Mughal Chakhna History: मुगल बादशाह अपनी भव्यता, कला और शानदार जीवन शैली के लिए काफी ज्यादा मशहूर थे. बाबर से लेकर जहांगीर तक कई मुगल बादशाहों को शाही शौक के तौर पर शराब और अफीम पसंद थी. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि उसे समय में मुगल बादशाह शराब के साथ चखने के तौर पर क्या खाना पसंद करते थे. आइए जानते हैं.

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मुगल शासकों में शराब पीने की आदतें 

मुगल फारस और मध्य एशिया से बढ़िया शराब और अफीम मंगाया करते थे. जहांगीर को सबसे बड़े शराब प्रेमियों में माना जाता है. जहांगीर ने अपनी आत्मकथा 'तुजुके-जहांगीरी' मैं इस बात का जिक्र किया है कि वह एक दिन में शराब के 20 जाम तक पीता था. इतना ही नहीं बल्कि वह अपनी शराब को ठंडा रखने के लिए कश्मीर से बर्फ तक मंगवाता था. 

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शराब के साथ परोसा जाने वाला चखना

मुगल काल में खजूर, खुबानी और अंजीर जैसे सूखे मेवे, इसी के साथ बादाम, पिस्ता और अखरोट जैसे मेवों को चखने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. पारस और अफगानिस्तान से मंगाई गई यह खास मेवे महफिलों की शान हुआ करते थे. इसी के साथ बादशाहों को शिकार का काफी ज्यादा शौक था. इसलिए उनके चखने में ताजा शिकार का मांस, भुना हुआ मांस और कबाब शामिल होते थे. किसी के साथ तले हुए खाद्य पदार्थ, और अन्य नमकीन स्नैक्स का भी काफी ज्यादा चलन था. 

कहां से आया चखने का चलन?

शराब के साथ चखने का यह विचार भारतीय नहीं था. यूरोप में शराब और बियर के साथ चीज ब्रेड और हल्के स्नेक्स को परोसा जाता था. इसका कारण होता था कि शराब का असर थोड़ा काम हो. मुगलों ने फारसी और मध्य एशिया संस्कृति को अपनाते हुए चखने को भी अपनाया और उसे अपने हिसाब से ढाल लिया.

दरअसल चखने का मतलब होता है स्वाद लेना. वक्त के साथ-साथ यह शराब पीते समय खाए जाने वाले स्नेक्स के लिए एक मुख्य शब्द बन गया. चखने का एक व्यावहारिक उद्देश्य भी है. दरअसल शराब पीते वक्त चखना पाचन में मदद करता है और शराब के बुरे असर को भी काम करता है. 

भारत में इसका प्रसार 

मुगल दरबारों में जब चखने को अपनाया गया तो इसकी पहुंच धीरे-धीरे आम लोगों तक भी पहुंची. आज सड़क किनारे बेचने वाले भुने हुए चने, मूंगफली और मसालेदार नमकीन इसी परंपरा का एक मॉडर्न रूप है.

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