मुस्लिम समाज में तलाक की प्रथाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सख्त रुख अपनाया है. दरअसल तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या किसी सभ्य समाज में ऐसी एक तरफा प्रक्रिया को स्वीकार किया जा सकता है. इसे लेकर जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जवल भुइयां और जस्टिस कोटिश्वर सिंह की पीठ ने तलाक-ए-हसन को पांच जजों की बड़ी बेंच को भेजने के संकेत दिए हैं. इस मामले में याचिकाकर्ता बेनजीर हिना ने पति की तरफ से वकील के माध्यम से भेजे गए एक तरफ तलाक नोटिस को असंवैधानिक बताया है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि ट्रिपल तलाक के अलावा कितनी तरह के तलाक होते हैं और इनमें क्या अंतर होता है. किस मामले पर सुनवाई कर रहा सुप्रीम कोर्ट? दरअसल याचिकाकर्ता बेनजीर हिना को उनके पति यूसुफ ने तलाक-ए-हसन के जरिए एकतरफा तलाक दिया. इसे लेकर महिला का कहना है कि यह प्रथा मुस्लिम महिलाओं में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के खिलाफ है. साथ ही उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट 1937 की धारा 2 को भी चुनौती दी है जो मुस्लिम पुरुष को एक तरफ तलाक देने की अनुमति देता है. वहीं 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के तलाक को लेकर शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य मामलों में तत्काल तीन तलाक तीन तलाक को अमान्य करार दिया था. इसके साथ ही मुस्लिम महिला विवाह अधिनियम 2019 भी लागू हुआ था. वहीं मुस्लिम समुदाय में तलाक पांच तरह के होते हैं. मुस्लिम समुदाय में तलाक के प्रकार तलाक-ए-अहसन इस्लाम कानून में तलाक-ए-हसन को तलाक का सबसे सही और शांतिपूर्ण तरीका माना गया है. इसमें पति एक बार तलाक कहकर इद्दत की अवधि यानी लगभग 3 महीना का इंतजार करता है. इस दौरान अगर दोनों के बीच समझौता हो जाए तो तलाक अपने आप रद्द माना जाता है. यह तरीका बिना विवाद और बिना किसी जल्दबाजी के रिश्ते को सोच-समझकर खत्म करने की प्रक्रिया देता है. तलाक-ए-हसन तलाक-ए-हसन में पति महीने के एक खास समय में तीन बार तलाक बोलता है. लेकिन तीनों बार तलाक तीन अलग-अलग महीना में बोला जाता है. इसमें पहली और दूसरी बार के बीच पति के पास रिश्ता सुधारने का मौका होता है. वहीं अगर तीसरी बार भी तलाक दे दिया जाए तो निकाह खत्म माना जाता है. इसे भी शरीयत में तलाक के मान्य और बेहतर तरीकों में गिना गया है. खुला खुला तलाक का वह तरीका है जिसमें तलाक की पहल पत्नी करती है. इसमें पत्नी अपने पति से शादी खत्म करने की इजाजत मांगती है और आमतौर पर मेहर या कुछ आर्थिक चीजें वापस करती है. अगर पति राजी हो जाए तो खुले के जरिए तलाक हो जाता है. वहीं अगर पति राजी नहीं होता है तो महिलाएं इस्लामिक काउंसिल या कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन कर सकती है. यह इस्लाम में महिलाओं को दिया गया एक महत्वपूर्ण अधिकार माना जाता है. मुबारत
मुबारत में तलाक पति या पत्नी में से किसी एक की तरफ से नहीं बल्कि दोनों की आपसी रजामंदी से होता है. इसमें दोनों इस बात पर सहमत होते हैं की शादी अब आगे नहीं चल सकती है. यह तरीका शांतिपूर्ण और आपसी संबंध से निकाह खत्म करने का रास्ता माना जाता है. तलाक-ए-बिद्दत तलाक-ए-बिद्दत का मतलब ट्रिपल तलाक है. मुस्लिम समुदाय में यह तलाक का वह तरीका है जो भारत में सबसे ज्यादा चर्चा में रहा है और जिसे अब भारत में कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है. इसमें पति एक ही बार में तीन तलाक बोलकर निकाह खत्म कर देता है. इसे इस्लाम में भी कमतर और जल्दबाजी वाला तरीका माना जाता है. इसलिए इसे समाप्त किया गया.
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