British Weapons India: ब्रिटिश राज के दौरान भारत में हथियारों की आवाजाही एक बहुत ही व्यवस्थित मिलिट्री सप्लाई ऑपरेशन था. यह लगभग दो सदियों में विकसित हुआ था. भारत द्वारा अपनी राइफल, तोप और विमान बनाना शुरू करने से बहुत पहले ब्रिटिश लोग इंग्लैंड से उपमहाद्वीप तक मिलिट्री उपकरण लाने के लिए समुद्री रास्ते पर निर्भर थे. आइए जानते हैं कि ब्रिटिश हथियार भारत कैसे पहुंचे.

Continues below advertisement

ब्रिटिश हथियार कैसे आए भारत 

ईस्ट इंडिया कंपनी के शुरुआती दौर के दौरान हथियार और जरूरी मिलिट्री सप्लाई लंदन में टेम्स नदी से ईस्ट इंडियामैन के नाम से जाने जाने वाले भारी हथियारों से लैस व्यापारिक जहाजों पर भेजे जाते थे. ये जहाज बंदूक और तोप से लेकर वर्दी और गोला बारूद तक सब कुछ ले जाते थे. इन शिपमेंट के मुख्य ठिकाने भारत के प्रमुख बंदरगाह शहर से जैसे कि पश्चिमी तट पर मुंबई, दक्षिण पूर्वी तट पर मद्रास और पूर्व में कोलकाता थे.

Continues below advertisement

एक बार जब यह जहाज पहुंच जाते थे तो हथियारों को पूरे देश में अलग-अलग ब्रिटिश गैरीसन, छावनी और किलेबंद जगह पर बांट दिया जाता था. ब्रिटिश शासन के दौरान समुद्री रास्ते सबसे जरूरी परिवहन तरीके बने रहे क्योंकि वह लंबी दूरी पर बड़े सुरक्षित शिपमेंट को अनुमति देते थे.

स्थानीय उत्पादन की शुरुआत 

जैसे-जैसे ब्रिटिश नियंत्रण बढ़ा स्थानीय उत्पादन की जरूरत भी बढ़ती गई. ब्रिटेन से सब कुछ लाना धीमा, महंगा और युद्ध के समय रुकावट खड़ी करता था. इस वजह से ब्रिटिशों ने भारत के अंदर हथियार निर्माण सुविधा स्थापित करनी शुरू कर दी. पहला बड़ा कदम 1775 में उठाया गया जब फोर्ट विलियम कोलकाता में आयुध बोर्ड की स्थापना की गई. 

ईशापुर में बारूद उत्पादन 

1787 में ईशापुर में एक बारूद फैक्ट्री को स्थापित किया गया और 1791 तक इसमें उत्पादन भी शुरू हो गया. यह एक जरूरी विकास था क्योंकि बारूद बंदूक, तोप और शुरुआती रायफलों के लिए मुख्य विस्फोटक सामग्री बनी रही है. 

1904 तक भारत ने पश्चिम बंगाल में राइफल फैक्ट्री लगाई. यह दुनिया के मिलिट्री इतिहास में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली राइफल में से एक शॉर्ट मैगजीन ली एनफील्ड MK III का प्रोडक्शन सेंटर बन गया. इसने ब्रिटिश सेना के सैनिकों और दुनिया भर में कॉमनवेल्थ सैनिकों के लिए स्टैंडर्ड राइफल के तौर पर काम किया. इसमें दोनों विश्व युद्ध भी शामिल हैं.

मिलट्री एयरक्राफ्ट प्रोडक्शन 

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी मिलिट्री पावर के बढ़ने के साथ-साथ अंग्रेजों को एक भारतीय एविएशन मैन्युफैक्चरिंग बेस की तुरंत जरूरत हुई. 1940 में बेंगलुरु में एक एयरक्राफ्ट फैक्ट्री स्थापित की गई जो बाद में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में बदल गई. आज यह भारत की सबसे बड़ी एयरोस्पेस कंपनियों में से एक है. 

कानपुर गोला बारूद का बड़ा केंद्र 

कानपुर भी तोप उत्पादन, गोला बारूद निर्माण और सामान्य आयुक्त आपूर्ति के लिए एक बड़े केंद्र के रूप में उभरा. यहां पर कई सुविधाएं स्थापित की गई. इन फैक्ट्रियों ने भारत में ब्रिटिश ऑपरेशंस और विदेशों में बड़े मिलिट्री अभियानों का समर्थन किया.

ये भी पढ़ें:  जितने दिन जेल में रहे नेहरू, क्या उतने दिन से ही पीएम हैं मोदी? प्रियंका का दावा कितना सही!