दुनिया की हर संस्कृति मौत को अपने-अपने तरीके से विदा करती है, लेकिन कुछ परंपराएं ऐसी होती हैं जो सुनते ही रोंगटे खड़े कर देती हैं. कहीं शव दफन होते हैं, कहीं जला दिए जाते हैं, तो कहीं विदाई का मतलब ही कुछ और होता है. दक्षिण अमेरिका के घने जंगलों में रहने वाली एक जनजाति की रस्म ऐसी है, जिसमें मौत के बाद राख को सूप में बदल दिया जाता है. यह परंपरा डरावनी लग सकती है, लेकिन इसके पीछे उनका विश्वास बेहद गहरा है.
मौत को देखने का बिल्कुल अलग नजरिया
आधुनिक दुनिया में मौत के बाद शांति की कामना की जाती है, लेकिन यानोमामी जनजाति के लिए शांति का रास्ता अलग है. यह जनजाति वेनेजुएला और ब्राजील के सीमावर्ती इलाकों में रहती है और आज भी बाहरी सभ्यता से काफी हद तक दूर है. इनके लिए मौत अंत नहीं, बल्कि आत्मा की अगली यात्रा की शुरुआत मानी जाती है. यही सोच उनकी सबसे चौंकाने वाली परंपरा को जन्म देती है.
राख का सूप और अंतिम विदाई
यानोमामी जनजाति में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद शव को तुरंत अंतिम रूप नहीं दिया जाता है. पहले उसे जंगल में पत्तों और लकड़ियों से ढककर रखा जाता है. करीब एक महीने बाद जब शरीर प्राकृतिक रूप से बदल चुका होता है, तब उसे वापस लाया जाता है. इसके बाद शव को जलाया जाता है और जो राख बचती है, उसे सावधानी से इकट्ठा किया जाता है. यही राख पानी या सूप में मिलाकर पूरे परिवार द्वारा पी जाती है.
डर नहीं, सम्मान की भावना
बाहरी दुनिया को यह परंपरा भयावह लगती है, लेकिन जनजाति के लोगों के लिए यह सम्मान का प्रतीक है. उनका मानना है कि मृत व्यक्ति की आत्मा तब तक भटकती रहती है, जब तक उसका शरीर अपने ही लोगों का हिस्सा न बन जाए. राख को पीना उनके लिए शोक नहीं, बल्कि आत्मा को अपनाने की प्रक्रिया है. वे इसे एंडोकैनिबेलिज्म कहते हैं, यानी अपने ही समुदाय के मृत व्यक्ति को प्रतीकात्मक रूप से आत्मसात करना.
आत्मा की शांति से जुड़ा विश्वास
यानोमामी जनजाति का विश्वास है कि अगर मृतक की राख को परिवार ने ग्रहण कर लिया, तो उसकी आत्मा जंगल, हवा और जीवित लोगों के बीच शांति से रह सकती है. उनका मानना है कि ऐसा न करने पर आत्मा नाराज हो सकती है और पूरे समुदाय पर संकट ला सकती है, इसलिए यह परंपरा सिर्फ रस्म नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के संतुलन का जरिया मानी जाती है.
आधुनिक नजर बनाम आदिवासी सोच
आज की आधुनिक सोच इस परंपरा को अजीब या अस्वीकार्य मान सकती है, लेकिन मानवविज्ञानियों के लिए यह संस्कृति की गहराई को दिखाती है. यानोमामी जनजाति की यह रस्म बताती है कि दुनिया में मौत को समझने के तरीके कितने अलग हो सकते हैं. जहां एक तरफ डर है, वहीं दूसरी तरफ अपनेपन और विश्वास की भावना भी छिपी है.
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