जब भारत में बजट सत्र की शुरुआत हो रही थी तो उससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मीडिया से बातचीत करते हैं. आम तौर पर संसद सत्र के शुरुआत में प्रधानमंत्री परंपरागत तौर पर मीडिया के सामने अपनी बात रखते रहे हैं. 


लेकिन इस बार कुछ खास था. एक ओर जहां पूरी दुनिया मंदी की मार झेल रही है तो दूसरी पीएम मोदी जब कैमरे के सामने थे तो उनके चेहरे पर मुस्कान देखी जा सकती थी. उसकी एक बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आंकड़े हैं.


आईएमएफ की ओर से जो आंकड़े जारी किए गए हैं उसके मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में छाई मंदी के दौर में भी सबसे तेजी से आगे बढ़ रही है. इसमें कहा गया है कि साल 2023 में भारत की विकास दर 6.1 प्रतिशत के हिसाब से आगे बढ़ने की उम्मीद है.


हालांकि साल 2021 में विकास दर 8.7 फीसदी थी. वहीं कोरोना काल की वजह से साल 2022 में इसमें कमी आई और यह अनुमान 6.8 फीसदी था. इस आंकड़े से साफ है कि वैश्विक मंदी का असर भारत पर भी पड़ा है और पिछले साल की तुलना में भारत की विकास दर में भी आएगी. 






वहीं चीन की विकास दर साल 2023 में 5.2 फीसदी के हिसाब से बढ़ने की उम्मीद है. भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार खस्ता हालत में जा रही है. साल 2023 में इस देश की विकास दर मात्र 2 फीसदी के हिसाब से आगे बढ़ेगी.


आर्थिक समीक्षा 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में घटकर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है. हालांकि, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा. भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष (अप्रैल 2022 से मार्च 2023) में सात प्रतिशत रहने का अनुमान है. पिछले साल यह 8.7 प्रतिशत थी. 


दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह भारत को भी यूरोप में लंबे समय से चल रहे युद्ध से वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं भी आई हैं.  समीक्षा में कहा गया, 'ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत ने चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना किया.'




आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत पीपीपी (क्रय शक्ति समानता) के मामले में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी और विनिमय दर के मामले में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.


समीक्षा में कहा गया, ‘‘अर्थव्यवस्था ने जो कुछ खोया था, उसे लगभग फिर से पा लिया है. जो रुका हुआ था, उसे नया कर दिया है, और महामारी के दौरान तथा यूरोप में संघर्ष के बाद जो गति धीमी हो गई थी, उसे फिर से सक्रिय कर दिया है.'


इसमें संकेत दिया गया है कि मुद्रास्फीति की स्थिति बहुत चिंताजनक नहीं हो सकती है, हालांकि, कर्ज की लागत ‘लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर रहने की संभावना है. एक जटिल मुद्रास्फीति सख्ती के चक्र को लंबा कर सकती है.


समीक्षा में कहा गया है कि महामारी के बाद भारत में पुनरुद्धार अपेक्षाकृत तेज था, ठोस घरेलू मांग से वृद्धि को समर्थन मिला, पूंजी निवेश में तेजी आई, लेकिन अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में और बढ़ोतरी के अनुमान से रुपये के लिए चुनौतियां बढ़ीं हैं.




चालू खाते के घाटे (कैड) में बढ़ोतरी जारी रह सकती है, क्योंकि वैश्विक जिंस कीमतें ऊंची बनी हुई हैं. अगर कैड और बढ़ता है, तो रुपया दबाव में आ सकता है. 


समीक्षा के मुताबिक, निर्यात के मोर्चे पर चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि में कमी आई है. धीमी वैश्विक वृद्धि, सिकुड़ते वैश्विक व्यापार के कारण चालू वर्ष की दूसरी छमाही में निर्यात में कमी आई. 


वित्त वर्ष 2023-24 के लिए वर्तमान कीमतों पर वृद्धि दर के 11 प्रतिशत रहने का अनुमान है. समीक्षा में कहा गया कि आगामी वित्त वर्ष के दौरान ज्यादातर वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत की वृद्धि दर मजबूत रहेगी. ऐसा निजी खपत में सुधार, बैंकों द्वारा ऋण देने में तेजी और कंपनियों द्वारा पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी के कारण होगा. 


समीक्षा में कहा गया है कि मजबूत खपत के कारण भारत में रोजगार की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन रोजगार के अधिक मौके तैयार करने के लिए निजी निवेश में वृद्धि जरूरी है. 


कृषि क्षेत्र 4.6 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के साथ मजबूत 




आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि कृषि क्षेत्र पिछले छह वर्षों से 4.6 प्रतिशत की औसत वार्षिक विकास दर से मजबूत बढ़ोतरी दर्शा रहा है. इससे कृषि और संबद्ध गतिविधियां क्षेत्र देश के समग्र प्रगति विकास और खाद्य सुरक्षा में महत्‍वपूर्ण योगदान देने में समर्थ रहा. इसके अलावा हाल के वर्षों में देश कृषि उत्‍पादों के सकल निर्यातक के रूप में उभरा है और वर्ष 2021-22 में निर्यात 50.2 बिलियन अमरीकी डॉलर के रिकॉर्ड स्‍तर पर पहुंचा है.