Oldest Temple Of Devi Mata: पीएम मोदी आज त्रिपुरा में हैं और आज वे मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पुनर्विकसित स्वरूप का उद्घाटन करेंगे. यह मंदिर त्रिपुरा जिले के गोमती जिले के उदयपुर में स्थित 524 साल पुराना है. मंदिर संस्कृति और इतिहास के लिहाज से भी अद्भुत प्रतीक माना जाता है. त्रिपुर सुंदरी मंदिर को महाराजा धन्या माणिक्य के द्वारा 1501 में बनवाया गया था और इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. 

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हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि यहां पर माता सती के चरण गिरे थे. इसीलिए इसे कुर्भपीठ भी कहा जाता है और इस मंदिर में तांत्रिक साधना का भी महत्व है. चलिए जानते हैं कि माता रानी का सबसे पुराना मंदिर कौन सा है.

दुनिया में सबसे पुराना माता का मंदिर कौन सा?

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दुनिया में माता रानी का सबसे पुराना और प्राचीन मंदिर बिहार में स्थित है. बिहार की ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों की बात की जाए तो कैमूर जिले की मुंडेश्वरी पहाड़ी पर स्थित माता मुंडेश्वरी का मंदिर खास स्थान रखता है. यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यह मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि अपनी प्राचीनता और वास्तुकला के कारण भी दुनिया भर में प्रसिद्ध है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे दुनिया का सबसे पुराना जीवित और निरंतर पूजा जाने वाला मंदिर घोषित किया है.

प्राचीनता का प्रमाण

इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के अनुसार मुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण काल लगभग 108 ईस्वी माना जाता है. मंदिर के भीतर मिले शिलालेखों और अभिलेखों से यह तथ्य प्रमाणित होता है. यहां ब्राह्मी लिपि में लिखित शिलालेख पाए गए हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि गुप्तकालीन युग में भी यह मंदिर पूरी तरह सक्रिय था. खास बात यह है कि मंदिर में मिली महाराजा दुत्तगामनी की मुद्रा भी इसकी प्राचीनता का सबूत देती है. 

बौद्ध साहित्य के अनुसार दुत्तगामनी श्रीलंका के अनुराधापुर वंश के राजा थे, जिन्होंने ईसा पूर्व 101 से 77 तक शासन किया था. यही कारण है कि कई विद्वान इस मंदिर को शककाल से जोड़ते हैं और इसका उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में भी मिलता है.

अद्वितीय वास्तुकला

मुंडेश्वरी मंदिर की सबसे खास बात इसकी अनोखी अष्टकोणीय संरचना है, जो बहुत कम देखने को मिलती है. पूरा मंदिर पत्थरों से निर्मित है और इसे बिहार में नागर शैली की प्रारंभिक झलक माना जाता है. मंदिर के चारों ओर दरवाजे और खिड़कियां हैं, जबकि दीवारों और प्रवेशद्वार पर गंगा, यमुना, द्वारपाल और अन्य देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी गई हैं. दीवारों पर की गई नक्काशी और मूर्तियां उस समय की कला और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं.

माता मुंडेश्वरी की कथा

धार्मिक मान्यता के अनुसार असुरों के सेनापति चंड और मुंड इलाके में अत्याचार करते थे. उनकी प्रताड़ना से तंग आकर लोगों ने माता शक्ति से मदद की गुहार लगाई. माता ने अवतार लेकर दोनों का वध किया. कथा के अनुसार मुंड इस पहाड़ी पर छिप गया था, लेकिन देवी ने वहीं उसका संहार किया. इसी कारण देवी का यह स्वरूप मुंडेश्वरी कहलाया. वर्तमान में गर्भगृह में देवी वाराही की प्रतिमा स्थापित है, जिनका वाहन महिष है.

पंचमुखी शिवलिंग का रहस्य

मंदिर में माता के साथ भगवान शिव का भी अद्भुत स्वरूप विद्यमान है. गर्भगृह में स्थापित पंचमुखी शिवलिंग की विशेषता यह है कि इसका रंग दिन में तीन बार बदलता दिखाई देता है. मान्यता है कि सूरज की स्थिति के अनुसार शिवलिंग का आभामंडल बदलता है. सुबह, दोपहर और शाम के समय इसका अलग-अलग रंग दिखाई देता है. यह रहस्य आज भी वैज्ञानिकों और श्रद्धालुओं दोनों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है.

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