छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य, रणनीति और राज्य निर्माण की कहानियां इतिहास में दर्ज हैं, लेकिन उनसे जुड़ी एक भावुक दास्तान आज भी लोगों की जिज्ञासा बढ़ा देती है. कहा जाता है कि शिवाजी के एक पालतू कुत्ते ने अपने मालिक की मृत्यु के बाद ऐसा कदम उठाया, जिसने वफादारी की मिसाल को अमर कर दिया. क्या यह कहानी सच है या समय के साथ गढ़ी गई एक प्रतीकात्मक कथा? इसी सवाल के इर्द-गिर्द घूमती है यह रिपोर्ट, चलिए जानें.

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शिवाजी से जुड़ी वह अनकही कथा

मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम आते ही वीरता और स्वराज की भावना सामने आती है, लेकिन उनके निजी जीवन से जुड़ी एक कहानी अलग ही भावनात्मक रंग लिए हुए है. लोककथाओं में शिवाजी के पालतू कुत्ते का नाम वाघ्या बताया जाता है. कहा जाता है कि यह कुत्ता हमेशा उनके साथ रहता था और उनके प्रति असाधारण निष्ठा रखता था.

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चिता में कूदने की कहानी कैसे फैली

लोकप्रचलित कथाओं के अनुसार जब शिवाजी महाराज का निधन हुआ और रायगढ़ किले में उनका अंतिम संस्कार किया जा रहा था, तब वाघ्या ने चिता की ओर दौड़ लगाई और उसमें कूदकर अपनी जान दे दी. इस घटना को सदियों से वफादारी की चरम सीमा के रूप में बताया जाता रहा है. मराठा लोकगीतों और कथाओं में यह प्रसंग भावुक अंदाज में दोहराया जाता है, जिसने इसे जनमानस में गहराई से बैठा दिया.

इतिहास और लोककथा के बीच का फर्क

हालांकि इतिहासकार इस कहानी को लेकर एकमत नहीं हैं. कई शोधकर्ताओं का मानना है कि शिवाजी के समकालीन लिखित दस्तावेजों में वाघ्या या चिता में कूदने की घटना का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है. कुछ इतिहासकार इसे बाद के दौर में गढ़ी गई कथा मानते हैं, जो शिवाजी की महानता और उनसे जुड़े मूल्यों को और प्रभावशाली बनाने के लिए कही गई. वहीं दूसरी ओर, लोक परंपरा इसे सच मानकर आज भी संजोए हुए है.

रायगढ़ का स्मारक और विवाद

रायगढ़ किले पर वाघ्या की एक समाधि भी बताई जाती है, जो इस कथा को और बल देती है, लेकिन यही स्मारक विवाद का कारण भी बना है. कुछ संगठनों और इतिहासविदों ने इसे हटाने की मांग करते हुए कहा कि बिना ठोस ऐतिहासिक प्रमाण के ऐसी मान्यताओं को बढ़ावा देना सही नहीं है. इसके बावजूद आम लोगों के लिए वाघ्या आज भी निष्ठा और समर्पण का प्रतीक बना हुआ है.

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