27 जनवरी को हर साल ब्रिटेन में होलोकॉस्ट मेमोरियल डेे मनाया जाता है. लोग इस दिन को इसलिए मनाते हैं ताकि इससे जुड़ी यादें भूल सकें. साथ ही ये स्मृति दिवस होलोकॉस्ट के लाखों पीड़ितों की याद करने के अलावा उन लोगों को भी याद करने के लिए है जो दुनियाभर में नफरत का शिकार हुए और अपनी पहचान के कारण जनसंहार में मारे गए. होलोकॉस्ट शब्द यहूदियों को दी गई हिटलर की यातनाओं से जुुड़ा है. इस शब्द का हिंदी में अर्थ प्रलय स्मृति दिवस है. जो यहूदियों के लिए एक प्रलय ही था. तो चलिए समझते हैं आखिर होलोकॉस्ट है क्या.


क्या है होलोकॉस्ट?
बता दें होलोकॉस्ट एक ऐसी प्रक्रिया थी जो हिटलर के यहूदियों के साथ भेदभाव से शुरू हुई थी. इस प्रक्रिया में यहूदियों की पहचान की जाती थी. जिसके परिणामस्वरूप दसियों लाख लोगों को उनकी पहचान के आधार पर मौत के घाट उतार दिया गया. 


27 जनवरी को क्यों मनाया जाता है?
होलोकॉस्ट डे 27 जनवरी को इसलिए मनाया जाता है क्योंकि सोवियत सेना के सैनिकों ने इसी दिन 1945 में सबसे बड़े नाज़ी यातना शिविर ऑश्वित्ज़ बिरकेनाउ को आजाद कराया था. इस शिविर में लोगों को अलग-अलग तरह की यातनाएं देकर मारा जा रहा था. 


नाजियों को होलोकॉस्ट की क्या मिली सजा?
होलोकॉस्ट आज भी बर्बरता की एक पहचान माना जाता है. जिसमें नाजियों की नफरत का शिकार यहूदी हो रहेे थे. इन मामले पर संयुक्त राष्ट्र ने 11 दिसंबर 1946 को फैसला सुनाया था. जिसमें कहा गया था कि जनसंहार अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अपराध माना जाएगा. क्योंकि युद्ध खत्म होने के ठीक बाद हिटलर ने आत्महत्या कर ली थी इसलिए उसे इसकी सजा देना संभव नहीं था. ऐसे में द्वितीय विश्वव युुद्ध के बाद कई दशकों तक इस मामले मेें आरोपी माने गए नाजियों पर मुकदमा चलाया गया था. 


94 वर्षीय ऑस्कर ग्रोइनिंग को साल 2015 में जर्मन अदालत नेे दोषी मानते हुए सजा सुनाई थी. हालांकि कई नाजी ऐसे थे जो दोषी ठहराए जाने से पहले ही मर चुके थे, वहीं कई नाजी हिटलर की मौत के बाद छुप गए थे, जो कभी मिले ही नहीं.                                        


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