हाल ही में हुई एक स्टडी के अनुसार सामने आया है कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने का पैटर्न पिछले कुछ सालों में बदल गया है. अब पंजाब और हरियाणा के किसान पहले की तरह सुबह है या दोपहर में पराली नहीं जलाते हैं. इसकी वजह से देश की ऑफिशियल सैटेलाइट मॉनिटरिंग व्यवस्था हालत पकड़ नहीं पा रही. दरअसल इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी की नई स्टडी बताती है कि सरकार जिन आंकड़ों को आधार बनाकर हवा की गुणवत्ता और प्रदूषण की रणनीति तय करती है, वे अधूरी तस्वीर पेश करते हैं. ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि पंजाब और हरियाणा के किस-किस वक्त पराली ज्यादा जला रहे हैं और इससे मॉनिटरिंग को कैसे धोखा दिया जा रहा है?
दोपहर के बाद पराली जलाने का नया ट्रेड
आईफॉरेस्ट की नई स्टडी में सामने आया है कि पंजाब और हरियाणा के ज्यादातर किसानों ने अब पराली देर दोपहर और शाम के समय जालना शुरू कर दिया है. आईफॉरेस्ट की मल्टी सैटेलाइट स्टडी की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में 2024 और 2025 के 90 प्रतिशत से ज्यादा बड़े फायर तीन बजे बाद हुए, जबकि 2021 में यह आंकड़ा केवल 3 प्रतिशत था. वहीं हरियाणा में भी 2019 से ही ज्यादातर बड़े खेतों में पराली 3 बजे के बाद जलाई जाने लगी, जिसका मतलब है कि कई सालों से असली मामलों की गिनती कम दिख रही है. वहीं सरकारी मॉनिटरिंग में इस्तेमाल होने वाले MODIS और VIIRS सैटेलाइट सिर्फ सुबह 10:30 बजे से 1:30 बजे के बीच उत्तर भारत के ऊपर से गुजरते हैं, इसलिए शाम के बाद जलाने वाली पराली रिकॉर्ड नहीं होती है.
ऑफिशल डाटा क्यों दिख रहा भ्रामक?
सरकारी डाटा के अनुसार पराली जलाने के मामलों में 90 प्रतिशत तक की गिरावट दिख रही है, लेकिन रिपोर्ट यह बताती है कि यह कमी असली नहीं है. बल्कि सैटेलाइट टाइमिंग मिसमैच की वजह से है. इससे न केवल असली पराली कम दिखाई देती है, बल्कि दिल्ली एनसीआर की वायु गुणवत्ता पर पराली के प्रभाव का सही आकलन भी नहीं हो पाता है.
आरटीआई में चौंकाने वाले खुलासे
हाल ही में आई एक आरटीआई जानकारी से पता चला आता है कि पराली जलाने के मामलों और कानूनी कार्रवाई दोनों में गिरावट आई है. लेकिन यह गिरावट कितनी सटीक है, यह साफ नहीं हो पाया है. आरटीआई की जानकारी के अनुसार 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच एनसीआर में 2024 में 12,750 पराली जलाने की घटनाएं रिकॉर्ड की गई. वहीं 2025 में 6,080 घटनाएं रिकॉर्ड की गई. इसमें पंजाब में 2024 में 10,909 घटनाएं रिकॉर्ड की गई, जबकि पंजाब में ही 2025 में यह घटनाएं लगभग आधी हो गई. 2025 में पराली जलाने की पंजाब में 5,114 घटनाएं रिकॉर्ड की गई. वहीं हरियाणा में 2024 में 1,406 घटनाएं दर्ज की जबकि 2025 में महज 662 घटनाएं दर्ज की गई. घटनाओं के अलावा 2024 और 25 में एफआईआर में भी गिरावट दर्ज की गई. जहां 2024 में 6,469 एफआईआर दर्ज की गई थी, वहीं 2025 में महज 2,193 एफआईआर दर्ज की गई. इन आंकड़ों को लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब 90 प्रतिशत आग सैटेलाइट में दिख ही नहीं रही तो इन आंकड़ों को सच मानना लेना भी गलत होगा.
जली हुई जमीन दिखा रही असली कंडीशन
आईफॉरेस्ट की स्टडी बताती है कि पराली को लेकर बर्न्ट-एरिया मैपिंग ज्यादा सटीक आंकड़े पेश करती है. दरअसल बर्न्ट-एरिया मैपिंग के अनुसार पंजाब में 2022 में 31,447 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पराली जलाई गई थी, जबकि 2025 में लगभग 20,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पराली जलाई गई. वहीं हरियाणा में 2019 में 11,633 वर्ग किलोमीटर एरिया में पराली जलाई गई, जबकि 2025 में 8,812 किलोमीटर एरिया में पराली जलाई गई. कुल मिलाकर रिपोर्ट के अनुसार 30,000 वर्ग किलोमीटर के आसपास खेतों में अभी भी पराली जलाई जा रही है, जिसका मतलब है कि फायर काउंट कम दिख रहा हो,लेकिन पराली जलाने की समस्या अभी भी मौजूद है.
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