICET) पहल है. ये महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर ऐतिहासिक भारत-अमेरिका पहल है. इस पहल के तहत दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच पहली बैठक भी 31 जनवरी को वॉशिंगटन डीसी में हो चुकी है. व्हाइट हाउस में हुई इस बैठक के जरिए भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन ((Jake Sullivan) ने इस पहल की शुरुआत की थी.


पहल को लेकर जो बाइडेन बेहद उत्साहित


अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन इस पहल को लेकर बेहद उत्साहित नजर आ रहे हैं. उनका मानना है कि इस पहल से भविष्य में दोनों देशों की साझेदारी नए मुकाम पर पहंचेगी. राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा है कि आईसीईटी दोनों देशों की साझेदारी में लोकतांत्रिक प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र (democratic technology ecosystem) बनाने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. कूटनीति के नजरिए से भारत-अमेरिका संबंधों में आईसीईटी भविष्य में एक बड़ा कदम साबित होगा. व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरिन ज्यां-पियरे (Karine Jean-Pierre) ने कहा है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन का मत है कि इस पहल से दोनों देशों में लोकतांत्रिक मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने में मदद मिलेगी. अमेरिका इसे भारत के साथ बेहद महत्वपूर्ण पहल और साझेदारी के रूप में देख रहा है.


संबंधों के लिहाज से ICET क्यों है महत्वपूर्ण


भारत-अमेरिका के बीच ये एक नई पहल है. इस पहल पर दोनों देशों के बीच सहमति बीते साल जापान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की बातचीत के दौरान बनी थी. मई 2022 में टोक्यो में क्वाड लीडर्स समिट के इतर दोनों नेताओं की मुलाकात हुई थी. इस बैठक के बाद जारी साझा बयान में आईसीईटी का जिक्र किया गया था. उसी वक्त दोनों नेताओं ने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों को महत्वपूर्ण उभरती प्रौद्योगिकियों में साझेदारी का नेतृत्व करने का निर्देश दिया था. ICET के जरिए एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, 5जी-6जी, बायोटेक, अंतरिक्ष और सेमीकंडक्टर्स जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों की सरकार, शिक्षा और उद्योग के बीच मजबूत संबंध स्थापित किया जाना है. एडवांस टेक्नोलॉजी के मुद्दे पर सहयोग बढ़ेगा और हार्डवेयर कैपेबिलिटी में निवेश की संभावनाएं बेहतर होंगी. क्वांटम तकनीक पर चर्चा होंगी, जिससे आने वाले दिनों में शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव सामने आ सकता है. सेमीकंडक्टर्स उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त रोडमैप बनाने को लेकर सहमति बनने की उम्मीद है. इस पहल के जरिए स्पेस टेक्नोलॉजी में भी दोनों देश एक-दूसरे के अनुभवों को साझा कर सहयोग को बढ़ाएंगे. आईसीईटी का मकसद प्रौद्योगिकी श्रृंखलाओं का निर्माण करके और वस्तुओं के सह-विकास और सह-उत्पादन का समर्थन करके दोनों देशों के बीच विश्वसनीय प्रौद्योगिकी भागीदारी बनाना है. इसका मकसद स्थायी तंत्र के जरिए विनियामक प्रतिबंधों, निर्यात नियंत्रण और बाधाओं को दूर करना भी है.


ICET का दिखने लगा है असर


ICET के तहत पहली बैठक के बाद ही इसका असर भी दिखने लगा है. दोनों देशों की कंपनियों की ओर से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ड्रोन और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में मिलकर काम करने की दिशा में फैसले लेने शुरू कर दिए हैं. इसके साथ ही स्पेस और वैज्ञानिक अनुसंधान में सहयोग को लेकर भी दोनों देश काफी संजीदा नज़र आ रहे हैं. 


एआई, ड्रोन और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भागीदारी


अमेरिका की ऊर्जा और रक्षा कंपनी जनरल अटॉमिक्स (General Atomics) ने भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ड्रोन और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में तीन महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू की हैं. जनरल अटॉमिक्स ग्लोबल कॉरपोरेशन के सीईओ विवेक लाल ने ये जानकारी दी है. अमेरिकी कंपनी ने विमान का ढांचा बनाने के महत्वपूर्ण क्षेत्र में भारत फोर्ज के साथ साझेदारी की है. वहीं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्षेत्र में अगली पीढ़ी की तकनीक के विकास के लिए अमेरिकी कंपनी, भारतीय एआई कंपनी '114 एआई' के साथ काम करेगी. जनरल अटॉमिक्स ने सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में  भारतीय स्टार्ट-अप '3आरडीटेक' के साथ भागीदारी की है.


वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के बीच सहयोग


वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के बीच शोध के क्षेत्र में भी भारत और अमेरिका सहयोग बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. ICET की बैठक के बाद दोनों देशों ने इससे जुड़े एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके जरिए दोनों देशों के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के बीच अनुसंधान परियोजनाओं के चयन और वित्त पोषण प्रक्रिया को मजबूत किया जाएगा. ये करार विज्ञान और इंजीनियरिंग के सभी गैर-चिकित्सा क्षेत्रों में मौलिक अनुसंधान और शिक्षा का समर्थन करने वाली अमेरिका की एक स्वतंत्र एजेंसी नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) के साथ हुआ है. इस मौके पर अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधू भी मौजूद थे. अमेरिकी एजेंसी एनएसएफ का कहना है कि इस करार के जरिए अमेरिका और भारत के बीच मजबूत वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संबंध बनेंगे. साथ ही कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग, भूविज्ञान, गणित और भौतिक विज्ञान, इंजीनियरिंग, आधुनिक तकनीक में सामरिक नजरिए से दोनों देश अपनी भागीदारी बढ़ाएंगे. इसके जरिए दोनों देश दुनिया के सामने तकनीक के मामले में भविष्य की रूपरेखा निर्धारित कर सकते हैं.


'MQ-9B प्रीडेटर आर्म्ड ड्रोन' सौदा


भारत और अमेरिका 'MQ-9B प्रीडेटर आर्म्ड ड्रोन' सौदे को जल्द अमली जामा पहनाना चाहते हैं. इस तरह के 30 ड्रोन का सौदा होना है, जिसकी लागत तीन अरब डॉलर है. पांच साल से इस सौदे पर काम चल रहा था. इस सौदे का एलान 2017 में किया गया था. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अमेरिकी यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर भी चर्चा की थी. सामरिक नजरिए से भारत के लिए इस ड्रोन की बहुत ज्यादा अहमियत है. ये ड्रोन भारत की सुरक्षा और रक्षा जरूरतों के लिए खास महत्व रखता है. इससे भारत को चीन से लगी सीमा वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर निगरानी रखने में मदद मिलेगी. उसके साथ ही हिंद महासागर में निगरानी तंत्र को मजबूत करने में मदद मिलेगी. 30 ड्रोन में से तीनों सेनाओं को 10-10 ड्रोन दिए जाने हैं. अमेरिका के लिहाज से भी ये सौदा जरूरी है.  इससे अमेरिका में रोजगार के मौके बढ़ेंगे. अगले साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होना है और उस लिहाज से ये सौदा राजनीतिक तौर से भी फायदेमंद है.


'MQ-9B प्रीडेटर आर्म्ड ड्रोन' की खासियत


भारतीय सेना के पास इस श्रेणी के जितने भी विमान हैं, उनकी तुलना में 'MQ-9B प्रीडेटर आर्म्ड ड्रोन' ज्यादा दूर तक उड़ान भर सकता है. ये हवा में अधिक समय तक रह सकता है. साथ ही किसी भी अभियान को ज्यादा कारगर बनाने में समर्थ है. इसके जरिए हर परिस्थिति और दिन-रात में फुल मोशन वीडियो मिल सकता है. इससे ऑनबोर्ड सिस्टम के साथ दूसरी जानकारी भी मिलती है. MQ-9B विमान की आज दुनिया में बहुत ज्यादा मांग है. ये एक साथ कई भूमिका निभा सकता है और इसे काफी दूर से संचालित किया जा सकता है. फिलहाल जापान, बेल्ज़ियम, ब्रिटेन जैसे देश इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.


एनएसए अजित डोभाल की अमेरिकी यात्रा


भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 30 जनवरी से एक फरवरी तक अमेरिका की यात्रा की थी. इस दौरान अजित डोभाल और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने 31 जनवरी को व्हाइट हाउस में 'इनीशिएटिव फॉर क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी' (ICET) की पहली उच्च स्तरीय बैठक की. इस बैठक में दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल भी शामिल हुए. अमेरिकी यात्रा पर अजित डोभाल के साथ उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी गया था. इसमें भारत के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार अजय कुमार सूद, इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ, रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार जी सतीश रेड्डी, दूरसंचार विभाग के सचिव के राजाराम और डीआरडीओ के महानिदेशक भी गए थे. अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल में नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के प्रशासक, नेशनल साइंस फाउंडेशन के निदेशक, नेशनल स्पेस काउंसिल के कार्यकारी सचिव और विदेश मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए. इस हाई प्रोफाइल डेलीगेशन से ही दोनों देशों के लिए ICET के महत्व को बखूबी समझा जा सकता है.


एनएसए की अमेरिकी यात्रा से सहयोग को मिलेगी गति


भारत का भी मानना है कि अजित डोभाल की अमेरिका यात्रा से दोनों देशों के बीच सहयोग को गति देने का आधार तैयार हुआ है. इस दौरान दोनों देशों ने नए क्षेत्रों की पहचान की, जिसमें सहयोग को बढ़ाकर सामरिक साझेदारी को और मजबूत किया जा सकता है. ICET पहल को दोनों ही देश व्यापक, वैश्विक रणनीतिक साझेदारी की परिपक्वता के लिए महत्वपूर्ण मान रहे हैं. अजित डोभाल के साथ बैठक में अमेरिका ने कानून में बदलाव कर भारत के लिए निर्यात बाधाओं को कम करने का आश्वासन दिया है. इसके साथ ही भारत के सेमीकंडक्टर अभियान के लिए इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स सेमीकंडक्टर एसोसिएशन और यूएस सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन को शामिल करते हुए एक टास्कफोर्स बनाने पर भी सहमति बनी है. दोनों देश रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में साझा उत्पादन को बढ़ाने पर भी सहमत हुए हैं. इसके साथ ही अगली पीढ़ी के दूरसंचार तकनीक पर भी संवाद शुरू करने पर दोनों देश राजी हुए हैं. इसमें 5G/6G और O-RAN (Open Radio Access Networks) को भी शामिल किया जाएगा.


हर बाधा को तोड़ने के लिए तैयार


क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पर पहल के जरिए दोनों देश ये भी बताना चाह रहे हैं कि अब भारत और अमेरिका संबंधों में आने वाली हर बाधा को तोड़ने के लिए बिल्कुल तैयार हैं. साथ ही तकनीक, स्पेस और रक्षा संबंध को भी मजबूत करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे. व्यापारिक संबंध तो पहले से ही बेहद मजबूत है. इसलिए अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना हुआ है. पहली आईसीईटी बैठक रिश्तों की मजबूती के लिए मील का पत्थर है. अब दोनों ही देश चाहते हैं कि उभरती हुई प्रौद्योगिकी साझेदारी से आपसी लाभ बढ़ाया जाए. द्विपक्षीय अंतरिक्ष सहयोग को आगे बढ़ाने के तरीकों पर दोनों देश लगातार चर्चा कर रहे हैं. भारत और अमेरिका द्विपक्षीय अंतरिक्ष साझेदारी को अब उच्च कक्षाओं (ORBIT) में ले जाने के लिए तत्पर दिख रहे हैं. भारत-अमेरिका सिविल स्पेस ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप (CSZWG) की आठवीं बैठक 30-31 जनवरी के बीच हुई थी. इसमें पृथ्वी और अंतरिक्ष विज्ञान के साथ-साथ मानव अंतरिक्ष खोज, वैश्विक नौवहन उपग्रह प्रणाली, अंतरिक्ष उड़ान सुरक्षा और वाणिज्यिक अंतरिक्ष से जुड़ी नीतियों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई थी.


राजनयिक संबंधों की स्थापना के 75 साल


भारत और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हैं जिनमें काफी समानताएं भी हैं. भारत और अमेरिका के राजनयिक संबंधों की स्थापना के 75 साल हो गए हैं. दोनों देशों के लंबे राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्तों में कई बार उतार-चढ़ाव भी आए, लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत और अमेरिका के रिश्ते में काफी मज़बूती आई है. दोनों देशों ने कई बार वैश्विक मंचों पर एक साथ आकर दुनिया को ये दिखा दिया कि उनके आपसी रिश्ते कितने मज़बूत हुए हैं. हाल-फिलहाल की गर्मजोशी से ये दिख रहा है कि 2023 में दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच संबंधों में और प्रगाढ़ता आएगी. 


ये भी पढ़ें:


2047 तक भारत कैसे बनेगा सुपरपावर, अमृत काल के पहले बजट में पेश किया गया खाका