भारत में कई ऐसे नियम और कानून हैं, जिनके बारे में हमने सुना तो जरूर होता है लेकिन उनके बारे में ठीक तरह से जानकारी नहीं होती है. ऐसा ही एक शब्द है कुर्की. आपने भी कई बार ये शब्द सुना होगा खासकर बैंक या फिर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में.
दरअसल, कानून की भाषा ने इसे कुर्की वारंट या वारंट ऑफ अटैचमेंट भी कहते हैं. आपने कई क्रिमिनल और सिविल मामलों में इसके बारे में सुना होगा. इसके अलावा कई बार पुलिस को माइक लगाके लोगों की प्रॉपर्टी कुर्क करते भी देखा होगा. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या होती है कुर्की और इस प्रक्रिया में आपके साथ क्या-क्या कर सकती है पुलिस.
कुर्की शब्द तो जरूर सुना होगा
कुर्की या जब्ती का सीधा मतलब होता है किसी इंसान की संपत्ति को परमानेंट या टेंप्रेरी बेसिस पर सरकारी कब्जे में लेना या जब्त कर लेना. इस कुर्की को लीगल भाषा में वारंट ऑफ अटैचमेंट भी कहा जाता है. ये वह लीगल वारंट होता है, जिसे कोर्ट जारी करता है. इंडियन कांस्टीट्यूशन में क्रिमिनल प्रोसीजर की धारा 82 से 86 तक कुर्की का प्रावधान दिया गया है. ऐसे में कुर्की के दौरान उस इंसान की जमीन, मकान, फर्नीचर, बैंक का पैसा और गाड़िया सभी चीज कुर्क की जा सकती हैं, जबकि कुछ जरूरी चीजें जैसे- कपड़े और बरतन नहीं जब्त किए जाते हैं .
कुर्की में क्या कर सकती है पुलिस ?
कुर्की दो तरह की होती है, एक तो सिविल मामलों में और दूसरी क्रिमिनल मामलों में.
1. सिविल मामलों में
सिविल मामलों में कुर्की का ऑर्डर कोर्ट से जारी होता है. इसमें पुलिस को बुलाया जाता है ताकि आसानी से संपत्ति को जब्त कर उसकी सुरक्षा की जा सके. इसलिए पुलिस का काम सिर्फ घर से समान को उठाना और उसे ले जाना होता है. इस जब्त समान की सिक्योरिटी का ध्यान भी पुलिस की जिम्मेदारी होती है. इस दौरान अगर कोई कुर्की करने से रोकता है तो पुलिस उसे रोक सकती है.
2. क्रिमिनल मामले
इन मामलों में पुलिस सबूत इकट्ठे करने के लिए अपराधी के घर में छानबीन कर सकती है. इसमें वह संपत्ति की तलाशी और जब्ती जैसी कार्रवाई कर सकती है. इसके अलावा अगर कोई इंसान सरकारी या गैर-सरकारी पैसे, प्रॉपर्टी या सामान के नुकसान का दोषी पाया जाता है और रिकवरी के ऑर्डर का पालन नहीं करता है तो पुलिस उसकी प्रॉपर्टी कुर्क कर सकती है.