History Of Evil Eye: हर किसी का बुरी नजर से बचने का अपना अलग तरीका होता है. कोई नवजात को बुरी नज़र से बचाने के लिए काला टीका लगाता है तो कोई दुकान के बाहर नींबू मिर्ची लटकाता है. बुरी नजर वाला ये टोटका अब तो सोशल मीडिया पर भी दिखने लगा है. इसे इमोजी के रूप में सेलिब्रिटी से लेकर आम लोग तक सभी लोग अपनी पोस्ट में शेयर करने लगे हैं. लोगों का मानना है कि ये उन्हें बुरी नज़र से बचाने के लिए है. ये काम करता है या नहीं यह तो पता नहीं पर ये सच है कि Evil Eye हमारी संस्कृति और इतिहास का हिस्सा सदियों से है. चलिए आज जानते हैं कि नज़र से बचने का ये तरीका कितना पुराना है और दुनिया के किन-किन देश या संस्कृतियों में ये अब तक देखने को मिलती है.


क्या होती है बुरी नज़र?
जब लोग किसी को अपने से बेहतर या अच्छी स्थिति में देखते हैं, चाहे वह कपड़े में हो, खानपान में हो या घर की हो तो लोग इस शख्स को ईर्ष्या की निगाहों से देखते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दौरान लोगों की नज़रों से नेगेटिव ऊर्जा निकलती है जिससे सामने वाले का नुकसान होता है. माना जाता है कि यह लोगों को चोट लगने और दुर्भाग्य का भी कारण बन सकती है. 


बुरी नज़र का इतिहास
Cuneiform के रूप में बुरी नज़र का पहला दर्ज साक्ष्य करीब 5000 साल पहले मेसोपोटामिया में देखने को मिला था. टेल ब्रैक मेसोपोटामिया के सबसे पुराने शहरों में से एक था, वहां खुदाई में इसके कई ताबीज़ मिले थे. उस समय के कुछ अवशेषों में इसे मिट्टी के गोलियों के रूप में दिखाया गया है. कुछ लोगों का मानना है कि बुरी नजर का कॉन्सेप्ट पुरापाषाण युग से ही चलता आ रहा है. ये एक प्रकार से मिट्टी या फिर मूर्तियों में दिखाई गई इविल आई थी.


मिस्र से भी जुड़े हैं तार
Evil eye को इसके आज वाले आधुनिक रूप यानी नीले रंग और कांच के ताबीज़ में बाद में बदला गया था. ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 1500 ईसा पूर्व तक भूमध्यसागरीय क्षेत्र के कांच के व्यापार वाले क्षेत्र में हुई. संभवत: इसे मिस्र की चमकदार मिट्टी से बनाया गया था. इस मिट्टी में ऑक्साइड का उच्च प्रतिशत होता है. रही बात इसके नीले रंग की तो तांबे और कोबाल्ट को जलाने से इसे नीला रंग मिला. मिस्र में हुई खुदाई में ऐसे कई ब्लू आई ऑफ़ होरस पेंडेंट मिले थे जो ये इस बात की ओर इशारा करते हैं कि वहां भी इस अवधारणा में विश्वास था. 


तुर्की की एक जनजाति भी करती है इस्तेमाल
तुर्की में एक जनजाति के लोग मानते हैं कि आकाश के देवता तेंगरी बुरी नज़र से बचाते हैं. चूंकि आकाश का रंग नीला होता है इसलिए उन्होंने भी बुरी नजर से बचने के लिए नीले रंग के ताबीज़ बनाने शुरू किए थे.


रोम और ग्रीस में भी मिलते हैं इसके साक्ष्य
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि लगभग 3000 साल पहले प्राचीन ग्रीस और रोम में भी बुरी नज़र के बारे में लिखा मिलता है. उस दौर में लोग ये मानते थे कि Evil Eye के ताबीज़ों को पहने से बुरी नजर से बचा जा सकता है. Evil Eye का चलन कई संस्कृतियों और धर्मों में देखने को मिलता है.


भारत में भी सालों से है इसका चलन
हिंदू धर्म में भी बुरी नज़र से बचने के लिए बहुत से उपाय किए जाते हैं. भारत में बहुत से लोगों को नज़र लगने की अवधारणा पर विश्वास है. बहुत से लोगों का मानना है कि बुरी नज़र से दूध देने वाले पशु का दूध सूख जाता और यहां तक कि फलों से लदा वृक्ष भी अचानक से सूख सकता है. इसलिए इससे बचने के लिए लोग काला टीका, नींबू मिर्च, घर के बाहर जूता टांगना आदि टोटके करते रहते हैं. 


यूरोप के लोग को भी है Evil Eye में विश्वास
यूरोप के लोगों का भी यह मानना है कि Evil Eye से दुर्भाग्य आने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. वहां माना जाता है कि नीली आंखों वाले मनुष्य के पास बुरी नजर लगाने का सामर्थ्य होता है. इतना ही नहीं, इटली में ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों की भौहें जुड़ी हुई होती हैं उनसे भी लोग बचकर रहने की कोशिश करते हैं. वहां लोगों का ऐसा मानना है कि ऐसे लोगों के पास बुरी नज़र लगाने की शक्ति होती है.


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