हर साल 15 अक्टूबर को विश्व सफेद छड़ी दिवस यानी White Cane Safety Day मनाया जाता है. यह दिन खास तौर पर उन लोगों के लिए है जो नेत्रहीन या दृष्टिबाधित हैं. इस दिन का मकसद समाज में जागरूकता फैलाना होता है ताकि नेत्रहीन लोगों को बराबरी का हक मिल सके, उन्हें स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का अवसर दिया जा सके और उनका कॉन्फिडेंस बढ़ाया जा सके. इस दिन का सबसे प्रमुख प्रतीक सफेद छड़ी है, जो दुनिया भर में नेत्रहीनता की पहचान बन चुकी है.

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लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि नेत्रहीन लोग जिस छड़ी का यूज करते हैं वह हमेशा सफेद रंग की ही क्यों होती है, आखिर सफेद रंग में क्या खास है, क्या इसका कोई और रंग नहीं हो सकता, तो चलिए जानते हैं कि दृष्टिहीन लोगों की छड़ी का सफेद ही रंग क्यों होता है और इसके पीछे की वजह क्या है. 

सफेद छड़ी का असली मकसद क्या है?

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नेत्रहीन या कम दृष्टि वाले लोगों के लिए सफेद छड़ी सिर्फ चलने का सहारा नहीं है, बल्कि यह उनकी पहचान और सुरक्षा का भी एक माध्यम है. जब कोई व्यक्ति हाथ में सफेद छड़ी लिए सड़क पर चलता है, तो दूसरों को तुरंत यह समझ में आता है कि वह व्यक्ति दृष्टिबाधित है. इससे वाहन चालक, राहगीर और आसपास के लोग ज्यादा सतर्क हो जाते हैं और उसे रास्ता देने में मदद करते हैं. 

सफेद ही क्यों होती है यह छड़ी?

सफेद रंग सबसे ज्यादा दिखाई देने वाला रंग होता है, दिन के उजाले में ही नहीं, बल्कि रात में भी जब स्ट्रीट लाइट या गाड़ी की हेडलाइट पड़ती है, तब भी सफेद छड़ी आसानी से नजर आ जाती है. यह खासतौर पर उनकी सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है. साल 1930 में अमेरिका के पियोरिया शहर में एक घटना हुई, जिसने सफेद छड़ी के रंग को बदल कर रख दिया. एक अंधे व्यक्ति को सड़क पार करते समय काली छड़ी के साथ देखा गया, लेकिन उसकी छड़ी वाहन चालकों को दिखाई नहीं दी और वह खतरे में आ गया.

इस पर वहां के लायंस क्लब के अध्यक्ष जॉर्ज ए. बोनहम ने सुझाव दिया कि छड़ी को सफेद रंग से रंगा जाए और उस पर लाल पट्टियां लगाई जाए, ताकि वह दूर से दिखाई दे और लोग सतर्क हो जाएं. यह प्रयोग इतना सफल रहा कि धीरे-धीरे यह पूरे अमेरिका और फिर पूरी दुनिया में फैल गया. अब यह एक अंतरराष्ट्रीय मान्यता बन चुकी है कि नेत्रहीन व्यक्ति की छड़ी सफेद होती है. यह न सिर्फ उनके लिए सुरक्षा का प्रतीक है, बल्कि उनकी पहचान का भी हिस्सा है. 

कैसे बनी सफेद छड़ी एक प्रतीक

सफेद छड़ी नेत्रहीन व्यक्ति को न सिर्फ डायरेक्शन नहीं देती है, बल्कि उन्हें इंडिपेंडेंट बनने का एहसास भी कराती है. वे छड़ी की मदद से सामने की बाधाओं, खाई, दीवार, या किसी रुकावट का पता लगा लेते हैं और अपनी डायरेक्शन तय करते हैं. इसे हूवर तकनीक कहते हैं, जिसकी शुरुआत 1944 में अमेरिकी युद्ध विशेषज्ञ रिचर्ड ई. हूवर ने की थी. छड़ी को जमीन पर घुमाकर, स्पर्श से रास्ते की जानकारी हासिल करना, और बिना किसी की मदद के चलना, यह सब सफेद छड़ी की मदद से ही संभव हो पाता है. 

वहीं बहुत से लोग सोचते हैं कि सफेद छड़ी एक ही तरह की होती है, पर  यह तीन मुख्य प्रकारों में आती है. जिसमें गतिशीलता छड़ी यानी Mobility Cane है, ये लंबी और हल्की होती है, जिससे रास्ता देखा जाता है. वहीं दूसरी सहायक छड़ी यानी Support Cane है,  यह चलने में कठिनाई झेल रहे लोगों के लिए होती है. इसके अलावा तीसरी पहचान छड़ी यानी ID Cane है, यह उन लोगों के लिए होती है जिन्हें आंशिक दृष्टि है, ताकि लोग जान सकें कि वह व्यक्ति पूरी तरह दृष्टिहीन नहीं है लेकिन कुछ देखने में असमर्थ है. 

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