इतिहास को गौर से देखने पर पता चलता है कि हमारे इतिहास में कितने वीर महाराजा हुआ करते थे. जिनके किस्से कहानियां सदियों बाद भी लोगों की जुबां पर हैं. एक ऐसे ही राजा के बारे में हम आज बताने जा रहे हैं, जिन्होंने 10 साल की उम्र में ही पहला युद्ध लड़ लिया था और 12 साल की उम्र में वो राजगद्दी पर बैठ गए थे. हालांकि सिंहासन पर बैठने के बाद भी उन्होंंने कभी मुकुट नहीं पहना.


इस राजा ने दी थी सेना को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग
शेर-ए-पंजाब के नाम से विख्यात महाराजा रणजीत सिंह को सिख सम्राज्य का संस्थापक माना जाता है. उन्होंंने 19वींं सदी में सिख शासन की शुरुआत की थी. रणजीत सिंह ने बचपन में चेचक बीमारी के चलते अपनी एक आंख गवां दी थी. फिर भी उन्हें सबसे कुशल शासकों में से एक माना जाता है. उन्होंने पूरे पंजाब को एक किया और सिख राज्य की स्थापना की थी. महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी थीं और पेशावर सहित पश्तून क्षेत्र को जीत लिया. ये पहली बार था जब पश्तूनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया हो. 


उन्होंने अपनी सेना को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दिलवाई थी और सिख खालसा सेना तैयार की थी. ये सेना उन्हें हर युद्ध में जीत हासिल करने में काफी मदद करती थी.


सिंहासन पर बैठने के बाद कभी नहीं पहना मुकुट
कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने सिंहासन पर बैठने के बाद भी कभी राज मुकुट नहीं पहना. इसकी वजह काफी दिलचस्प है. दरअसल रणजीत सिंह का मानना है कि सिख धर्म में भगवान के सामने सभी एक बराबर होते हैं. इसलिए उन्होंने कभी मुकुट नहीं पहना. सबसे दिलचस्प बात ये है कि दुनिया का नायाब कोहिनूर हीरा, कभी महाराजा रंजीत सिंह के खजाने का हिस्सा हुआ करता था. लाहौर में अपनी आखिरी सांस लेने तक इस महान शासक ने अंग्रेजों को पंजाब पर कब्जा नहीं करने दिया था.                     


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