हिंद महासार में लगातार बढ़ते चीन के जंगी जहाज और पनडुब्बियों से खतरे को देखते हुए समुद्री ताकत बढ़ाने की दिशा में भारत और अमेरिका ने एक बड़ा फैसला लिया है. अमेरिका के प्रमुख रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनी अल्ट्रा मैरिटाइम, भारत की सरकारी कंपनी भारत डायनामिक्स के साथ मिलकर एंटी सबमरीन वारफेयर सोनोबॉय बनाएगी.
सोनोबॉय एक विशेष तरह का डिवाइस है, जिसे समुद्र के अंदर किसी भी लड़ाकू विमान या फिर जंगी जहाज के जरिए छोड़ा जा सकता है. ये एकॉस्टिक सेंसर से लैस होता है. साथ ही, समुद्र के अंदर मौजूद दुश्मन की पनडुब्बी की किसी भी धीमी आवाज को बेहतर तरीके से भांपकर उसके बारे में पूरी जानकारी बड़े सटीक तरीके से ऑपरेटर को भेजता है.
ये एक्टिव और पैसिव मोड में काम करता है. एक्टिव मोड का तात्पर्य ये है कि एकदम सामने से आ रहे साउंड वेव्स, सबमरीन या दूसरी वस्तुओं का पता लगाना होता है. जबकि पैसिव मोड का मतलब है कि ये खुद समुद्र के अंदर रिलीज करते हुए वहां पहले से मौजूद चीजों की दिशा और उसकी दूरी का पता लगाकर बताता है.
करीब 53 मिलियन डॉलर की इस रक्षा डील के बारे में घोषणा अमेरिका के निवर्तमान सुरक्षा सलाहकार (Outgoing US NSA) जेक सुलिवन ने अपने भारत दौरे के वक्त की. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अमेरिका दौरे के वक्त 2024 के अगस्त में इस सौदे पर फॉरेन मिलिट्री सेल्स (एफएमएस) के तहत अमेरिकी रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी (US Defense Security Cooperation Agency) की तरफ से मुहर लगाई गई थी.
सुलिवन के भारत दौरे के बाद व्हाइट हाउस की तरफ से जारी बयान में कहा गया- "समुद्र में निगरानी बढ़ाने के लिए अमेरिका और भारत के रक्षा सहयोग से अमेरिकी सोनोबॉय के उत्पादन में साझेदारी को लेकर अल्ट्रा मैरिटाइम और भारतीय कंपनी डायनामिक्स लिमिटेड के बीच बातचीत का स्वागत करते हैं."
अमेरिकी रक्षा सलाहकार के तौर पर अपने आखिरी दौरे पर भारत आए सुलिवन ने अपने भारतीय समकक्षीय अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ दो अहम बैठकों के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सोमवार को मुलाकात की.
एंटी सबमरीन वॉरफेयर सोनोबॉय का उत्पादन मेक इन इंडिया के तहत किया जाएगा और इसका संचालन अमेरिका से भारतीय नौसेना के लिए खरीदे गए एमएच-60आर हेलिकॉप्टर से किया जाएगा. भारत ने अमेरिका से 24 एमएच-60 आर हेलिकॉप्टर खरीदे हैं, जिनमें से 6 का संचालन इस वक्त नौसेना कर रही है. दरअसल, भारत पहले से ही समुद्री निगरानी और पनडुब्बी रोधी युद्धक विमान के लिए पी-8आई से अमेरिकी सोनोबॉय का संचालन करता रहा है. लेकिन, अब ये नई डील के तहत वैसा तय किया गया है.
बढ़ते खतरों के बीच सौदे पर मुहर
समुद्र में लगातार बढ़ते खतरे के बीच ऐसी उम्मीद है कि सोनोबॉय की खरीद और उत्पादन से भारत की नौसैन्य शक्ति में काफी इजाफा होगा. सोनोबॉय को पी-8 और एमक्यू-9बी सी गार्जियन प्रीडेटर ड्रोन्स के जरिए भी छोड़ा जा सकता है. नौसेना को उम्मीद है कि एक अन्य सौदे के तहत उसे अमेरिका से जल्द 15 सी गाार्जियन ड्रोन्स मिल पाएंगे. जिसके बाद पहले से मौजूद 12 पी8-आई समुद्रीय पेट्रोलिंग एयरक्राफ्ट में इजाफा होगा.
भारत की योजना कई तरह से करीब 500 सोनोबॉय खरीदने की है, जैसे- AN/SSQ-53G हाई एल्टीट्यूड एंटी-सबमरीन वारफेयर (HAASW) सोनोबॉय, AN/SSQ-62F HAASW sonobuoys और AN/SSQ-36 sonobuoys, ताकि चीनी पनडुब्बी समेत किसी भी चुनौती का प्रभावी तरीके से मुकाबला किया जा सके.
इस बारे में यूएस कांग्रेस को बाइडेन प्रशासन की तरफ से जारी किए गए नोटिफिकेशन के मुताबिक, "हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific) और दक्षिण एशियाई क्षेत्र (South Asia region) में राजनीतिक स्थिरता, शांति और आर्थिक तरक्की के लिए भारत एक महत्वपूर्ण ताकत बना रहेगा." इसमें आगे कहा गया कि सोनोबॉय को बेचने का प्रस्ताव भारत के मौजूदा और भविष्य के खतरे की चुनौतियों से मुकाबला करेगा.