फाइटर जेट इंजन बनाना दुनिया की सबसे जटिल और उन्नत तकनीकों में से एक है. आज के समय में फाइटर जेट इंजन बनाने की क्षमता अमेरिका, रूस फ्रांस, ब्रिटेन के पास है. भारत ने अपने स्वदेशी फाइटर जेट, जैसे तेजस, को विकसित करने में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन इंजन निर्माण में अभी भी कई चुनौतियां हैं. फाइटर जेट तेजस के लिए हम दूसरे देशों पर निर्भर हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर लड़ाकू विमान का इंजन बनाना इतना मुश्किल काम क्यों है.

क्यों नहीं चल पाया कावेरी इंजन प्रोजेक्ट?

भारत ने 1986 में अपने पहले स्वदेशी लड़ाकू विमान इंजन कावेरी प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी लेकिन ये प्रोजेक्ट कई तकनीकि और वित्तीय कारणों से कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सका. इंजन में बार-बार कंप्रेशन की गड़बड़ी, थ्रस्ट की कमी और जरूरत से ज्यादा तापमान जैसी दिक्कतें आईं. 

क्या है चुनौतियां?पहली और सबसे बड़ी वजह है तकनीकी जटिलता. फाइटर जेट इंजन को बनाने के लिए उच्च तापमान और दबाव को झेलने वाली सामग्री, जैसे सिंगल क्रिस्टल ब्लेड्स, लेजर ड्रिलिंग और हॉट-एंड कोटिंग्स की जरूरत होती है. इन तकनीकों में महारत हासिल करने के लिए दशकों का अनुसंधान और अरबों डॉलर का निवेश चाहिए. अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे देश दशकों से इस क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे हैं, जबकि भारत का प्रयास, जैसे कावेरी इंजन प्रोजेक्ट, अपर्याप्त थ्रस्ट और तकनीकी सीमाओं के कारण असफल रहा.

आर्थिक संसाधन की कमीआर्थिक संसाधन की कमी भी फाइटर जेट बनाने में रोड़ा बन रही है. एक उन्नत इंजन बनाने में 5-10 बिलियन डॉलर की लागत और 10-15 साल का समय लग सकता है. भारत का रक्षा बजट, हालांकि बढ़ रहा है, लेकिन अभी भी इन बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए सीमित है. इसके अलावा, कुशल मानव संसाधन और उन्नत अनुसंधान सुविधाओं की कमी भी एक बड़ी बाधा है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की पुष्टि

हालांकि, भारत अब इस दिशा में कदम उठा रहा है. हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि भारत फ्रांस की कंपनी सैफरॉन के साथ मिलकर AMCA (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) के लिए 120 किलोन्यूटन का इंजन बनाएगा. यह प्रोजेक्ट 100% तकनीक हस्तांतरण और स्वदेशी उत्पादन पर केंद्रित है, जो भारत को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा.

इसे भी पढ़ें- किस कबीले से ताल्लुक रखते थे हजरत मोहम्मद साहब...जानिए कहां हुआ था उनका जन्म