World Potato Day: हर किसी के किचन में पकाई जाने वाली सब्जी जो अक्सर सबकी पसंदीदा होती है, अगर आपसे उसका नाम पूछा जाए तो आप भी कहेंगे कि क्या हम आलू की बात कर रहे हैं? जी हां हम आलू की ही बात कर रहे हैं. आलू को हम ऐसी सब्जी के रूप में जानते हैं, जिसे हम किसी भी सब्जी के साथ मिलाकर खा सकते हैं जैसे आलू टमाटर, आलू गोभी, आलू शिमला मिर्च, आलू बैंगन, आलू के पकौड़े और न जानें किन चीजों के साथ मिलाकर खाते हैं. आलू की इसी खासियत को सेलिब्रेट करने के लिए पूरे विश्व में 30 मई को अंतरराष्ट्रीय आलू दिवस मनाया जाता है. इसको मनाने की शुरुआत साल 2024 से ही की गई है. 

स्पेस में क्यों गया आलू

अब यह भी जान लेते हैं कि आखिर नासा ने आलू को स्पेस में क्यों भेजा था. दरअसल नासा ने अंतरिक्ष ने आलू इसलिए भेजा था, ताकि वे शून्य गुरुत्वाकर्षण में पौधों के डेवलपमेंट की स्टडी कर सकें, अंतरिक्ष यात्रियों को ताजा खाना मिल सके और इस बात भी पता लगाया जा सके कि क्या पौधे खराब परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं, जैसे कि मंगल ग्रह पर. आलू को इसलिए चुना गया था, क्योंकि वो अलग अलग जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है. नासा ने आलू को मंगल पर उगाने का अध्ययन किया था, जिससे कि यह देखा सके कि इंसान लंबे वक्त तक वहां रहने के लिए पौधे उगा सकते हैं या नहीं. 

कठिन परिस्थिति में जीवित रहने की क्षमता

आलू की कठोरता और विभिन्न परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता की वजह से इसे मंगल ग्रह पर एक संभावित खाद्य श्रोत के रूप में देखा गया. ISS पर नासा ने वेजी नाम की एक प्रणाली का विकास किया, जिसमें कि अंतरिक्ष में पौधे उगाए जाते हैं. नासा ने आलू को अंतरिक्ष में उगाने के कई और अध्ययन भी किए हैं, जैसे कि माइक्रोग्रैविटी में आलू की बढ़ोतरी, आलू का इस्तेमाल करके कंक्रीट बनाना और आलू को अलग तरह के पर्यावरण में उगाने की क्षमता का भी अध्ययन किया गया.

आलू का इतिहास और यह भारत कैसे पहुंचा

आलू का इतिहास काफी पुराना और दिलचस्प है. साउथ अमेरिका के पेरू में करीब 7000 साल से आलू की खेती हो रही है. आलू को सबसे पहले मध्य पेरू में उगाना शुरू किया गया था, तब वहां पर इसका नाम ‘कामाटा’ और ‘बटाटा’ था. इसके बाद 16वीं सदी में यह स्पेन से यूरोप आया, तब वहां पर इसको नाम दिया गया पोटैटो. ऐसा कहा जाता है कि कोलंबस जब दुनिया की यात्रा में निकला तो वो अपने साथ आलू लेकर निकला था, लेकिन भारत में आलू यूरोपीय और डच व्यापारियों के जरिए 15वीं शताब्दी में पहुंचा. जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने देखा कि आलू के बिजनेस में फायदा है तो 18वीं सदी में भारत में इसकी खेती होने लगी. 

बंगाली डिश में भी आलू

ब्रिटिशर्स जब कलकत्ता में थे तो उन्होंने लगभग हर बंगाली डिश में आलू का इस्तेमाल किया. जब लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह कलकत्ता पहुंचे तो उनके शाही खानसामे ने शाही पकवानों में आलू का इस्तेमाल किया. तब से आलू सिर्फ कलकत्ता में ही नहीं बल्कि पूरे भारत के कोने-कोने में खाया जाने लगा.

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