हवाई जहाज हमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक तेजी से पहुंचाने वाला एक लोकप्रिय साधन बनता जा रहा है. हवाई जहाज को ट्रैक करने के लिए रडार का उपयोग किया जाता है. रडार से रेडियो तरंगें भेजकर पता करती हैं कि जहाज कितनी दूर है और उसकी स्पीड कितनी है, लेकिन समुद्र के ऊपर किसी तरह का कोई रडार सिस्टम नहीं होता है .ऐसे में हमारे मन में सवाल आता है कि समंदर के ऊपर जहाज को कैसे ट्रैक किया जाता है? चलिए जानते हैं इसके बारे में...
समंदर के ऊपर कैसे किया जाता है ट्रैक
समुद्र में रडार लगाने के लिए कोई जमीन नहीं होती है क्योंकि रडार स्टेशन को जमीन या पहाड़ियों पर लगाया जाता है. इस समस्या से निपटने के लिए Automatic Dependent Surveillance Broadcast का सहारा लिया जाता है. आजकल के आधुनिक विमान में यह सिस्टम लगा होता है जो विमान की स्थान, ऊंचाई, गति जैसी जानकारी लगातार सैटेलाइट को भेजता रहता है. यह समंदर के ऊपर भी काम करता है क्योंकि यह सीधे सैटेलाइट से जुड़ा होता है. कुछ विमान सीधे सैटेलाइट के जरिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क में रहते हैं. इस तरह तकनीक के सहारे समंदर के ऊपर उड़ रहे विमान को ट्रैक किया जाता है. अब नए विमानों में इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम लगा होता है जो विमान की गति, दिशा और समय के आधार पर यह अनुमान लगाता है कि विमान कहां है.
पहले कैसे होता था ट्रैक
आपने अक्सर सुना, पढ़ा होगा या फिर फिल्मों में देखा होगा कि जहाज रास्ता भटक कर गायब हो गया और उसकी खोज की गई. कुछ मिलें लेकिन उनमें से कुछ हमेशा के लिए गायब हो गए. आज तो आधुनिक सिस्टम मौजूद हैं जिससे उनको ट्रैक कर लिया जाता है, लेकिन पहले उनको ट्रैक करने के लिए क्या किया जाता था? दरअसल, पहले HF रेडियो का यूज किया जाता था. पायलट हर कुछ घंटों में अपनी स्थिति, ऊंचाई , गति रिपोर्ट करता था. Waypoints और Reporting Points का भी इस्तेमाल पायलट करते थे.