दुनिया में तकरीबन 300 से ज्यादा धर्म के लोग रहते हैं, लेकिन इसमें सबसे प्रमुख धर्म हैं हिंदू, ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, सिख और जैन धर्म. भारत की बात करें तो यहां पर हिंदू धर्म के बाद इस्लाम सबसे बड़ा धर्म माना जाता है. इनके अपने रीति-रिवाज और कल्चर होते हैं, जिसका पालन करना हर मुस्लिम के लिए अनिवार्य होता है. इस्लाम की बात करें तो यह एकेश्वरवादी धर्म है, जिसमें अल्लाह को एकमात्र ईश्वर माना गया है और मोहम्मद साहब को उनका अंतिम पैंगबर माना जाता है. इस्लाम धर्म को मानने वालों ने शिर्क के बारे में तो जरूर सुना होगा. आइए जानें कि इसे सबसे बड़ा गुनाह क्यों माना जाता है.
क्या होता है शिर्क
शिर्क अरबी मूल शब्द से आया है, जिसका अर्थ होता है साझा करना या बांटना. धार्मिक संदर्भ में इसे देखा जाए तो इसका अर्थ है अल्लाह के साथ दिव्य गुणों या शक्तियों को साझा करना. इस्लाम में अल्लाह अद्वितीय और सच्चे ईश्वर माने गए हैं. शिर्क को इस्लाम में गंभीर पाप माना गया है. जिसका अर्थ होता है कि अल्लाह के अलावा किसी अन्य ईश्वर की इबादत करना या उसे मानना. मुस्लिमों में अल्लाह एकमात्र सच्चे ईश्वर हैं और उनके समान अन्य कोई देवता नहीं होते हैं. कहते हैं कि शिर्क करने से परलोक में मोक्ष प्राप्त करने में बाधा आती है, लेकिन अगर कोई यह व्यवहार छोड़कर मृत्यु से पहले पश्चाताप कर लेता है तो अल्लाह उसको माफ कर देता है.
इस्लाम में कई उलेमाओं का ऐसा मानना है कि शिर्क को तीन हिस्सों में बांटा गया है. आइए इसके बारे में जानें और शिर्क को विस्तार से समझें.
शिर्क-ए-अकबर
इसमें पहला शिर्क-ए-अकबर होता है, जिसको कि शिर्क का सबसे गंभीर प्रकार माना गया है. इसमें अल्लाह के अलावा किसी और को अपना इष्ट मानना शामिल है. इसमें मूर्ति पूजा, किसी अन्य देवता की पूजा या फिर अल्लाह के अलावा किसी और से मदद मांगना शामिल है.
शिर्क-ए-अस्गर
यह शिर्क का थोड़ा कम गंभीर रूप है, जिसमें कि दिखावे के लिए कोई काम करना शामिल होता है. जैसे कि दिखावे के लिए अल्लाह की इबादत करना या फिर दान करना. इसको दिखावे का शिर्क भी कहते हैं.
शिर्क-ए-खफी
यह शिर्क का सबसे सूक्ष्म रूप होता है. यह मन में छिपे हुए विचारों या इरादों से जुड़ा होता है. इसमें सच्चे मन से अल्लाह की इबादत न करना, या फिर किसी और की तारीफ या सम्मान को ज्यादा महत्व देना शामिल है.
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