Sleeper Bus Tragedy: मध्य प्रदेश के अशोकनगर में शनिवार रात एक दुखद घटना हो गई. दरअसल एक स्लीपर बस जो पिछोर से सवारियों को लेकर इंदौर जा रही थी उसमें आग लग गई. गनीमत रही कि सभी यात्री बच गए. लेकिन इसी बीच एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या स्लीपर बस सुरक्षित हैं या नहीं. आइए जानते हैं कि दुनिया भर के किन देशों ने स्लीपर बसों पर पहले से ही प्रतिबंध लगाया हुआ है.
स्लीपर बसों पर प्रतिबंध लगाने वाले देश
चीन ने 2012 में कई भीषण आग और सड़क दुर्घटनाओं के बाद 2013 में जाकर नई स्लीपर बसों के निर्माण और पंजीकरण पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसी के साथ 2006 में जर्मनी ने भी कई बड़ी दुर्घटनाओं के बाद स्लीपर कोच पर प्रतिबंध लगा दिया था. स्लीपर बसों पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों में वियतनाम और इंग्लैंड का भी नाम शामिल है. इन सभी देशों ने एक ही वजह से इन बसों पर प्रतिबंध लगाया था. यह वजह थी कि इन बसों के डिजाइन की वजह से लोगों को निकालना काफी ज्यादा मुश्किल हो गया था. जिस वजह से कई लोगों की जान चली गई थी.
स्लीपर बस से बाहर निकलना इतना मुश्किल क्यों है
दरअसल स्लीपर बसों में काफी ज्यादा बर्थ होते हैं. इसी के साथ यह काफी तंग भी होती है. आपात स्थिति में यात्रियों के लिए तेजी से आगे बढ़ना लगभग असंभव हो जाता है. इसी के साथ ऊपरी बर्थ पर बैठे लोगों को घबराहट की स्थिति में निकास द्वार तक पहुंचने में और ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
इतना ही नहीं बल्कि इन बसों के अंदरूनी हिस्से अक्सर फोम, सिंथेटिक कपड़े और प्लास्टिक जैसी ज्वलनशील सामग्री से बने होते हैं. एयर कंडीशनिंग सर्किट के साथ मिलकर ये चीजें आग को मिनटों में फैलने देती है. इसी के साथ कई निजी बस ऑपरेटर बसों में अवैध रूप से संशोधन करते हैं. यात्रियों की क्षमता को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त बर्थ जोड़ दी जाती है या फिर आपातकालीन द्वार को सील कर दिया जाता है. इस वजह से दुर्घटनाओं के दौरान बचाव कार्य में और ज्यादा देरी होती है. इसी के साथ ऊंचाई और डबल डेक डिजाइन की वजह से स्लीपर बसों को अचानक मोड़ या टक्कर के दौरान पलटने की संभावना ज्यादा होती है.
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