अगर दो पार्टियों को बराबर आती हैं सीटें तो कैसे बनेगी सरकार? जानिए कितना महत्वपूर्ण है राज्यपाल का रोल
ऐसी स्थिति को हंग असेंबली कहा जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि अब सरकार कौन बनाएगा, दो पार्टियां ही बराबर सीटें ले गई और थर्ड पार्टी अगर जीरो है तो बहुमत कैसे तय होगा.

कई बार चुनाव के बाद ऐसी स्थिति बन जाती है जब दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों को बराबर-बराबर सीटें मिल जाती हैं यानी न किसी को बहुमत मिला, न कोई साफ तौर पर सरकार बनाने की स्थिति में है. ऐसी स्थिति को हंग असेंबली कहा जाता है. ऐसे में तब सवाल उठता है कि अब सरकार कौन बनाएगा? दो पार्टियां ही बराबर सीटें ले गई और थर्ड पार्टी अगर जीरो है तो बहुमत कैसे तय होगा, किसके हाथ में सत्ता की बागडोर जाएगी और इसमें राज्यपाल की क्या भूमिका होती है. तो चलिए जानते हैं कि अगर दो पार्टियों को बराबर आती हैं सीटें तो सरकार कैसे बनेगी और इसमें राज्यपाल का रोल कितना महत्वपूर्ण है.
अगर दो पार्टियों को बराबर आती हैं सीटें तो सरकार कैसे बनेगी
जब दो पार्टियों को एक समान सीटें मिलती हैं, तो नतीजा बीच में अटक जाता है. ऐसी स्थिति में तुरंत कोई सरकार नहीं बन पाती फिर संविधान के मुताबिक कुछ प्रक्रियाएं शुरू होती हैं.
1. राज्यपाल या राष्ट्रपति की भूमिका – राज्यपाल या राष्ट्रपति यह तय करते हैं कि सरकार बनाने के लिए पहले किसे बुलाया जाए. आम तौर पर वे उस पार्टी को बुलाते हैं जो सबसे बड़ी पार्टी हो या जिसके पास गठबंधन करके बहुमत जुटाने की संभावना ज्यादा हो.
2. गठबंधन बनाने की कोशिश – इसमें दोनों पार्टियां छोटी पार्टियों, निर्दलीय विधायकों या सहयोगी दलों से बात करना शुरू करती हैं. वे उन्हें मंत्रालय, नीतिगत समझौते या विकास परियोजनाओं का वादा देकर समर्थन मांगती हैं ताकि बहुमत का आंकड़ा पार किया जा सके.
3. विश्वास मत यानी Trust Vote – जो भी पार्टी या गठबंधन सरकार बनाता है, उसे विधानसभा में बहुमत साबित करना होता है यानी सदन में वोटिंग होती है कि क्या ज्यादातर सदस्य उस सरकार के पक्ष में हैं या नहीं. अगर वोट बराबर हो जाएं, तो विधानसभा अध्यक्ष का निर्णायक वोट तय करता है कि कौन जीतेगा.
अगर फिर भी बहुमत नहीं बन पाए तो क्या होता है?
कभी-कभी ऐसा होता है कि न तो कोई पार्टी बहुमत जुटा पाती है और न ही गठबंधन बनता है. ऐसे में कुछ और विकल्प सामने आते हैं. जैसे -
1. अल्पमत सरकार यानी Minority Government – अगर एक पार्टी को थोड़ा ज्यादा समर्थन है तो राज्यपाल उसे सरकार बनाने का मौका दे सकते हैं. ऐसी सरकार तब तक चलती है जब तक विपक्ष उसे गिरा नहीं देता.
2. सत्ता-साझेदारी यानी Power Sharing – इसमें दोनों पार्टियां आपसी सहमति से तय कर सकती हैं कि वे मिला-जुला शासन करें. जैसे आधा कार्यकाल एक पार्टी का मुख्यमंत्री रहे, फिर आधा कार्यकाल दूसरी पार्टी का
3. फिर से चुनाव – अगर कोई स्थिर सरकार नहीं बन पाती, तो राज्यपाल विधानसभा को भंग कर सकते हैं और फिर से चुनाव करवा सकते हैं. हालांकि, यह लास्ट ऑप्शन होता है, क्योंकि नए चुनाव का खर्च और राजनीतिक अस्थिरता दोनों ही बड़ी चुनौतियां होती हैं.
इसमें राज्यपाल का रोल कितना महत्वपूर्ण है
राज्यपाल किसी राज्य के लिए राज्य प्रमुख होते हैं. वे केंद्र सरकार के प्रतिनिधि की तरह राज्य में काम करते हैं, लेकिन उनका काम सिर्फ औपचारिक नहीं होता बल्कि कई बार निर्णायक भी होता है. राज्यपाल के पास कुछ संवैधानिक शक्तियां होती हैं जो ऐसे संकट में बहुत अहम साबित होती हैं. जैसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रण देना, बहुमत साबित करने की समय-सीमा तय करना, विधानसभा भंग करने की सिफारिश और आपातकालीन स्थिति में निर्णय लेना.
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Source: IOCL





















