कृषि क्षेत्र को आगामी वित्तीय वर्ष में 'देसी कृषि अर्थव्यवस्था' की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव और बजट में ज्यादा आवंटन की उम्मीद है.  यह संभावना 2017 के 'नीति आयोग प्रपत्र' में उल्लिखित उद्देश्यों के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य कृषि आय को दोगुना करना था. हालांकि, 2023-24 के हालिया बजट में आवंटित 1.33 लाख करोड़ से घटाकर 1.25 लाख करोड़ रुपए कर दिए गए, यानी  8 करोड़ रुपए या एक प्रतिशत की कमी हुई.. यह कटौती उल्लेखनीय है क्योंकि कृषि क्षेत्र को कुल बजट का केवल 2.78 प्रतिशत प्राप्त हुआ, जो पिछले वित्तीय वर्ष में 3.78 प्रतिशत था. 2021-22 के बजट में, आवंटन शुरू में 1.33 लाख करोड़ रुपए निर्धारित किया गया था, लेकिन बाद में अव्ययित धनराशि के कारण इसे संशोधित कर 1.18 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया. 2023-24 का बजट 3 करोड़ रुपए की वृद्धि का संकेत देता है, जो मुख्य रूप से ब्याज छूट के लिए निर्देशित है. यह किसानों के ऋण में चिंताजनक वृद्धि का संकेत देता है.


इस बार होगा चुनावी बजट


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण एक चुनावी बजट तैयार कर रही हैं. परंपरा के अनुसार कोई नीतिगत घोषणाएं नहीं की जाती है. हालांकि, 54 प्रतिशत से अधिक या लगभग 78 करोड़ लोगों को रोज़गार देनेवाली कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण में बाजार सुधारों के खिलाफ लंबे समय तक किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद 2022-23 में इस क्षेत्र में सार्वजनिक खर्च में 4 प्रतिशत की गिरावट पर चिंता  जताई गयी  है. तीन कृषि बिलों के निरस्त होने के बावजूद, बड़े संगठित व्यावसायिक क्षेत्रों से किसानों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए सुधारात्मक उपाय आवश्यक हैं. भारतीय कृषि क्षेत्र गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. सन 1995-2013 के दौरान 296,438 किसानों ने आत्महत्या की और 2014 और 2022 के बीच 100,474 किसानों ने लागत मूल्य न मिलने और उधारी की वजह से आत्महत्या की.



कृषक जूझ रहे गंभीर समस्या से


नीति आयोग के अनुसार, 2011-16 के बीच कृषक परिवार की आय में औसतन 0.44 प्रतिशत की वृद्धि हुई. विकसित दुनिया में भी छोटे किसान कृषि से बाहर होते जा रहें हैं और आय बढ़ाने में सक्षम नहीं हैं. अमेरिका में कृषि क्षेत्र में आबादी के मात्र 1.5 प्रतिशत लोग है. वे भी कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं. वर्तमान जलवायु परिदृश्य में सूखे जैसी स्थितियों और रबी की पैदावार में गिरावट की संभावना के साथ चुनौतियां और बढ़ जाती हैं. वर्षा आधारित कृषि पर निर्भरता एक चिंता का विषय बनी हुई है. नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में भी यही समस्या दिखती है. मौसम के अप्रत्याशित मिजाज के कारण कृषि उत्पादन, विशेषकर गेहूं की पैदावार कम हो रही है. मार्च 2022 में, गेहूं की पैदावार अनुमान से 11 प्रतिशत कम हुई. इसी तरह, अक्टूबर 2022 और उसके बाद के वर्षों में भारी वर्षा ने विभिन्न फसलों को प्रभावित किया, जिससे जलवायु में उतार-चढ़ाव के प्रति कृषि क्षेत्र की संवेदनशीलता उजागर हुई. आलू, प्याज, लहसुन और अदरक जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को और बढ़ा देती है. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने से कृषि और औद्योगिक दोनों क्षेत्रों पर बोझ बढ़ गया है.



जलवायु-परिवर्तन है किसानों के लिए चुनौती


बिगड़ती जलवायु की स्थिति के बावजूद, जलवायु लचीले कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) के बजट में खेती में जलवायु चुनौतियों से निपटने के प्रयासों को कमजोर करते हुए 50 करोड़ रुपये से घटाकर 41 करोड़ रुपये कर दिया गया है. देश में कुल गेहूं उत्पादन 2014-15 और 2021-22 के बीच 3 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ रहा था. भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, मार्च 2022 में भारत के कुछ क्षेत्रों में तापमान बढ़ा है. अधिकतम तापमान 33 डिग्री सेल्सियस था, जो सामान्य से 2 डिग्री अधिक था. अमेरिकी विदेशी कृषि सेवा के एक अध्ययन के अनुसार, मार्च 2022 में गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में पैदावार आंकलन से 11 प्रतिशत कम थी. 2021-22 में गेहूं उत्पादन में 20 लाख टन की गिरावट आई. इसी तरह, अक्टूबर 2022 के पहले दो हफ्तों में भारी बारिश के कारण पांच राज्यों में धान, कपास, उड़द, सब्जियां, सोयाबीन और बाजरा जैसी फसलें प्रभावित हुईं. 2023 अलग नहीं रहा है. आलू, प्याज, लहसुन और अदरक जैसी सब्जियों की पैदावार में उतार-चढ़ाव के कारण कीमतों में अस्थिरता आ रही है. इस सीज़न में किसानों ने फूलगोभी और टमाटर फेंक दिए, हालांकि खुदरा कीमतें ऊंची बनी हुई हैं. यह आरबीआई की चिंता है, जो धीरे-धीरे ब्याज दरें बढ़ा रहा है, जिससे कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों पर बोझ बढ़ रहा है.


नीति आयोग की नीतियां त्रुटिपूर्ण


नीति आयोग 2017 की रिपोर्ट के नीति निर्देश के मुताबिक 40 करोड़ कृषि श्रमिकों को कम वेतन वाले शहरी रोजगार में स्थानांतरित करना है. इस कदम से खेतिहर मजदूर विस्थापित हुए, प्रवासन बढ़ा और कृषि क्षेत्र के लिए श्रम लागत बढ़ गई है. विश्व बैंक जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से प्रभावित यह त्रुटिपूर्ण नीति प्रतिकूल रही है और इसमें सुधार की आवश्यकता है. कृषि क्षेत्र पर निर्भरता कम करने की कोशिश अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक साबित नहीं रही. ऐसी नीति का खामियाजा विकसित देशों को भी भुगतना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्रसंघ के एशिया प्रशांत महासागर इकाई के अनुसार कृषि आमदनी फार्म गेट की कीमतों से तय होती है. सन 1985 से 2005 तक भारत में 23 डॉलर पर स्थिर रहीं. अन्यत्र अमरीका जैसे विकसित देशों में भी यह ऐसा ही रहा. कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने 16 दिसंबर, 2022 को राज्यसभा को बताया कि एनएसओ के अनुसार प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय रुपये 10218 है - औसतन 2.2 लाख रुपये प्रति वर्ष, पांच लोगों के परिवार के लिए प्रति व्यक्ति लगभग 2000 रुपये प्रति माह है. 2016 में आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि यह 1700 रुपये था. किसानों को प्रति वर्ष 6000 रुपये की किसान निधि पेंशन और मुफ्त भोजन सहायता उन्हें बड़ी राहत लगती है. लोग यह भूल जाते है कि वे अपने द्वारा उत्पादित भोजन का खर्च का बोझ नहीं ढो पाते हैं. किसान जो चीज़ 2 रुपये में बेचता है, उसे खुदरा विक्रेता को 30 से 100 रुपये की अलग-अलग कीमतों पर बेचा जाता है.


सड़क विस्तार और मुद्रास्फीति


सड़क क्षेत्र, जिसे ज़मीन बेचने वाले किसानों के लिए लाभार्थी के रूप में देखा जाता है, अक्सर टोल खर्च और जमीन अधिग्रहण के कारण हानिकारक साबित हो रहा है. लाभ के लिए प्रचारित सड़क विस्तार गंभीर मुद्रास्फीति का कारण बन रहा है. जुलाई 2023 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 5.5 प्रतिशत की औसत मुद्रास्फीति के साथ 186.3 अंक के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया, जिसके परिणामस्वरूप 2016 और 2022 के बीच कीमतों में कुल 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई. किसानों का घाटा बहुत अधिक है, उपभोक्ता महँगी कीमत भुगतान करते हैं और सरकारी कर्ज़ में अभूतपूर्व वृद्धि होती है. यह स्थिति आत्ममंथन की मांग करती है. निजी निवेश नहीं बढ़ने के बावजूद बुनियादी ढांचे और टोल पर खर्च बढ़ रहा है. बजटीय व्यवस्था को सही करने के लिए सीतारमण को कृषि अर्थशास्त्र का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए. 'देसी अर्थव्यवस्था' को बढ़ावा देने के लिए कृषि आधार के साथ तालमेल बिठाने के लिए नीतियों की व्यापक समीक्षा और सुधार आवश्यक है. वैश्विक उथल-पुथल के बीच यह बदलाव वास्तविक विकास और खुशी का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.