ABP Entrepreneurship Conclave: भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य पर बोलते हुए एबीपी न्यूज़ के एंटरप्रेन्यरशिप कॉन्क्लेव में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने साफ कहा कि इसके लिए भारत को एक स्पष्ट, दीर्घकालिक और व्यावहारिक रणनीति पर लगातार काम करना होगा. उन्होंने कहा कि बीते कुछ वर्षों में सरकार ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को आसान बनाने की दिशा में कई बड़े सुधार किए हैं. जीएसटी प्रणाली को सरल बनाया गया है, लेबर लॉ में बदलाव किए गए हैं और टैक्स स्ट्रक्चर को ज्यादा पारदर्शी बनाया गया है, ताकि निवेशकों का भरोसा बढ़े और आर्थिक गतिविधियों को गति मिल सके. उनका मानना है कि इन सुधारों का असर धीरे-धीरे दिखेगा और यह किसी एक झटके में नहीं आता.

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अमेरिका से क्यों नहीं अब तक ट्रेड डील?

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार की पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) जैसी योजनाओं को लेकर अक्सर चीन से तुलना की जाती है, लेकिन भारत और चीन की परिस्थितियां अलग हैं. चीन ने दशकों पहले एक अलग मॉडल अपनाया था, जबकि भारत एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में संतुलन के साथ आगे बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अब स्थिरता आई है और यह एक मजबूत आधार तैयार कर रहा है. यह जरूरी नहीं कि भारत को चीन जैसा ही मॉडल अपनाना पड़े, बल्कि भारत को अपनी ताकत के हिसाब से रास्ता बनाना होगा.

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भारत-अमेरिका ट्रेड डील को लेकर जारी अनिश्चितता पर मुख्य आर्थिक सलाहकार ने साफ कहा कि इस बारे में अंतिम जानकारी वाणिज्य मंत्रालय ही दे सकता है. आम नागरिक केवल उम्मीद कर सकता है. टैरिफ के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि जब पहली बार 25 प्रतिशत का रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया गया था, तब इंडस्ट्री पहले से इसके लिए मानसिक रूप से तैयार थी. यानी यह पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था. वैश्विक व्यापार आज बेहद जटिल हो चुका है और हर देश अपने हितों को प्राथमिकता दे रहा है.

रुपये में गिरावट

रुपये में गिरावट को लेकर पूछे गए सवाल पर वी. अनंत नागेश्वरन ने एक अहम आर्थिक तथ्य की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि आमतौर पर जब कोई देश अपनी करेंसी को मजबूत करना चाहता है, तो वह ब्याज दरें बढ़ाता है. लेकिन भारत के मामले में स्थिति अलग है. इतिहास गवाह है कि जब किसी देश में सेविंग्स और करेंट अकाउंट से जुड़ी स्थितियां बदलती हैं, तो करेंसी पर दबाव आता है. उन्होंने संकेत दिया कि रुपये की कमजोरी को केवल नकारात्मक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके पीछे व्यापक आर्थिक संदर्भ को समझना जरूरी है.

भारतीय अर्थव्यवस्था और रोजगार को लेकर उन्होंने कहा कि भारत में जॉबलेस ग्रोथ जैसी स्थिति नहीं है. इसके सबूत के तौर पर उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में मनरेगा की मांग घटी है, जो यह दिखाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अन्य अवसर बढ़े हैं. इसके अलावा, पिछले दो वर्षों में फॉर्मल सेक्टर में करीब 1.5 करोड़ नए रोजगार जुड़े हैं. उनका मानना है कि मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट बढ़ाकर भारत रोजगार सृजन को और मजबूत कर सकता है.

एआई

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को लेकर उन्होंने संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की बात कही. उन्होंने कहा कि एआई अभी शुरुआती दौर में है और इसके सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पहलुओं पर चर्चा जरूरी है. कुछ क्षेत्रों में एआई रोजगार के लिए चुनौती बन सकता है, लेकिन कई ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहां एआई का कोई विकल्प नहीं है, जैसे कंस्ट्रक्शन, प्लम्बिंग, मैन्युअल स्किल्स आदि. उन्होंने कहा कि सरकार खुद एआई को लेकर कई पहल कर रही है, लेकिन फोकस यह होना चाहिए कि टेक्नोलॉजी मानव श्रम का पूरक बने, प्रतिस्थापन नहीं.

भारतीय अर्थव्यवस्था के 4 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुंचने पर और चीन से तुलना पर उन्होंने कहा कि मार्च 2025 में भारत की अर्थव्यवस्था करीब 3.9 ट्रिलियन डॉलर की थी. रुपये की कमजोरी ने डॉलर के हिसाब से आंकड़ों पर असर डाला है. दुनिया तेजी से बदल रही है और ऐसे में भारत को निवेश, रिसर्च एंड डेवलपमेंट और स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स पर ज्यादा ध्यान देना होगा. उन्होंने खासतौर पर लैंड और लेबर रिफॉर्म, पावर जेनरेशन और डिस्ट्रीब्यूशन में सुधार की जरूरत पर जोर दिया.

अंत में उन्होंने कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य के लिए सिर्फ आर्थिक नीतियां ही काफी नहीं होंगी, बल्कि युवा आबादी के फिजिकल और स्किल डेवलपमेंट पर भी बराबर ध्यान देना होगा. मजबूत युवा शक्ति, स्थिर नीतियां, निरंतर सुधार और वैश्विक बदलावों के अनुरूप रणनीति—यही वो आधार हैं जिन पर भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बन सकता है.

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