विपक्ष लगातार सरकार और चुनाव आयोग पर ईवीएम हैकिंग के आरोप लगाता रहा है. कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी तक कई दल ईवीएम की विश्वसनीयता पर संदेह जताते रहे हैं. हाल ही में राहुल गांधी ने वोट चोरी और मतदाता सूची में धांधली के आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा किया था. हालांकि विपक्ष के इन आरोपों के बीच एक बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या ईवीएम को सच में हैक करना संभव है. ऐसे में चलिए आज हम आपको ईवीएम की टेक्निकल प्रक्रिया से समझाते हैं कि क्या सच में ईवीएम को हैक करना संभव है या नहीं. 

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ईवीएम को हैक करना संभव है या नहीं 

ईवीएम हैक को लेकर एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर कोई मशीन खोलकर बटन को इस तरह से सेट कर दें कि आप चाहे कोई भी नंबर दबाएं वोट तीसरे या पांचवें नंबर पर ही जाएगा. लेकिन आपको यह कैसे पता चलेगा कि तीसरे या पांचवें नंबर पर ही आपका नाम होगा. दरअसल एक्सपर्ट्स बताते हैं कि उम्मीदवारों के नाम ईवीएम मशीन में अल्फाबेटिकल ऑर्डर में लगाए जाते हैं. वहीं किस सीट पर कितने उम्मीदवार होंगे, किसका नाम वापस होगा और अंतिम लिस्ट में कौन रहेगा यह सब आखरी दिन तय होता है. इसलिए मशीन में आपका नाम किस नंबर पर आएगा यह पहले से कोई भी नहीं जानता है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति ईवीएम से छेड़छाड़ भी करता है तो छेड़छाड़ करके किसी एक नंबर पर वोट डालने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि उस व्यक्ति को पता ही नहीं होगा कि उसका नंबर किस तरह जगह पर आएगा.

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इसके अलावा एक्सपर्ट्स बताते हैं कि मान लीजिए कोई व्यक्ति एक मशीन में बदलाव कर दें. लेकिन चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार किसी को यह भी नहीं पता होता है कि वह मशीन उसके क्षेत्र में जाएगी या नहीं. ऐसे में मशीन से छेड़छाड़ का भी कोई फायदा नहीं होगा . दरअसल चुनाव आयोग मशीनों को पूरा पूरा रैंडमाइज्ड करके अलग-अलग बूथों पर भेजता है. जिसका मतलब है कि छेड़छाड़ की गई मशीन किस क्षेत्र में जाएगी यह किसी को नहीं पता होता है. ऐसे में ईवीएम से छेड़छाड़ करना असंभव हो जाता है. 

वोटिंग के दिन एजेंट भी करते हैं टेस्ट 

एक्सपर्ट्स के अनुसार ईवीएम को लेकर वोटिंग शुरू होने से पहले हर बूथ पर पार्टी एजेंटों के सामने मॉक पोल होता है. इसमें एजेंट खुद बटन दबाकर देखते हैं कि कौन सा वोट किस नंबर पर जा रहा है. जैसे तीन नंबर दबाने पर तीन नंबर की पर्ची निकल रही है या नहीं. अगर इसमें जरा सी भी गड़बड़ी होती है तो वहीं मशीन बदल दी जाती है. इसके अलावा मशीन को रिसेट करके सील किया जाता है और सभी एजेंट इस पर साइन भी करते हैं. ऐसे में जब वोटिंग शुरू ही एजेंट के सामने टेस्ट करके होती है तब धोखाधड़ी की गुंजाइश ही नहीं बजती है. 

वोटिंग की पूरी प्रक्रिया में हर कदम पर एजेंट मौजूद 

वोटिंग को लेकर पूरा सिस्टम इस तरह से बनाया गया है कि उम्मीदवार का एजेंट और अधिकारी दोनों हर स्टेप पर मौजूद रहते हैं. वहीं लास्ट मिनट तक उम्मीदवार के एजेंट और अधिकारी खुद बटन दबाकर देखते हैं कि वोट सही बटन पर ही जा रहा है या नहीं. इसीलिए एक्सपर्ट्स बताते हैं कि यह कहना कि मैंने एक नंबर दबाया और वोट किसी और को चला गया यह व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं है. एक्सपर्ट्स यह भी बताते हैं कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया के अनुसार आम नागरिक जाकर मशीन टेस्ट नहीं कर सकता है. सिर्फ रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों की तरफ से अधिकृत एजेंट ही बुथवार लिस्ट, टेस्टिंग और प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं. यही वजह है कि कई सूचनाएं आम जनता के लिए सार्वजनिक नहीं होती है, लेकिन पार्टियों को जरूर दी जाती है.

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