Afghanistan Wars: सीमा पर हिंसक झड़पों के बाद पाकिस्तान अफगानिस्तान के बीच एक बार फिर से तनाव सुर्खियों में है. हालांकि सीजफायर ने स्थिति को अस्थाई रूप से शांत कर दिया है, लेकिन पाकिस्तान को यह डर है कि सीजफायर खत्म होने के बाद क्या हो सकता है. इसी बीच आज हम बात करने जा रहे हैं अफगानिस्तान के युद्ध इतिहास के बारे में और जानेंगे कि अब तक अफगानिस्तान को कोई देश गुलाम क्यों नहीं बना पाया. तो आइए जानते हैं.
अफगानिस्तान का युद्ध इतिहास
अफगानिस्तान जो की मध्य और दक्षिण एशिया के चौराहे पर स्थित है, व्यापार मार्गों और भूभाग पर कब्जा करने की इच्छा रखने वाले साम्राज्यों के लिए एक बड़ा युद्ध क्षेत्र रहा है. इसके बावजूद भी कोई भी इसके लोगों को स्थायी रूप से अधीन करने में सफल नहीं हो पाया. अफगानिस्तान ने 19वीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्य, 20वीं सदी में सोवियत संघ और 21वीं सदी में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कई बड़े युद्ध लड़े हैं और हर युद्ध में विनाश तो हुआ लेकिन कोई भी इस देश को जीत नहीं पाया.
ब्रिटिश साम्राज्य के साथ युद्ध
1800 के दशक में ब्रिटिश साम्राज्य ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए कई हमले किए. इसकी वजह यह थी कि वह इस रूसी विस्तार के विरुद्ध एक बफर स्टेट मानता था. 1839 में फर्स्ट एंगलो अफगान वॉर का अंत अंग्रेजों के लिए काफी ज्यादा विनाशकारी रहा. काबुल से वापसी के दौरान उनकी लगभग पूरी सेना ही खत्म हो गई थी. दूसरे एंगलो अफगान वॉर (1878-1880) में ब्रिटेन ने अफगानिस्तान के विदेशी मामलों पर अस्थायी नियंत्रण हासिल कर लिया था. 1919 में तीसरे एंगलो अफगान युद्ध ने अफगानिस्तान को पूरी तरह से स्वतंत्रता दी जिस वजह से इस जगह पर ब्रिटिश प्रभाव का अंत हुआ.
सोवियत आक्रमण
1979 में सोवियत संघ ने मास्को के प्रति वफादार एक कम्युनिस्ट सरकार स्थापित करने के उद्देश्य से अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया था. हालांकि अफगान मुजाहिदीन लड़ाकों ने एक दशक तक चलने वाला प्रतिरोध अभियान चलाया. उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की रणनीतियों का इस्तेमाल किया. इसी रणनीति की बदौलत उन्होंने सोवियत सेना के लिए क्षेत्र पर कब्जा करना लगभग असंभव कर दिया था. 1989 तक सोवियत सेना वापस लौटने के लिए मजबूर हो गई और अपने पीछे अपनी हार छोड़ गई.
अमेरिकी आक्रमण और आधुनिक युग
2001 में 11 सितंबर के हमले के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों ने अलकायदा को खत्म करने और तालिबान शासन को उखाड़ फेंकने के लिए एक बड़ा कदम उठाया. अफगानिस्तान पर हमला कर दिया गया और 20 सालों तक अमेरिकी सेनाएं देश में रही. अमेरिकी सेना इसकी संस्थाओं के पुनर्निर्माण और सरकार को स्थिर करने की कोशिश करती रही. इन सबके बावजूद भी, आधुनिक हथियारों और वैश्विक समर्थन के बावजूद यह मिशन विफल ही रहा. 2021 में जब अमेरिका ने वापसी की तब तालिबान ने तेजी से सत्ता को हासिल कर लिया और एक बार फिर से साबित हो गया कि अफगानिस्तान को विदेशी हाथों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता.
कौन करता है अफगानिस्तान की सुरक्षा
अफगानिस्तान की सुरक्षा करने में उसकी मदद वहां का भूगोल ही करता है. ऊंचे पहाड़, कठोर रेगिस्तान और संकरी घाटियों से घिरा यह देश लंबे समय से हमलावर सेनाओं के लिए एक बुरा ख्वाब ही रहा है. यहां का चरम मौसम और अपरिचित भूभाग सैन्य अभियानों को काफी ज्यादा महंगा और अस्थिर बना देता है. भूगोल से परे अफगान भावना हमेशा स्वतंत्रता से परिभाषित रही है. अफगान समाज में भूमि, जनजाति और धर्म के प्रति काफी ज्यादा निष्ठा है. इसी के साथ अफगानिस्तान गुरिल्ला युद्ध में काफी ज्यादा निपुण है.
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