19 अगस्त को पूरे देश में रक्षाबंधन सेलिब्रेट किया जाएगा. रक्षाबंधन भाई और बहन की पवित्र रिश्‍ते का प्रतीक है. इस दिन बहनें भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उनकी दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं. भाई इस दिन अपनी बहनों को प्‍यारे-प्‍यारे उपहार देते हैं और उनकी रक्षा करने का वचन लेते हैं. रक्षाबंधन को मनाने की शुरुआत कैसे हुई, इसको लेकर पौराणिक मान्‍यताएं प्रचलित हैं. इस खास त्योहार के दिन बहने अपने भाईयों की कलाई में रक्षासूत्र बांधती हैं, लेकिन इस खास त्योहार को पाकिस्तान की महिलाएं कुछ अलग अंदाज में मना रही हैं.

पाकिस्तान की महिलाएं इस खास पेड़ को बांध रहीं रक्षासूत्र

पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में महिलाएं गुग्गुल पेड़ को राखियां बांध कर रक्षाबंधन मना रही हैं. इन पेड़ों को राखी बांधने का मकसद इनकी रक्षा करना है. इस महिलाओं का कहना है कि इन्हें केमिकल डालकर खराब किया जा रहा है. यहां के 80 प्रतिशत लोगों के लिए पशुपालन ही उनका रोजगार है. गुग्गुल के पेड़ गोंद के साथ अच्छे और मुफ्त चारा भी उपलब्ध करवाते हैं. तीन दशकों से उन पेड़ों से गोंद निकालने का काम किया जा रहा है. ये पेड़ प्राकृतिक रूप से गोंद पैदा करते हैं. बता दें कि थारपारकर में हजारों गोंद के पेड़ काट दिए गए थे. वहां पर हजारों पेड़ हुआ करते हैं, लेकिन अब 70 फीसदी पेड़ हैं ही नहीं.

क्या होता है गुग्गुल के पेड़ों का इस्तेमाल?

गुग्गुल के पेड़ों से गोंद निकलती है जिसकी वैश्विक बाजार में काफी मांग है. हालांकि, बढ़ती मांग के कारण इन पेड़ों को खतरा भी है. गुग्गुल के पेड़ सूखे और कम बारिश पड़ने वाले इलाकों के पर्यावरण के लिए माकूल है. गूगल एक पेड़ है जो 3 से 4 मीटर की ऊंचाई का पेड़ होता है. पत्ते चमकीले,चिकने तथा मूल रुप से यह पेड़ औषधीय धूप, कीटाणु नाषक,टीवी, हृदय घात और कैंसर के इलाज के लिए भी काम आता है. सूखे रॉल में सुगंधित स्वाद और गंध होती है. इसे दिव्य औषधी माना जाता है.

8 साल बाद होती हैं गुग्गुल की उपज

गुग्गल के पौधों से उपज लगभग 8 साल बाद होती है. इसकी शाखाओं में चीरा लगाकर सफेद दूध निकलता है फिर उससे गोंद प्राप्त किया जाता है. एक पेड़ में 250 ग्राम गौंद प्राप्त होता है. बाजार भाव में 250 रुपए किलो तक बिक जाता है. भारत में इसकी बड़ी मंडी मध्यप्रदेश के नीमच में है.

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