किसी भी लोकतंत्र या राजनीतिक व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती तब सामने आती है जब जनता का सरकार से भरोसा उठ जाता है और सेना खुद को सत्ता संभालने में सक्षम मान लेती है. ऐसे हालातों को ही तख्तापलट कहा जाता है. इसमें अक्सर राजनीतिक अस्थिरता, खराब आर्थिक हालात, भ्रष्टाचार और जनता में असंतोष की भूमिका अहम होती है. भारत भले ही लोकतंत्र का मजबूत गढ़ है, लेकिन उसके पड़ोसी देशों और दुनिया के कई हिस्सों में तख्तापलट आम घटना बन चुकी है.
सबसे ज्यादा कहां हुआ तख्तापलट
दुनिया में तख्तापलट की सबसे लंबी और खतरनाक कहानियां अफ्रीका महाद्वीप से जुड़ी हैं. 1950 के बाद से अब तक अफ्रीका में 109 बार तख्तापलट की कोशिशें की गईं. इनमें से सबसे ज्यादा बार बुर्किना फासो में सत्ता पलट हुई है. यहां 9 बार सरकारें सेना के सामने झुक गईं. वहीं, सुडान में करीब 18 बार तख्तापलट की कोशिश हुई, जिनमें 6 बार सेना सफल रही. हर बार इन घटनाओं ने हजारों लोगों की जान ली और लाखों नागरिकों को प्रभावित किया. इसके अलावा बुरुंडी और घाना भी बार-बार सत्ता परिवर्तन की इस हिंसक राजनीति का शिकार बने. इन देशों में जनता सरकार से ज्यादा सेना से डरने लगी है.
म्यांमार की उथल-पुथल
भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में तख्तापलट की लंबी परंपरा रही है. पहली बार 1962 में जनरल न्यून विन ने लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर सैन्य शासन लागू किया. 1988 में एक और बड़े आंदोलन के दौरान सेना ने हजारों प्रदर्शनकारियों को मौत के घाट उतार दिया. हालात कुछ सुधरते दिखे, लेकिन 2021 में सेना ने फिर लोकतांत्रिक सरकार को गिराकर सत्ता पर कब्जा कर लिया. इस तख्तापलट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार को अलग-थलग कर दिया.
पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान का इतिहास भी तख्तापलट की गवाही देता है. 1958 में जनरल अय्यूब खान ने वहां पहला सैन्य तख्तापलट किया. इसके बाद जनरल जिया-उल-हक और जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी लोकतांत्रिक सरकारों को हटाकर सत्ता पर कब्जा किया. आखिरी बड़ा तख्तापलट 1999 में हुआ जब मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार को गिरा दिया. पाकिस्तान में सेना का राजनीतिक दखल आज भी एक बड़ी बहस है, और यही वजह है कि वहां लोकतंत्र कभी स्थिर नहीं हो पाया.
अफगानिस्तान और तालिबान का कब्जा
भारत के एक और पड़ोसी देश अफगानिस्तान में 2021 में हालात पूरी तरह बदल गए. अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने तेजी से देश पर कब्जा कर लिया और अशरफ गनी की सरकार को हटाना पड़ा. इसे भी एक तरह का तख्तापलट माना गया क्योंकि यहां सत्ता पूरी तरह हथियारों और ताकत के आधार पर छिनी गई. तब से अफगानिस्तान तालिबान के शासन में है.
तख्तापलट के मायने और खतरे
तख्तापलट किसी देश की राजनीतिक प्रणाली के लिए बड़ा झटका होता है. यह लोकतंत्र को कमजोर करता है, नागरिक स्वतंत्रता को खत्म करता है और देश को लंबे समय तक अस्थिर बना देता है. चाहे अफ्रीका हो, म्यांमार हो या पाकिस्तान और अफगानिस्तान.
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