America On Muslim Countries: डोनाल्ड ट्रंप जब पिछली बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, उस वक्त मुस्लिमों में उनको लेकर राय कुछ खास अच्छी नहीं थी. दरअसल ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में कई मुस्लिम विरोधी फैसले लिए थे, जिसमें मुस्लिम देशों पर इमीग्रेशन पर बैन लगा दिया गया था. इससे कई देश के लोगों के लिए अमेरिका ने वीजा देना बंद कर दिया था. ट्रंप के बाद जब जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने फिर से वो बैन बटा दिया और इन देशों से लोगों का अमेरिका आना-जाना शुरू हो गया था. अब जब साल 2024 में एक बार फिर से ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए हैं तो मुस्लिम देशों में उनको लेकर चर्चाएं अलग-अलग हुई हैं. इन देशों के लोगों ने माना है कि जब तक ट्रंप राष्ट्रपति रहेंगे तब तक उनके लिए चार साल भारी रहने वाले हैं.
फिलिस्तीनियों ने की थी अमेरिका की नीतियों में बदलाव की उम्मीद
जब ट्रंप राष्ट्रपति बने तो न्यूज वेबसाइट AA.COM पर छपे आर्टिकल में फिलिस्तीनी मूल के एक पत्रकार का कहना था कि व्हाइट हाउस का नेतृत्व चाहे डोनाल्ड ट्रंप करें या फिर कमला हैरिस, अमेरिका इजराइल के प्रति अपने रवैये में कोई बदलाव नहीं लाएगा. उन्होंने आगे कहा कि फिलिस्तीनी अमेरिका में ऐसी सरकार देखना चाहते हैं, जो कि जंग को बढ़ाए नहीं बल्कि खत्म कर दे. वहीं गाजा के लोगों ने ट्रंप के जीतने पर अमेरिका की नीतियों में बदलाव की उम्मीद जताई
मुस्लिम देशों के लिए अगले चार साल भारी?
अलजजीरा के एक आर्टिकल में कहा गया था कि जब साल 2016 में ट्रंप पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उस वक्त अरब लोगों और मुस्लिम को ट्रंप की नीतियों के शिकार के रूप में देखा जाता था. क्योंकि साल 2017 में ट्रंप ने सात मुस्लिम बाहुल्य देशों ईरान, इराक, सीरिया, यमन, सोमालिया, लीबिया और सूडान की यात्रा पर रोक लगा दी थी. इस आर्टिकल में तो यह भी कहा गया था कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में मुस्लिम अलग-थलग महसूस कर सकते हैं. इसमें सीधा लिखा था कि जो भी फिलिस्तीनियों की मानवता की वकालत कर रहा है, उसके लिए ट्रंप के आने के बाद अलगे चार साल बहुत भारी रहने वाले हैं.
कौन है अमेरिका का कट्टर दुश्मन
कुल मिलाकर ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका का रवैया मुस्लिम देशों के लिए अच्छा नहीं रहा है. इस वक्त अमेरिका का सबसे बड़ा कट्टर दुश्मन ईरान माना जाता है. लेकिन हाल ही में जब केलिफोर्निया में बड़ी तादात में आग लगी थी, तब कई देशों ने अमेरिका के लिए मदद का हाथ बढ़ाया था. हैरानी की बात यह रही कि इस दौरान ईरान ने भी अमेरिका की मदद की थी. पेजेशकियन प्रशासन की प्रवक्ता फतेमेह मोहजेरानी ने गाजा युद्ध की याद दिलाते हुए कहा था कि इंसान दूसरे देशों के घरों और प्राकृतिक संसाधनों का विनाश देखकर खुश नहीं रह सकता है, चाहे इसकी वजह युद्ध या फिर प्रकृति का प्रकोप क्यों न हो. दरअसल ईरान गाजा युद्ध को लेकर अमेरिका को इसका जिम्मेदार बता चुका है.