26 जनवरी को कर्तव्य पथ पर जवानों की परेड तो आपने देख ही ली होगी. सेना के जवान कैसे कदमताल करते हुए जोश से लबरेज दिखे थे. जमीन पर पड़ते उनके हर कदम वहां मौजूद हर किसी में जोश भर रहे थे. अब जब परेड खत्म चुकी है और अगले साल फिर 26 जनवरी को इस मार्च को देखने को मौका मिलेगा, तो हम आपको इससे जुड़ी रोचक बात बताने जा रहे हैं.
क्या आपको पता है कि सेना के जवानों को किसी भी ब्रिज (पुल) पर कदमताल यानी कि मार्च करने की इजाजत नहीं होती. जब भी जवानों का दस्ता किसी पुल से गुजरता है, तो जवान अपना सिंक तोड़ देते हैं और सामान्य तरीके से गुजरते हैं. ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे का साइंस क्या है? आपको बताते हैं.
यहां काम करती है फिजिक्स
हमने फिजिक्स में एक चैप्टर पढ़ा होगा-ऑसीलेशन यानी कि दोलन. ब्रिज पर जब सैनिक मार्च करते हैं तो यहां पर यही क्रिया काम करती है. दरअसल, पुल पर जब सैनिक एकसाथ मार्च करते हैं तो उनके कदम एकसाथ पड़ते हैं, इससे एक फ्रीक्वेंसी उत्पन्न होती है. यह फ्रीक्वेंसी पुल की नेचुरल फ्रीक्वेंसी से मैच हो जाती है. यानी कि जब पुल पर लग रहे फोर्स की फ्रीक्वेंसी, पुल की नैचुरल फ्रीक्वेंसी के बराबर हो जाती है तब रेजोनेंस होता है. रेजोनेंस के कारण पुल में तनाव आने लगता है, जिससे यह ढह जाता है. पुल में रेजोनेंस न आ जाए, इसलिए सैनिक कभी इस पर एकसाथ मार्च नहीं करते. वहीं, जब सैनिक सामान्य तरीके से पुल पार करते हैं, जब भी ऑसीलेशन होता है. हालांकि, यहां रेजोनेंस फोर्स कैंसिल हो जाता है.
हो चुके हैं हादसे
ऐसा नहीं है कि यह बात सैनिकों को पहले से पता थी. दरअसल, सैनिकों की मार्च के कारण कई बड़े हादसे हो चुके हैं. साल 1826 में इंग्लैंड के इरवेल नदी पर ब्रॉटन सस्पेंशन ब्रिज बना था. इस पुल को बने पांच साल हुए थे कि ब्रिटिश आर्मी के जवान 1831 कदमताल करते हुए इस पुल से गुजरे. नतीजा यह हुआ कि पुल ढह गया और 20 जवान जख्मी हो गए. इसके बाद फ्रांस के एंगर्स सस्पेंशन ब्रिज पर भी 1850 में ऐसा ही हादसा हुआ. फ्रांसीसी सेना के जवान पुल से गुजरे और पूरा पुल ढह गया. इसमें 200 से ज्यादा जवानों की मौत हो गई थी.