ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय एजेंसियां देश में तेजी से घर में घुसे जासूसों को निकालने की फिराक में हैं. इसी के चलते यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और उसके खिलाफ पाकिस्तान को खतरनाक जानकारी देने और भारत के खिलाफ जासूसी का आरोप है. खबर है कि उसकी हेल्प पाकिस्तानी दूतावास में काम करने वाले एहसान-उर-रहमान उर्फ दानिश नाम के शख्स ने की थी. उस पर भी आरोप है कि वह दिल्ली के कुछ लोगों को ISI में भर्ती करने की कोशिश कर रहा था. दिल्ली पुलिस की जांच में यह भी पता चला है कि दानिश कोई वीजा अधिकारी नहीं था, बल्कि वह ISI जो कि पाकिस्तानी जासूस एजेंसी है, उसका एक इंस्पेक्टर रैंक अधिकारी था. 

13 मई को भारत से निकाला गया दानिश

हालांकि दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने की बजाय भारत सरकार ने उसे वापस पाकिस्तान भेज दिया. दानिश को 13 मई को भारत से निकाल दिया गया था, उस पर आरोप लगे थे कि उसने भारतीय नागरिकों को भर्ती करने और संवेदनशील जानकारी इकट्ठा करने और पाकिस्तान के समर्थन में ऑनलाइन बातें फैलाने में मदद की थी. वह ज्योति के संपर्क में था. लेकिन भारत सरकार ने उसे गिरफ्तार करने के बजाय आखिर पाकिस्तान क्यों भेज दिया. चलिए जानें.

दानिश को भारत सरकार ने क्यों नहीं किया गिरफ्तार

साल 1961 में एक इंटरनेशनल संधि हुई थी, इसका मकसद था दो देशों के बीच राजनयिक संबंधों को मजबूत करना. ऑस्ट्रिया के वियना में हुई यह संधि दो साल के बाद लागू हुई थी और इसमें 192 देश शामिल हुए थे. इस संधि का ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन ने तैयार किया था. इसके तहत राजदूतों को खास अधिकार मिलते हैं, जिसे डिप्लोमैटिक इम्युनिटी कहा जाता है. इसके तहत दूसरे देश में रहते हुए डिप्लोमैट की यात्रा से लेकर सुरक्षा तक पर कोई खतरा नहीं होना चाहिए. वो कई चीजों की जद से बाहर रहते हैं, जैसे कि सड़क पर अगर कोई जांच चल रही हो तो अगर वहां से डिप्लोमैट की गाड़ी जाए तो उसे जांच के दायरे से बाहर रखा जाता है. वो कस्टम की जांच से भी बाहर होते हैं. 

राजनयिकों को मिलती है रायनयिक प्रतिरक्षा 

वियना कन्वेन्शन के तहत दूसरे देश के राजनयिकों को रायनयिक प्रतिरक्षा प्रदान की जाती है, इसका अर्थ होता है कि वे मेजबान देश के कानून से बाहर हैं और उन पर कोई मुकदमा या गिरफ्तारी नहीं हो सकती है. यह कन्वेन्शन राजनयिकों को अपने काम के लिए सुरक्षा और सुविधा प्रदान करता है, जिससे कि वे अपने देश का प्रतिनिधित्व कर सकें. लेकिन कई बार यह इम्युनिटी खत्म भी हो जाती है. जैसे कि अगर हाई कमीशन में रह रहे लोग जासूसी के आरोप में पकड़े गए तो जिस देश में वो रह रहे हैं, वहां उन पर मुकदमा भी हो सकता है या फिर उच्चायोग बंद भी हो सकता है. 

देश छोड़ने का भी मिल सकता है आदेश

कन्वेंशन के आर्टिकल 9 में एक ऐसी स्थिति का भी जिक्र है. इसमें अगर कोई मेजबान देश किसी डिप्लोमैटिक स्टाफ से नाराज है तो वह उसे अपने देश से जाने के लिए भी कह सकता है. अगर तय समय के अंदर होस्ट देश से नहीं गया तो उसकी डिप्लोमैटिक इम्युनिटी खत्म भी हो जाती है और फिर उस पर आम इंसान जैसी कार्रवाई होती है.

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