आज से करीब तीन साल पहले शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच एक नाम काफी चर्चा में आया. यह नाम था- NATO यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन. यूक्रेन इस संगठन का सदस्य बनना चाहता था, लेकिन रूस को यह मंजूर नहीं था. इसका सबसे बड़ा खतरा यह था कि अगर यूक्रेन NATO में शामिल हो जाता है तो अमेरिकी फौज, रूस के बॉर्डर तक पहुंच जाएगी, जिससे रूस और अमेरिका के बीच सीधे टकराव बढ़ेगा ही रूस के लिए खतरा बढ़ जाएगा. 

Continues below advertisement

अमेरिका में हुए सत्ता परिवर्तन और डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने एक चीज स्पष्ट कर दी है कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता नहीं दी जाएगी, जो रूस के लिए राहत वाली बात है और इस संघर्ष को भी एक हद तक रोकती है. इसके अलावा ट्रंप ने कई बार अमेरिका के नाटो से बाहर आने के संकेत दिए हैं. ऐसे में चलिए आज जानते हैं कि अगर अमेरिका नाटो जैसे संगठन से बाहर आ जाता है तो यह संगठन कितना कमजोर हो जाएगा और आखिरी इस संगठन में अमेरिकी शेयर कितना है? 

पहले जानिए क्या है नाटो?

Continues below advertisement

नाटो का पूरा नाम नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन है, जिसकी स्थापना 1949 में की गई थी. उस समय अमेरिका समेत 12 इसके संस्थापक सदस्य देश थे. संगठन का उद्देश्य सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव को कम करना और सोवियत सेना से मुकाबला करना था. जैसे-जैसे यह संगठन मजबूत होता गया, कई अन्य देश भी इसके सदस्य बन गए, इस समय नाटो सदस्य देशों की संख्या 31 है, जिसमें कई शक्तिशाली राष्ट्र शामिल हैं. नाटो संगठन की एक पॉलिसी है कि अगर इसके किसी एक सदस्य देश पर हमला हुआ तो उसे नाटो पर हमला माना जाता है, जिसके बाद सभी देश इसका बदला लेते हैं. 

कितना है अमेरिकी शेयर?

नाटो संगठन की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका का उसके साथ होना है. यह संगठन अमेरिकी प्रयासों से ही अस्तित्व में आया था, ऐसे में अमेरिका इस संगठन का नेतृत्व तो करता है, साथ ही इसके सदस्य देशों को एक प्रोटेक्शन लेयर भी मुहैया कराता है. नाटो में अमेरिकी शेयर की बात करें तो संगठन की आर्थिक और सैन्य जरूरतों का 70 फीसदी वहन अमेरिका ही करता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, नाटो के सालाना 3.5 अरब डॉलर के खर्च में 15.8% का हिस्सा अमेरिका देता है. इतना ही नहीं पूरे यूरोप में अमेरिका के 80,000 से 100,000 सैनिक तैनात हैं. 

अमेरिका के बाहर होने से कितना कमजोर हो जाएगा NATO?

अमेरकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार इस ओर इशारा कर चुके हैं कि अमेरिका कभी भी नाटो से बाहर आ सकता है. अगर ऐसा होता है तो इस संगठन की ताकत काफी कम हो जाएगी. इस बात को इस तरह समझें कि नाटों में शामिल यूरोपीय देशों के अमेरिका के लेबल तक ले जाने में 5 से 10 साल का एक्स्ट्रा खर्च लगेगा. इतना ही नहीं संगठन की सैन्य शक्ति भी 50 फीसदी से ज्यादा घट जाएगी और रूस जैसे ताकतवर देशों से मुकाबला करना मुश्किल हो जाएगा. 

सबसे बड़ा खतरा परमाणु खतरे का

रूस के पास 5580 परमाणु हथियार हैं, इसके बाद अमेरिका का नंबर आता है, जिसके पास आधिकारिक रूप से 5044 परमाणु हथियार हैं. यूके और फ्रांस जैसे अन्य नाटो सदस्य देशों के परमाणु हथियारों को जोड़ा जाए तो इनके पास करीब 500 परमाणु हथियार हैं. ऐसे में अगर अमेरिका इस संगठन से अलग हो जाता है तो नाटो की परमाणु ताकत रूस के मुकाबले बहुत कम हो जाएगी. एक तरफ रूस के पास करीब 6000 परमाणु हथियार होंगे तो अमेरिका के अलग होने से नाटो की परमाणु ताकत केवल 500 हथियारों तक सीमित हो जाएगी. 

यह भी पढ़ें: भारत में किसके पास है परमाणु हथियारों का कंट्रोल, क्या प्रधानमंत्री दे सकते हैं हमले का आदेश?