भारत का स्वतंत्रता संग्राम सिर्फ युद्धों, आंदोलनों या नेताओं की कहानी नहीं है. यह एक ऐसी यात्रा है जिसमें हर शब्द, हर नारा और हर गीत ने देश की आत्मा को झकझोर दिया. आज यानी 7 नवंबर 2025 को हम भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि आजादी के आंदोलन की आत्मा है, जिसने लाखों देशवासियों को एक साथ में बांध दिया था. क्या आप जानते हैं कि वंदे मातरम से पहले भी कुछ और नारे थे जो क्रांतिकारियों की आवाज बन चुके थे? बहुत कम लोग जानते हैं कि इस अमर गीत से पहले भारत के वीरों के दिलों में जोश भरने वाले दूसरे नारे कौन से थे? आइए आज हम आपको बताते हैं कि वंदे मातरम से पहले क्रांतिकारी कौन-सा नारा लगाते थे?
वंदे मातरम का जन्म और उसका इतिहास
वंदे मातरम की रचना बंकिम चंद्र चटर्जी ने की थी. इसे पहली बार 7 नवंबर 1875 को बंगाली पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित किया गया था. बाद में यह गीत उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में शामिल हुआ. यह गीत मां भारती के प्रति भक्ति, देश के प्रति प्रेम और बलिदान की भावना से भरा हुआ है. इस गीत को रवींद्रनाथ टैगोर ने संगीतबद्ध किया था और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह एक पुकार बन गया. हर भारतवासी की जुबान पर सिर्फ एक ही आवाज वंदे मातरम थी.
1907 में मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट शहर में भारत का पहला झंडा फहराया था, जिस पर वंदे मातरम लिखा हुआ था. इससे पता चलता है कि यह गीत न सिर्फ भारत के भीतर बल्कि विदेशों में भी भारत की पहचान बन चुका था.
वंदे मातरम से पहले क्रांतिकारी क्या नारे लगाते थे?
भारत का स्वतंत्रता आंदोलन कई चरणों में आगे बढ़ा, शुरुआती दौर में आंदोलन ज्यादातर विद्रोह के रूप में था. उस समय वंदे मातरम तो लिखा जा चुका था, पर यह इतने बड़े रूप में प्रसिद्ध नहीं हुआ था. इस दौर में क्रांतिकारी और देशभक्तों के बीच कुछ दूसरे नारे बेहद मशहूर थे, जैसे -
1. इंकलाब जिंदाबाद: यह नारा सबसे पहले मौलाना हसरत मोहानी ने दिया था. बाद में शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने इसे प्रसिद्ध बना दिया. जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 1929 में दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका तो उन्होंने जोर से इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया था. इस नारे का अर्थ था कि क्रांति हमेशा जिंदा रहे.
2. सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है - यह नारा क्रांतिकारी कवि राम प्रसाद बिस्मिल की प्रसिद्ध कविता से लिया गया है. इसने हजारों नौजवानों को प्रेरित किया कि वे मातृभूमि के लिए अपना बलिदान कर दें. इस नारे का मतलब था कि हमारे दिल में अब देश के लिए बलिदान देने की इच्छा है.
3. जय हिंद और भारत माता की जय - जय हिंद नारे को सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध किया. वहीं भारत माता की जय भी स्वतंत्रता सेनानियों की सभाओं और आंदोलनों में गूंजता रहता था।. इन नारों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीयों में जोश भर दिया. उस समय जब क्रांतिकारियों के पास बंदूकें नहीं थीं, तो ये नारे ही उनके हथियार थे. ये शब्द उनके हौसले थे, उनकी लड़ाई की पहचान थे.
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