डॉलर के मुकाबले एक बार फिर से रुपया सबसे खराब स्तर पर है. फिलहाल एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 87.62 रुपये है. पिछले पांच साल में रुपया इस वक्त सबसे खराब स्तर पर है. हालांकि भारतीय रुपये के गिरने के कई कारण हैं, लेकिन इस बीच इंडियन करेंसी को संभालने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है, नहीं तो आम जनता पर महंगाई का बोझ फिर बढ़ सकता है. लेकिन हमेशा से रुपये का यह हाल नहीं था. चलिए जानें कि आजादी के वक्त रुपये की क्या कीमत थी और कब-कब रुपया गिरा है.

आजादी से पहले रुपये का क्या हाल था

आजादी के पहले भारत में ब्रिटिश शासन था, इसलिए उस वक्त भारतीय करेंसी को पाउंड में मापा जाता था. लेकिन बाद में इसे डॉलर में मापने की प्रक्रिया शुरू हुई, जो कि अभी भी जारी है. अमेरिका को दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश माना जाता है और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने की वजह से डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी मानी जाती है. दुनिया के ज्यादातर देश भी बिजनेस इन्वेस्टमेंट डॉलर में ही करते हैं. डॉलर एक बेंचमार्क करेंसी मानी जाती है, इसीलिए रुपये की तुलना भी डॉलर से होती है.

आजादी के वक्त कितनी थी डॉलर की कीमत

15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ था, उस वक्त एक डॉलर की कीमत एक रुपये के बराबर थी. लेकिन जब भारत आजाद हुआ तो देश के पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था चलाई जा सके. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार ने विदेश व्यापार बढ़ाने के लिए रुपये की वैल्यू कम करने का फैसला किया. उस वक्त पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये हुई थी.

कब-कब कितना टूटा रुपया

  • 100 सालों में भारतीय रुपये का मूल्य कई वजहों से गिरा है. 1925 में जो 1 रुपये से सामान खरीदा जा सकता था, आज उस 1 रुपये का मूल्य 1 पैसे से भी कम हो गया है. यह गिरावट मुद्रास्फीति, आर्थिक नीतियों और वैश्विक कारकों की वजह से हो रही है. 
  • 1920 के दशक में रुपये की क्रय शक्ति मजबूत थी, लेकिन उस वक्त भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था. तब मुद्रा का मूल्य सोने और चांदी से जुड़ा हुआ था. 
  • 1947 स्वतंत्रता के बाद भारत ने मुद्रा को स्थिर रखने के लिए मौद्रिक नीतियां अपनाईं. उस वक्त एक अमेरिकी डॉलर एक रुपये के बराबर था.
  • 1970 के दशक में जब वैश्विक तेल संकट हुआ तब बढ़ती मुद्रास्फीति की वजह से रुपये की क्रय शक्ति तेजी से घटने लगी. 
  • 1971 से 1991 के बीच वैश्विक अस्थिरता और आर्थिक संकट की वजह से रुपये में गिरावट आई थी.
  • 1991 से 2010 में वैश्वीकरण का प्रभाव रहा, इसीलिए आर्थिक सुधारों और बाजार खोलने के बावजूद रुपये का मूल्य धीरे-धीरे कम ही होता रहा है. 
  • वर्तमान में मुद्रास्फीति और वैश्विक कारणों की वजह से रुपये की क्रय शक्ति में गिरावट आई है. इसीलिए आज से 70 साल पहले जो चीजें 1 रुपये में आसानी से खरीदी जा सकती थीं, अब उनके लिए बहुत रुपये खर्च करने होते हैं. 

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