जब पहली वर्ल्ड वॉर चल रही थी उस समय हिटलर की सेना तेज़ी से आगे बढ़ रही थी. हिटलर की जर्मन सेना का कोई तोड़ नहीं था, ऐसे में जब फ़्रांस पर हिटलर की सेना ने आक्रमण किया तो फ़्रांस ने दोनों पक्षों यानी फ़्रांस और हिटलर की जर्मन सेना के बीच मैजिनो लाइन बनाई थी. चलिए आज इसके बारे में विस्तार से जानते हैं और साथ ही ये भी जानेंगे कि फ़्रांस की सेना को क्या इस मैजिनो लाइन का फ़ायदा मिला भी?


क्या थी मैजिनो लाइन?


हिटलर की सेना तेज़ी से फ़्रांस की ओर आगे बढ़ रही थी. उनका मक़सद जल्द से जल्द फ़्रांस को अपना गुलाम बना लेना था और वहां तबाही मचानी थी. जैसे ही फ़्रांस को जर्मन सेना के इरादों के बारे में पता चला तो उन्होंने दोनों सैनाओं के बीच मैजिनो लाइन का निर्माण किया. मैजिनो लाइन में 7 मीटर मोटी दीवार वाले बंकर, बन्दूक, तोप और सिपाही थे. फ़्रांस ने इस लाइन में साढ़े चार सौ किलोमीटर में चप्पे-चप्पे पर सेना के सिपाहियों को खड़ा कर दिया था, जिनका मक़सद जर्मन सेना को धराशाही करना था. ब्रिटेन और फ़्रांस को इस बात का विश्वास था कि हिटलर की सेना इस दीवार को पार नहीं कर पाएगी.


मैजिनो लाइन को पार कर पाई जर्मन सेना?


मैजिनो लाइन की मज़बूती को देखकर हर किसी को ये लग रहा था कि जर्मन सेना उनके आगे ढेर हो जाएगी, लेकिन फ़्रांस की इस मज़बूत सेना और मैजिनो लाइन का भी हिटलर की सेना पर कोई असर नहीं हुआ और महज़ कुछ ही समय में जर्मन सेना ने फ़्रांस की इस लाइन को धराशायी कर दिया. साल 1940 में महज़ 6 हफ़्तों में हिटलर की फ़ौज ने फ़्रांस को घुटनों पर ला दिया. दरअसल फ़्रांस की इस जीत के पीछे जर्मनी की नई युद्ध नीति थी, जिसे ब्लिट्जक्रीग नाम दिया गया था.


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